आवश्यकताओं की निर्विरोध और निर्बंध पूर्ति ही मनुष्य जीवन की स्वतंत्रता है।
जो प्रौढ़ और तजुर्बेकार हैं, वे ही स्वराज्य भुगत सकते हैं, न कि बे-लगाम लोग।
नारी की आर्थिक परवशता और उसी स्वतंत्रता को विच्छिन करके देखना असंभव नहीं तो मुश्किल अवश्य है।
हम दुनिया में किसी को दुश्मन बनाना नहीं चाहते और न हम किसी के दुश्मन बनना चाहते हैं—यह मेरी व्याख्या का स्वराज्य है।
इच्छा को जहाँ अन्य इच्छा की चाह होती है, वहाँ इच्छा फिर स्वाधीन नहीं रह जाती।
यक़ीनन आधुनिक इतिहास में तो ऐसी कोई मिसाल नहीं मिलती, जिसकी अंग्रेज़ों के सत्ता छोड़ने के काम से तुलना की जा सके।
हमारी जिस इच्छा में स्वाधीनता का सबसे विशुद्ध रूप होता है, उसी में अधीनता का भी विशुद्ध रूप होता है।
हिंदुस्तान के विभाजन ने बेजाने उसके दो हिस्सों को आपस में लड़ने का न्यौता दिया। दोनों हिस्सों को अलग-अलग स्वराज देना, आज़ादी के इस दान पर धब्बे जैसा मालूम होता है।
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स्त्रियों को विवाह करना ही चाहिए—यह मिथ्या भ्रम है। उसे भी यावज्जीवन ब्रह्मचर्य पालने का अधिकार है।
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अराजकता का इलाज स्वतंत्रता है न कि दासता, वैसे ही जैसे अंधविश्वास का सच्चा इलाज नास्तिकता नहीं, धर्म है।
हम ख़ुद गुलाम होंगे और दूसरों को आजाद करने की बात करेंगे, तो वह संभव नहीं है।
वयः प्राप्त पुरुष जितनी स्वतंत्रता का अधिकारी है, उतनी ही स्त्री भी है।
अगर मैं कहूँ; मनुष्य मुक्ति चाहता है, तो यह मिथ्या बात होगी। मनुष्य मुक्ति की अपेक्षा बहुत सारी चीज़ें चाहता है। मनुष्य अधीन होना चाहता है।
नारी जब अपनी उस स्वतंत्र स्थिति को प्राप्त कर लेगी तब एकनिष्ठता का दावा पुरुष के हिस्से में भी उसी अनुपात से आयेगा जितना नारी के लिए है।
लड़ते हुए मर जाना जीत है, धर्म है। लड़ने से भागना पराधीनता है, दीनता है। शुद्ध क्षत्रियत्व के बिना शुद्ध स्वाधीनता असंभव है।
आज़ाद हिंदुस्तान में सारे देश पर जनता का अधिकार है।
दूसरे लोग जो स्वराज्य दिला दें वह स्वराज्य नहीं है, बल्कि परराज्य है।
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आज आज़ादी के ज़माने में तो यह पब्लिक का फ़र्ज़ हो जाता है कि गंदे अख़बारों को न पढ़े, उनको फेंक दें।
हमारे देश में भी व्यक्ति-स्वातंत्र्य को साधना का विषय समझा गया था, लेकिन उस स्वातंत्र्य को संकीर्ण अर्थ में नहीं लिया गया।
अनुवाद में विश्वसनीयता और स्वतंत्रता, पारंपरिक तौर से परस्पर विरोधी प्रवृतियाँ मानी गई हैं।
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जिन्होंने पश्चिम की शिक्षा पाई है और जो उसके पाश में फँस गये हैं, वे ही गुलामी में घिरे हुए हैं।
काफ़्का के यहाँ न कोई मुक्ति है, न छलांग, न उड़ान, न आसमान में खुलने वाला कोई प्रवेशद्वार।
भगवान के दर्शन तो स्वराज में ही हैं। भगवान का कोई शरीर थोड़ा है।
मनुष्य की अचेतन क्रिया की यंत्रवत कारीगरी और यांत्रिक साधन ही आगे चलकर स्वतंत्र कलाओं में परिणत होते गए।
जिस प्रकार स्वच्छंद समाज का स्वप्न अंग्रेज कवि शेली देखा करते थे, उसी प्रकार का यह समाज सूर ने चित्रित किया है।
अगर कोई अँग्रेज कहे कि देश को आजाद करना चाहिए, जुल्म के ख़िलाफ़ होना चाहिए और लोगों की सेवा करनी चाहिए, तो उस अँग्रेज को मैं हिन्दुस्तानी मानकर उसका स्वागत करूँगा।
हिन्द स्वराज्य की सच्ची ख़ुमारी उसी को हो सकती है, जो आत्मबल अनुभव करके शरीर बल से नहीं दबेगा और निडर रहेगा तथा सपने में भी तोप बल का उपयोग करने की बात नहीं सोचेगा।
रचनात्मक काम के बिना हम रह भी कैसे सकते हैं! उसके बग़ैर स्वराज चीज़ हो भी क्या सकती है?
