एक सुसंस्कृत दिमाग़ को अपने दरवाज़े और खिड़कियाँ खुली रखनी चाहिए।
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हर एक मनुष्य को चाहिए कि वह दूसरे मनुष्य को इसी तरह, अर्थात् ईश्वर समझकर सोचे और उससे उसी तरह अर्थात् ईश्वर-दृष्टि से बर्ताव करे; उसे घृणा न करे, उसे कलंकित न करे और न उसकी निंदा ही करे। किसी भी तरह से उसे हानि पहुँचाने की चेष्टा भी न करे। यह केवल संन्यासी का ही नहीं, वरन् सभी नर-नारियों का कर्त्तव्य है।
पवित्रता ही आध्यात्मिक सत्य है। “पवित्र हृदयवाले धन्य हैं, क्योंकि वे ईश्वर का दर्शन करेंगे।” इस एक वाक्य में सब धर्मों का निचोड़ है। यदि तुम इतना ही सीख लो, तो भूतकाल में जो कुछ इस विषय में कहा गया है और भविष्यकाल में जो कुछ कहा जा सकता है, उस सबका ज्ञान तुम प्राप्त कर लोगे। तुम्हें और किसी ओर दृष्टिपात करने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि तुम्हें उस एक वाक्य से ही सभी आवश्यक वस्तुओं की प्राप्ति हो चुकी। यदि संसार के सभी धर्म-शास्त्र नष्ट हो जाएँ, तो अकेले इस वाक्य से ही संसार का उद्धार हो सकता है।
जहाँ कहीं महानता, हृदय की विशालता, मन की पवित्रता एवं शांति पाता हूँ, वहाँ मेरा मस्तक श्रद्धा से नत हो जाता है।
मनुष्य का सर्वोपरि उद्देश्य, सर्वश्रेष्ठ पराक्रम धर्म ही है और यह सब से आसान है।
हर राष्ट्र के लिए और हर व्यक्ति के लिए जिसको बढ़ना है, काम-काज और सोच-विचार के उन सँकरे घेरों को—जिनमें ज़्यादातर लोग बहुत अरसे से रहते आए हैं—छोड़ना होगा और समन्वय पर ख़ास ध्यान देना होगा।
आनृशंस्य परम धर्म है।
किसी धर्म का सिद्धांत कितना ही उदात्त एवं उसका दर्शन कितना ही सुगठित क्यों न हो, जब तक वह कुछ ग्रंथों और मतों तक ही परिमित है, मैं उसे नहीं मानता।
चरित्र की ही सर्वत्र विजय होती है।
धर्म के सिद्धांत संबंधी अंशों का उपदेश, आमतौर से जनता में दिया जा सकता है और सामुदायिक भी बनाया जा सकता है, पर उच्चतर धर्म सार्वजनिक रीति से प्रकट नहीं किया जा सकता।
सभी धर्म मेरे लिए पवित्र हैं।
यदि कोई नैष्कर्म्य एवं निर्गुणत्व को प्राप्त करना चाहता है, तो उसे अपने मन में किसी प्रकार का जाति-भेद रखना हानिकर है।
जहाँ तक आध्यात्मिकता का प्रश्न है; अमेरिका के लोग हमसे अत्यंत निम्न स्तर पर हैं, परंतु इनका समाज हमारे समाज की अपेक्षा अत्यंत उन्नत है। हम इन्हें आध्यात्मिकता सिखाएँगे और इनके समाज के गुणों को स्वयं ग्रहण करेंगे।
यदि तुम शासक बनना चाहते हो, तो सबके दास बनो।
हम एक शानदार युग में रह रहे हैं। जब हम सीमित करने वाले विचारों को छोड़ देंगे, तो सृजन के हर क्षेत्र में मानवता की सच्ची भव्यता का अनुभव करेंगे।
प्रत्येक पदार्थ का प्रथम भाग दीनों को देना चाहिए। अवशिष्ट भाग पर ही हमारा अधिकार है।
एक व्यक्ति जो दूसरों के विचार या राय को नहीं समझ सकता है, तो इसका मतलब यह हुआ कि उसका दिमाग़ और संस्कृति सीमित है।
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महापुरुषों में ही इस तरह उदारता की अधिकता होती है जो अन्य लोगों में नहीं होतीं और जिससे वे त्रिभुवन को अपने वश में कर लेते हैं।
हम पर अपने अल्पसंख्यक समुदायों के साथ-साथ, उन सभी समुदायों को लेकर ख़ास ज़िम्मेदारी है, जो आर्थिक या शिक्षा के स्तर पर पिछड़े हुए हैं और जो भारत की कुल जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा है।
