नदी पर उद्धरण
नदियों और मानव का आदिम
संबंध रहा है। वस्तुतः सभ्यता-संस्कृति का आरंभिक विकास ही नदी-घाटियों में हुआ। नदियों की स्तुति में ऋचाएँ लिखी गईं। यहाँ प्रस्तुत चयन में उन कविताओं को शामिल किया गया है, जिनमें नदी की उपस्थिति और स्मृति संभव हुई है।
नदी निषादों की है, नाग किरात-प्रतीक हैं और सोम है, आर्यों का श्रेष्ठतम देवता—आर्य वांग्मय और उपासना का चरम प्रतीक। अद्भुत एवं सार्थक हैं, देवाधिदेव के ये तीनों शीश-शृंगार!
देशप्रेम है क्या? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आकलन क्या है? सारा देश अर्थात् मनुष्य, पशु, पक्षी, नदी, नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि। यह साहचर्यगत प्रेम है।
पृथ्वी स्वयं इस नए जीवन को जन्म दे रही है और सारे प्राणी इस आनेवाले जीवन की विजय चाह रहे हैं। अब चाहे रक्त की नदियाँ बहें या रक्त के सागर भर जाएँ, परंतु इस नई ज्योति को कोई बुझा नहीं सकता।
किसी ने भी एक ही नदी में दो बार क़दम नहीं रखा है, लेकिन क्या कभी किसी ने एक ही किताब को दो बार पढ़ा है?
गहरी नदियाँ शांत बहती हैं।
गंगोत्री, यमुनोत्री या फिर नर्मदा कुंड—ये वे स्थान हैं, जहाँ नदी पहाड़ की कोख से निकलकर पहाड़ की गोद में आती है।
नदी, नाव और निभृत एकांत—युवा प्रेमियों को भला और क्या चाहिए।
जैसे गर्मी में छोटी-छोटी नदियाँ सूख जाती हैं, उसी प्रकार धनहीन हुए मंदबुद्धि मनुष्य की सारी क्रियाएँ छिन्न-भिन्न हो जाती हैं।
धुआँधार में नर्मदा का ऐश्वर्य है, बंदरकूदनी में उसका वैराग्य। धुआँधार में मद भरी मौज है, तो बंदरकूनी में शांति का पारावार। फिर भी नर्मदा का ऐश्वर्य और उसका वैराग्य, उसका उल्लास और उसका गांभीर्य, उसका निनाद और उसका—मानो एक ही है।
समस्त प्राणियों को खा जाने वाले मृत्युदेव की भूख कभी नहीं बुझती। अनित्यता रूपी नदी अत्यंत तेज़ी से बह रही है। पंचमहाभूतों की गोष्ठियाँ क्षणिक हैं।
वेद, सांख्य, योग, पाशुपत मत, वैष्णव मत, इत्यादि परस्पर भिन्न मार्गों में 'यह बड़ा है, यह हितकारी है', इस प्रकार रुचि की विचित्रता से अनेक प्रकार के सीधे या टेढ़े पंथ को अपनाने वाले मनुष्यों के लिए हे परमात्म देव! आप ही एकमात्र प्राप्त करने योग्य स्थान हैं, जैसे नदियों के लिए समुद्र।
पवित्र नदियाँ, बिना स्नान किए, अपने दर्शनमात्र से ही दर्शक का मन पवित्र कर देती हैं।
महान पुरुष तो शरणागत शत्रुओं पर भी अनुग्रह करते हैं। बड़ी नदियाँ अपनी सपत्नी पहाड़ी नदियों को भी सागर तक पहुँचा देती हैं।
नदी के दो किनारे होते हैं पर हमारे काम तो वही किनारा आता है, जो हमारी ओर होता है।
कुछ नाम सरस और मधुर होते हुए भी चल नहीं पाते। रेवा कितना प्यारा नाम है। बोलने में आसान, सुनने में मधुर। लेकिन चला नहीं, नर्मदा नाम ही ज़्यादा प्रचलित हुआ।
सुकवि के वचन अर्थादि का विचार किए बिना ही आनंदमग्न कर देते हैं, पुण्यमयी नदियाँ स्नान के बिना ही दर्शनमात्र से ही पवित्र कर देती हैं।
समुद्र धरती को बादल भेजता है। वह जानता है कि धरती उसकी कितनी तीव्रता से प्रतीक्षा कर रही है। इसीलिए वह उसे साधारण डाक से न भेजकर, हवाई-डाक से भेजता है, रजिस्टर्ड ए. डी. से भेजता है। नदी मानो धरती की समुद्र को बादल मिलने की पावती है—एकनालेजमेंट है। नदियों के मटमैले पानी देखकर समुद्र आश्वस्त हो जाता है कि पानी के जो पार्सल उसने धरती को भेजे थे, वे उसे सही-सलामत मिल गए हैं।