सच्चा स्वराज्य थोड़े लोगों के द्वारा सत्ता प्राप्त कर लेने से नहीं; बल्कि जब सत्ता का दुरूपयोग होता हो, तब सब लोगों के द्वारा उसका प्रतिकार करने की क्षमता प्राप्त करके हासिल किया जा सकता है।
मैं तो उस दिन आज़ादी मिली समझूँगा जब कि हिंदू और मुसलमानों के दिलों की सफ़ाई हो जाएगी।
बाल-साहित्य बचपन का साहित्य होता है, उसके लिए साहित्य की स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं–बच्चे की स्वतंत्रता भी चाहिए।
आज़ादी का मतलब होना चाहिए लोक-राज। लोक-राज का अर्थ है कि हर शख़्स को बुद्धि पाने का मौक़ा मिले।
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देश के लिए आवश्यक धान्य का संग्रह सदा रहे, स्वराज्य की आर्थिक नीति इस तरह बनाई जानी चाहिए।
प्राकृतिक अनुकूलताएँ भी हों, उनमें स्वावलंबी रहना—दोष नहीं बल्कि उचित है।
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हमारे जन्म-सिद्ध अधिकार की जो चीज़ है वह हमसे कोई छीन नहीं सकता।
स्वराज्य-प्राप्ति के लिए अस्पृश्यता को हटाने की बात गांधीजी की मौलिक देन थी।
स्वातंत्र्य की सुरक्षा और संवर्द्धन के लिए भी आत्मानुशासन पहली शर्त है।
स्वराज्य तो सबको अपने लिए पाना चाहिए और सबको उसे अपना बनाना चाहिए।
शासन का भय घटता जाए और हम स्व-प्रेरणा से काम करने वाले नागरिक बन जाएँ।
स्वातंत्र्य-महत्ता का जिसमें जितना ऊँचा और प्रखर बोध होता है उसी का व्यक्तित्व अनुशासन की पुष्ट भित्ति पर खड़ा होता है।
मेरा औद्योगीकरण तो देहातों में होगा, यानी घर-घर में चरखा चलेगा और गाँव-गाँव में कपड़ा तैयार होगा।
अगर लगातार हम व्यसन-व्यभिचार में पड़े रहे तो हिंद आज़ाद होकर भी उसकी आज़ादी व्यर्थ जाने वाली है।
भारत सदा स्वाधीन रहा है। आज भी हम स्वाधीन हैं। पैंतीस करोड़ भारतवासी विश्व विजय करके रहेंगे। भारत युग-पुरुष श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्धदेव, शंकरदेव आदि की पवित्र जन्मभूमि है और मानव मात्र की ज्ञान-दायिनी भी है।
प्रेम और स्वाधीनता के बीच जो द्वंद्व देखा जाता है, वह मोह और प्रेम के बीच फ़र्क़ न करने के कारण पैदा होता है।
आर्थिक रूप से पूर्णतया स्वतंत्र हुए बिना नारी अपनी स्वतंत्रता को प्राप्त नहीं कर सकती, यह निर्विवाद रूप से सही है।
स्वराज्य हिंदुस्तान का फेफड़ा है।
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आज हम हिंदुस्तान की पूरी आज़ादी चाहते हैं।
समय-समय पर झुँड से अलग होना महत्वपूर्ण है।
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