क़ानून निर्धन को पीसते हैं और धनवान क़ानून पर शासन करते हैं।
मैं गाय की भक्ति और पूजा में किसी से पीछे नहीं हूँ; लेकिन वह भक्ति और श्रद्धा, क़ानून के ज़रिए किसी पर लादी नहीं जा सकती।
जहाँ क़ानून ख़त्म होता है, वहाँ से धर्म शुरू होता है। क़ानून ज़रूरी है। वह हमें अराजकता से उबारता है, हमारे अधिकारों की रक्षा करता है। लेकिन समाज को ऊपर उठाता है—धर्म।
सभी के लिए एक क़ानून है अर्थात् वह क़ानून जो सभी क़ानूनों का शासक है, हमारे विधाता का क़ानून, मानवता, न्याय, समता का क़ानून, प्रकृति का क़ानून, राष्ट्रों का कानून।
अपने देश का क़ानून पक्का है—जैसा आदमी, वैसी अदालत।
पश्चिमी सभ्यता की सभी चीज़ों में से पश्चिमी राष्ट्र ने हमें जो बहुत उदारता से दिया है, वह है क़ानून व व्यवस्था।
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क़ानून के पंडित कुछ भी कहें, वे मनुष्यों के मन पर राज नहीं कर सकते।
अगर लोग एक बार सीख लें कि जो कानून हमें अन्यायी मालूम हो, उसे मानना नामर्दगी है तो हमें किसी का भी ज़ुल्म बाँध नहीं सकता। यही स्वराज्य की कुंजी है।
आवश्यकता कोई क़ानून नहीं जानती।
क़ानून कहता है—बुरा काम मत करो। धर्म कहता है—इतना काफ़ी नहीं है, कुछ अच्छा काम करो।
क़ानून आवश्यक है, पर पर्याप्त नहीं। क़ानून पर हमें रुकना नहीं है। उससे आगे बढ़कर धर्म के शिखर को भी छूना है।
क़ानून कहता है—चोरी न करो, डकैती न करो। पर क़ानून यह नहीं कह सकता कि दान करो, त्याग करो। क़ानून कहेगा—ख़ून न करो, हत्या न करो। पर क़ानून यह नहीं कह सकता कि दूसरों के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दो। यह तो धर्म ही कह सकता है।
अधिकतर तो हम कानून का पालन इसलिए करते हैं कि उसे तोड़ने पर जो सजा होती है, उससे हम डरते हैं।
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