किसी भी बड़े देश के तीन प्रमुख भाग किए जा सकते हैं—पर्वत, मैदान और समुद्र। हमारे ऋषियों ने इन तीनों के लिए एक-एक देवी की कल्पना की है। पर्वत की देवी हैं पार्वती—हिमालय की बेटी। मैदान की देवी हैं सीता—जो राजा जनक को हल चलाते समय खेत में मिली थीं। और समुद्र की देवी हैं लक्ष्मी—जो समुद्र मंथन में से निकली थीं। मज़े की बात यह है कि तीनों के ही भाई नहीं हैं। इनमें से किसी के भी माता-पिता ने बेटे के लिए मनौती मानने की आवश्यकता नहीं समझी।
जैसे बीच में विषम शिलाओं के आ जाने से नदी का वेग बढ़ जाता है वैसे ही अपने प्रिय से मिलने के सुख में बाधाएँ आ जाती हैं तो प्रेम सोगुना हो जाता है।
नर्मदा का पानी, पानी नहीं माँ का दूध है।
गंगा महाकाव्य है तो यमुना गीति-काव्य।
जहाँ तक गंगा है वहीं तक उत्तर में भारतवर्ष है।
नदी के साथ चलना उन असंख्य चीज़ों की पुनर्रचना का अवसर बन जाता है, जिन्हें हम पहले से जानते आ रहे हैं।
साहसिक कार्य बड़ा हो या छोटा, उसे कभी दूसरों के बलबूते पर आरंभ न करो। अपने भरोसे पर, पार जाने के लिए गंगा में भी कूद पड़ो, परंतु केवल दूसरे के सहारे का भरोसा रखकर घुटनों तक के पानी में भी पाँव न रखो।
नर्मदा मुझे दो कारणों से विशिष्ट लगी है। एक तो यह कि नर्मदा अत्यंत सुंदर नदी है। गंगा भी सुंदर है, लेकिन हरिद्वार तक। इसके बाद तो वह सुदूर समुद्र तक सपाट मैदानों में से नहर की तरह बहती है; जब कि नर्मदा ओर से छोर तक बहती है पहाड़ों में से, जंगलों में से, घाटियों में से, एक से एक सुंदर प्रपातों का निर्माण करती। अगर कभी भारत की नदियों की सौंदर्य-प्रतियोगिता होगी, तो सर्वोत्तम पुरस्कार नर्मदा को ही मिलेगा। इसीलिए मैंने अपनी हिंदी पुस्तक का नाम रखा—सौंदर्य की नदी नर्मदा।
ऋषियों का, नदियों का, कुलों का और महात्माओं का तथा स्त्रियों के दुश्चरित्र का उत्पत्तिस्थान नहीं जाना जा सकता।
नदियों द्वारा समुद्र में डाला गया जल मेघों द्वारा पुनः मिल जाता है परंतु बनिए के घर रखी गई धरोहर फिर नहीं मिलती है।
समुद्र की तलाश में निकला पानी है नदी और नदी की तलाश में निकला पदयात्री है परकम्मावासी। एक न एक दिन दोनों की तलाश पूरी होती है।
प्रपात से गिरते पानी को देखकर लगा, मानो नदी अपने कंधों पर से बोझ उतार रही है।
यमुना अद्भुत रसमय चरित्र के साथ हमारे मानस लोक में प्रतिष्ठित है।
नर्मदा की दूसरी विशिष्टता यह है कि संसार में एकमात्र नर्मदा की ही परिक्रमा की जाती है, अन्य किसी नदी की नहीं। सैकड़ों वर्षों से हज़ारों परकम्मावासी, नर्मदा की परिक्रमा करते आ रहे हैं। इसलिए मैंने अपनी गुजराती पुस्तक का नाम रखा—परिक्रमा नर्मदा मैयानी। इस प्रकार मेरी पुस्तकों के नाम पर से ही नर्मदा की ये दोनों विशेषताएँ उजागर हो जाती हैं।
अगर नर्मदा के सभी प्रमुख प्रपातों को ध्यान में रखें, तो नर्मदा सात मंज़िला नदी है।
और वह नदी! वह लहराता हुआ नीला मैदान! वह प्यासों की प्यास बुझाने वाली! वह निराशों की आशा! वह वरदानों की देवी! वह पवित्रता का स्रोत! वह मुट्ठीभर ख़ाक को आश्रय देने वाली गंगा हँसती-मुस्कराती थी और उछलती थी।
