साधारणीकरण और व्यक्ति-वैचित्र्यवाद
किसी काव्य का श्रोता या पाठक जिन विषयों को मन में लाकर रति, करुणा, क्रोध, उत्साह इत्यादि भावों तथा सौंदर्य, रहस्य, गांभीर्य आदि भावनाओं का अनुभव करता है वे अकेले उसी के हृदय से संबंध रखने वाले नहीं होते; मनुष्य-मात्र की भावात्मक सत्ता पर प्रभाव डालने
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
हिंदी का नाट्य साहित्य और उसकी गति
नाटक शब्द नट्−धातु से बना है। ‘नट’ नाच के अर्थ में प्रयुक्त होता है। अंग्रेज़ी में नाटक को ड्रामा कहते हैं। ड्रामा के लिए संस्कृत में नाटक की अपेक्षा ‘रूपक’ शब्द अधिक उपयुक्त है। ड्रामा का मूल शब्द इसी अर्थ का द्योतक है। ड्रामा उन रचनाओं को कहते हैं,
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
कला का प्रयोजन : स्वांतःसुखाय या बहुजनहिताय
हमारे युग का संघर्ष आज केवल राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्रों ही में प्रतिफलित नहीं हो रहा है, वह साहित्य, कला तथा संस्कृति के क्षेत्र में भी प्रवेश कर चुका है। यह एक प्रकार से स्वास्थ्यप्रद ही लक्षण है कि हम अपने युग की समस्याओं का केवल बाहरी समाधान ही
सुमित्रानंदन पंत
कालिदास के 'मेघदूत' का रहस्य
कविता-कामिनी के कमनीय नगर में कालिदास का 'मेघदूत' एक ऐसे काव्य भवन के सदृश है, जिसमें पद्मरूपी अनमोल रत्न जड़े हुए हैं— ऐसे रत्न, जिनका मोल ताजमहल में लगे रत्नों से भी कहीं अधिक है। ईंट और पत्थर की इमारत पर जल-वृष्टि का असर पड़ता है। आँधी-तूफ़ान से उसे
महावीर प्रसाद द्विवेदी
प्राचीन भारत में मदनोत्सव
संस्कृत के किसी भी काव्य, नाटक, कथा और आख्यायिका को पढ़िए, वसंत ऋतु का उत्सव उसमें किसी-न-किसी बहाने अवश्य आ जाएगा कालिदास तो वसंतोत्सव का बहाना ढूँढते रहते से लगते हैं। मेघदूत वर्षा ऋतु का काव्य है, पर यक्षप्रिया के उद्यान के वर्णन के प्रसंग में प्रिया
हजारीप्रसाद द्विवेदी
मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है
मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ। जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से बचा न सके, जो उसकी आत्मा को तेजोदीप्त न बना सके, जो उसके हृदय को परदु:ख कातर और संवेदनशील न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता
हजारीप्रसाद द्विवेदी
हमारे पुराने साहित्य के इतिहास की सामग्री
हिंदी साहित्य का इतिहास केवल संयोग और सौभाग्यवश प्राप्त हुई पुस्तकों के आधार पर नहीं लिखा जा सकता। हिंदी का साहित्य संपूर्णतः लोक भाषा का साहित्य है। उसके लिए संयोग से मिली पुस्तकें ही पर्याप्त नहीं है। पुस्तकों में लिखी बातों से हम समाज की किसी विशेष
हजारीप्रसाद द्विवेदी
मेघदूत में कालिदास का आत्मचरित
काव्य ही कवि का जीवन है। उसी में उसकी आत्मा निवास करती है। यदि हम किसी कवि का वास्तविक रूप देखना चाहते हैं तो हमें उसके काव्यों का अवलोकन करना चाहिए। उनसे हम कवि के जीवन के विषय में कुछ बातें अवश्य जान सकते हैं। कवि का किस पर अनुराग था, किससे घृणा थी,
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
लेखकों की समस्याएँ : व्यष्टि और समष्टि
व्यष्टि और समष्टि—व्यक्ति और समाज—कहानी लेखन के संदर्भ में एक को हटाकर मैं दूसरे की कल्पना नहीं कर सकता। आदमी जिस क्षण आँख खोलता है, देखने-सुनने लगता है, बाहर होने वाले कार्य-व्यापार को वह अपने मन के आईने पर प्रतिबिंबित करके देखता है। देखने वाला, सुनने
उपेंद्रनाथ अश्क
भारतेंदु हरिश्चंद्र (बाबू श्यामसुंदर दास)
संवत् 1657 में इंग्लैंड में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई और उसे भारतवर्ष से व्यापार-संबंध स्थापित करने का एकाधिकार दिया गया। बारह वर्ष तक उद्योग में लगे रहने के अनतर संवत् 1666 में इस कंपनी का पहला कारख़ाना सूरत में खुला। इस साधारण घटना से ब्रिटिश
श्यामसुंदर दास
हिंदी-साहित्य और मुसलमान कवि
सभी देशों के इतिहास में भिन्न जातियों के पारस्परिक संघर्षण के उदाहरण मिलते हैं। उनसे यही सिद्ध होता है कि ऐसे ही संघर्षण से सभ्यता का विकास होता है। भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न अवस्था के कारण विभिन्न जातियों के विभिन्न आदर्श होते हैं। जब एक जाति
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
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