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लोकतंत्र पर कविताएँ

लोकतंत्र जनता द्वारा,

जनता के लिए, जनता का शासन है। लोकतंत्र के गुण-दोष आधुनिक समय के प्रमुख विमर्श-विषय रहे हैं और इस संवाद में कविता ने भी योगदान किया है। प्रस्तुत चयन ऐसी ही कविताओं का है।

कौन जात हो भाई

बच्चा लाल 'उन्मेष'

कोई और

देवी प्रसाद मिश्र

मुझे आई.डी. कार्ड दिलाओ

कुमार कृष्ण शर्मा

कोई एक और मतदाता

रघुवीर सहाय

साहब लोग रेनकोट ढूँढ़ रहे हैं

जितेंद्र श्रीवास्तव

पीठ

अमित तिवारी

सम्राट : तीन स्वर

तरुण भारतीय

न्यूरेम्बर्ग 1967

कोलिन फ़ाल्क

लोकतंत्र का समकालीन प्रमेय

जितेंद्र श्रीवास्तव

बकवास

ज़ुबैर सैफ़ी

मक़सद

पीयूष तिवारी

चरवाहा

गोविंद निषाद

जनता

विवेक भारद्वाज

नगड़ची की हत्या

रमाशंकर सिंह

जनादेश

संजय चतुर्वेदी

हम गवाही देते हैं

संजय चतुर्वेदी

उत्सव

अरुण कमल

तंत्र

सौरभ कुमार

जो सुहाग बनाते हैं

रमाशंकर सिंह

कार्यकर्ता से

लीलाधर जगूड़ी

हैंगओवर

निखिल आनंद गिरि

बूथ पर लड़ना

व्योमेश शुक्ल

एक सवाल

शैलेंद्र कुमार शुक्ल

पीस एकॉर्ड

तरुण भारतीय

लोकतांत्रिक न्यायाधीश

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

विपक्ष

राजेश सकलानी

हिंदू सांसद

असद ज़ैदी

आश्चर्य

कुसुमाग्रज

भाषण

रघुवीर सहाय

आज़ादी के मूल्य

गोविंद निषाद

ताक़तवर आदमी

मंगलेश डबराल

परिभाषित के दरबार में

आर. चेतनक्रांति

फँस गए हैं

पंकज चतुर्वेदी

युवा विधायक

चंद्रकांत देवताले

एक ठुल्ले की कविता

संजय चतुर्वेदी

जनगणित

संजय चतुर्वेदी

मतदान

अमित तिवारी

मतदाता

संजय चतुर्वेदी

बर्बरता का समान वितरण

देवी प्रसाद मिश्र

मैडम के नाम एक अपील

उदयचंद्र झा ‘विनोद’