गंगा गोमुख से निकलती है और इसका स्वभाव एवं चरित्र भी पयस्वला धेनु की तरह है जो अपने बछड़े के लिए रँभाती-दौड़ती घर को लौट रही हो
मनुष्य जिस प्रकार के सौंदर्य को नष्ट कर सकता है, उसी प्रकार उसमें वृद्धि भी कर सकता है। सरदार सरोवर के कारण नर्मदा-सौंदर्य में वृद्धि ही हुई है।
नर्मदा हमारे देश की नदियों के बड़े परिवार की एक सदस्या है। लंबाई के लिहाज़ से उसका नंबर सातवाँ है, लेकिन उसकी विशेषता उसके जल की मात्रा में नहीं, उसके चट्टानी स्वभाव में है। उसके उन्मत्त प्रपातों में है। उसके प्रपाती दर्रों में है। उसकी सँकरी घाटियों में है, उसके वनों में है, उसके तट पर निवास करती जन-जातियों में है, और उसके पहाड़ी परिवेश में है।
बरसात का पानी एक जगह आबद्ध होकर रह न जाए, अबाध गति से बहता रहे—इसके लिए नदियाँ ज़रूरी हैं। और नदियों का प्रवाह रक्त के प्रवाह की तरह सदा एक-सा बहता रहे—इसके लिए बाँध ज़रूरी हैं।
यमुना नदी बड़ी मौज़-मस्ती से जुड़ी नदी है। बाप-दादों ने कहा है कि यह यमराज की बहन है। ज़रूर होगी। हर एक मौज़-मस्ती यमराज की बहन है।
जो देश नदी पर निर्भर है; उसमें यदि नदी की धारा सूख जाए तो मिट्टी कृपण बन जाती है—अन्न-उत्पादन की शक्ति क्षीण हो जाती है।
प्रवाह नदी का प्रयोजन है। अपने अस्तित्व के लिए उसे बहना ही चाहिए। बहना उसकी अनिवार्यता है; लेकिन प्रपात उसका ऐश्वर्य है, उसका अतिरिक्त प्रदान है। यह अतिरिक्त प्रदान ही किसी चीज़ को सौंदर्य प्रदान करता है। जहाँ प्रयोजन समाप्त होता है, वहाँ सौंदर्य शुरू होता है।
महाभारत में जो स्थान गीता को है; अथवा गीता में जो स्थान अठारहवें अध्याय का है, वही स्थान नर्मदा में भेड़ाघाट का है। भेड़ाघाट में नर्मदा-सौंदर्य का सबसे मधुर हिस्सा है।
नर्मदा सौंदर्य की नदी है।
मैदान में नर्मदा का मन नहीं रमता। जहाँ संघर्ष नहीं, शौर्य नहीं, साहस दिखाने का अवसर नहीं, वहाँ वह बहती तो है—पर अनमने भाव से, चुपचाप। मैदान उसके चट्टानी स्वभाव से अनुकूल नहीं।
नर्मदा के हर मोड़ पर मुझे कुछ न कुछ नया दिखाई दिया। हर बार मन में नर्मदा सौंदर्य की अमिट छाप लिए घर लौटता। नर्मदा ने अपने सौंदर्य से मुझे आकंठ भर दिया। यह भराव मुझ पर दबाव डालता रहा। मैं अपने आपको अभिव्यक्त करने के लिए विवश हो जाता।
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संसार की सभी प्रमुख संस्कृतियों का जन्म नदियों की कोख से हुआ है।
आदिम निषाद की दृष्टि में नदी एक अप्सरा थी, उज्जवल दूधवर्णी परिधान धारण किए, आपादमस्तक शुक्लाभिसारिका रूप।
नदी के सत्संग में मन नई रूपरेखाओं में ऐसी-ऐसी बातों को समेट लेता है जो अलग-अलग अर्सों से अछूती, अकेली या खोई पड़ी थी।
नदी के दीपों में होती है गति। नदी के दीप घर के दीपों से कह सकते हैं कि देखो, मैं कितना गतिशील हूँ, प्रगतिशील हूँ। तुम तो एक ही जगह बँधकर रह गए हैं। तनिक भी आगे नहीं बढ़ रहे। तुम यथास्थितिवादी हो, बुर्जुआ हो।
मीठे पानी का श्रेष्ठ और सुदीर्घ स्रोत है नदी।
चट्टानों से दो-दो हाथ करने में नर्मदा को मज़ा आता है। चट्टान और नदी की लड़ाई में विजय सदा नदी की ही होती है।