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ग़रीबी पर उद्धरण

ग़रीबी बुनियादी आवश्यकताओं

के अभाव की स्थिति है। कविता जब भी मानव मात्र के पक्ष में खड़ी होगी, उसकी बुनियादी आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ हमेशा कविता के केंद्र में होंगी। प्रस्तुत है ग़रीब और ग़रीबी पर संवाद रचती कविताओं का यह चयन।

दरिद्रता सब पापों की जननी है तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है।

जयशंकर प्रसाद

प्रतिभा तो ग़रीबी ही में चमकती है, दीपक की भाँति जो अँधेरे में अपना प्रकाश दिखाता है।

प्रेमचंद

ग़ुरबत और ग़लाज़त दो बहनें : दुनिया भर में।

कृष्ण बलदेव वैद

दरिद्रता अभिशाप है और वरदान भी। वह व्यक्ति रूप में एक विशिष्ट समय तक तुम्हारा परिसंस्कार करती है—पर यह अवधि दीर्घ नहीं होनी चाहिए।

सुरेंद्र वर्मा

ममता, अक्सर, दरिद्रता की पूरक होती है।

धूमिल

दुर्दिन में मन के कोमल भावों का सर्वनाश हो जाता है और उनकी जगह कठोर एवं पाशविक भाव जागृत हो जाते हैं।

प्रेमचंद

ग़रीबों में अगर ईर्ष्या या बैर है तो स्वार्थ के लिए या पेट के लिए। ऐसी ईर्ष्या या बैर को मैं क्षम्य समझता हूँ।

प्रेमचंद

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