सच्ची उदारता उस संघर्ष में ही होती है, जो संघर्ष मिथ्या उदारता का पोषण करने वाले कारणों को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
आइए इस पशुवत् व्यवहार से ऊपर उठें और एक-दूसरे के प्रति दयालु बनें।
अपने को निर्धन मत समझो। धन बल नहीं, साधुता एवं पवित्रता ही बल है। आओ देखो, सारे संसार में यह बात कितनी सही उतरती है।
प्रामाणिक क्रांति उस यथार्थ के रूपांतरण का प्रयास करती है, जो यथार्थ अमानुषिक बनाने वाली स्थिति पैदा करता है।
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इस दुनिया में समानताएँ हमें आगे बढ़ने में मदद नहीं करती हैं, यह बिल्कुल उल्टा है। हम सभी के भीतर समानताएँ हैं, इसलिए आस्तिक को आगे बढ़ने के लिए अपने भीतर के नास्तिक का सामना करना पड़ता है। उस नास्तिक को अपने भीतर छिपे आस्तिक को खोजना चाहिए। उसे तब तक ऐसा करना चाहिए; जब तक वह एक संपूर्ण व्यक्ति न बन जाए, यानी ऐसा व्यक्ति जिसमें कोई दोष न हो।
चाहे आप कितनी भी प्रार्थना करें या अच्छे काम करें, और लोगों का दिल तोड़ दें—वे किसी काम के नहीं हैं।
हिंदुस्तान को अपनी मज़हबी कट्टरता कम करना चाहिए और विज्ञान की तरफ़ ध्यान देना चाहिए, और उसे अपने विचारों और सामाजिक स्वभावों की अलहदगी से छुटकारा पाना चाहिए।
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सच्चा सूफ़ी वह है जो अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों, हमलों और बुराइयों को धैर्य के साथ सहता है और बदले में अपराधी के लिए एक भी बुरा शब्द नहीं कहता।
क्षमा और उदारता वही सच्ची है, जहाँ स्वार्थ की भी बलि हो।
अपने ईमान को मज़बूत बनाने के लिए, आपको सबसे पहले अपने दिल को पंख से भी हल्का और नरम बनाना होगा।
दो तरह के लोग पैदा होते हैं; जो मुश्किलों का सामना करने के बाद नरम दिल बन जाते हैं और प्यार बांटते हैं, और एक जो पहले से भी ज्यादा क्रूर हो जाते हैं।
जब भी हम प्यार बांटते हैं, हम स्वर्ग में होते हैं। और जब भी हम नफरत फैलाते हैं; या किसी से लड़ते हैं या ईर्ष्या दिखाते हैं, तो हम नरक में होते हैं।
प्रचार के लिए हमें अपने लेखन या भाषण से किसी पर भी ज़ाती तौर से हमला नहीं करना चाहिए, बल्कि कार्यक्रमों और नीतियों पर अपनी बात रखनी चाहिए।
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सूफ़ी कभी किसी को उसके दिखावे या हैसियत से नहीं आंकते।
अगर कोई हमारे बारे में बुरा बोलता है, तो बदले में उसके बारे में बुरा बोलने से बात और भी ख़राब हो जाती है। आप एक ऐसे घर में कैद हो जाएँगे जहाँ आप दूसरों को नुकसान पहुँचाने के अलावा कुछ नहीं सोच सकते।
सारी दुनिया बहुत बड़ी होते हुए भी बहुत छोटी है। इसमें हर व्यक्ति एक अदृश्य जाल से दूसरे व्यक्ति से जुड़ा हुआ है। हमें इसका एहसास नहीं होता, लेकिन हम सब एक दूसरे से मौन संवाद में हैं।
सहनशीलता के कानों से सुनो, करुणा की आँखों से देखो—प्रेम की भाषा बोलो।
क्रोध और अभिमान को अपने पैरों तले रखो, उन्हें सीढ़ी बनाओ और ऊपर चढ़ो।
एक दीपक बनो या एक जीवनरक्षक नौका, या एक सीढ़ी बनो। किसी की आत्मा को ठीक करने में मदद करो। एक चरवाहे की तरह अपने घर से बाहर निकलो।
प्रेम के उत्तर में जो प्रेम करनेवाले मनुष्य पर प्रेम कर सकता है, ऐसे प्रेमास्पद व्यक्ति की भक्ति और पूजा की कल्पना सार्वभौम है।