जिन्होंने सभ्यता को रुटीन के रूप में स्वीकार कर लिया है, उनके भीतर कोई बेचैनी नहीं उठती। वे दिन-भर दफ्तरों में काम करते हैं और रात में क्लबों के मज़े लेकर आनन्द से सो जाते हैं और उन्हें लगता है, वे पूरा जीवन जी रहे हैं।
संग्रहणीय वस्तु हाथ आते ही उसका उपयोग जानना, उसका प्रकृत परिचय प्राप्त करना, और जीवन के साथ-ही-साथ जीवन का आश्रयस्थल बनाते जाना—यही है रीतिमय शिक्षा।
यह जगत का निजी अनुभव है कि आधा छटाँक भर आचरण का जितना फल होता है उतना मन भर भाषणों अथवा लेखों का नहीं होता।
कृषिप्रधान संस्कृति में महत्त्वाकांक्षा के पनपने की ज़्यादा जगह नहीं है।
घाघ की लोकोक्तियों में सुख की चरमसीमा यही है कि घर पर पत्नी घी से मिली हुई दाल को तिरछी निगाहों से देखते हुए परोस दे। ऐसी स्थिति में गाँव का आदमी जब बाहर निकलता है तो पहला कारण तो यही समझना चाहिए कि संभवतः वहाँ दाल-रोटी का साथ छूट चुका है, तिरछी निगाहें टेढ़ी निगाहों में बदल गई हैं।
जिस प्रतिज्ञा के धर्म को अबोध व्यक्ति तक जानता है, उसे प्रसिद्धधर्मा कहते हैं। यथा, शब्द कानों से ग्रहण किया जाता है।
हमारे पास जो समय है, उसका सदुपयोग करें और उसको ऐसे कामों में दे दें, जिससे प्रेमभाव क़ायम हो।
किसान के बराबर सर्दी, गर्मी, मेह, और मच्छर-पिस्सू वगैरा का उपद्रव कौन सहन करता है?
ब्रह्मचर्य के संपूर्ण पालन का अर्थ है: ब्रह्म दर्शन—यह ज्ञान मुझे शास्त्र द्वारा नहीं हुआ।
सादा मेहनत-मजदूरी का, किसान का जीवन ही सच्चा जीवन है।
'कहानी का नेपथ्य' दैनिक जीवन के नेपथ्य जैसा नहीं है। दैनिक जीवन के नेपथ्य में ख़ुराफ़ात होती है, मंत्रणा होती है।
ब्रह्मचर्य का पालन करना हो तो स्वादेंद्रिय पर प्रभुत्व प्राप्त करना ही चाहिए।
भक्तों ने रहनि को (रहन-सहन को), ‘वे ऑफ लाइफ’ को महत्त्व दिया है।
बाह्य उपचारों में जिस तरह आहार के प्रकार और परिमाण की मर्यादा आवश्यक है, उसी तरह उपवास के बारे में भी समझना चाहिए।
जैसे-जैसे मेरे जीवन में सादगी बढ़ती गई, वैसे-वैसे रोगों के लिए दवा लेने की मेरी अरूचि जो पहले से ही थी—बढ़ती गई।
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हमारे किसानों की निरक्षरता की दुहाई देना एक फ़ैशन-सा हो गया है, लेकिन किसान निरक्षर होकर भी बहुत से साक्षरों से ज्यादा चतुर है। साक्षरता अच्छी चीज़ है और उससे जीवन की कुछ समस्याएँ हल हो जाती हैं, लेकिन यह समझना कि किसान निरा मूर्ख है, उसके साथ अन्याय करना है। वह परोपकारी है, त्यागी है, परिश्रमी है, किफ़ायती है, दूरदर्शी है, हिम्मत का पूरा है, नीयत का साफ़ है, दिल का दयालु है, बात का सच्चा है, धर्मात्मा है, नशा नहीं करता, और क्या चाहिए। कितने साक्षर हैं जिनमें ये गुण पाए जाएँ। हमारा तज़रबा तो ये है कि साक्षर होकर आदमी काइयाँ, बदनीयत, क़ानूनी और आलसी हो जाता है।
यदि स्वाद को जीत लिया जाए, तो ब्रह्मचर्यका पालन बहुत सरल हो जाता है।
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वे स्थान जहाँ हम अपना समय बिताने का चयन करते हैं, वह निर्णय करता है कि हम अपने लिए कैसा जीवन बना रहे हैं।
वस्तुतः योग जीवन की एक शैली है—न कि स्वयं को युवा बनाए रखने के लिए कुछ एक व्यायामों का अभ्यास मात्र।
आहार-विहार की भूलों को दूर किए बिना, सिर्फ़ हवा-पानी के सुधार से रोग दूर करने की इच्छा करना—शरीर को साफ़ पानी से धोकर मैले गमछे से पोंछने जैसा है।
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सकारात्मकता को बढ़ाने की आपकी सुपर सरल आदत, आपके चारों ओर सकारात्मकता का वातावरण बनाने से शुरू होती है।
कभी-कभी रोजमर्रा की ज़िंदगी की नीरसता में हम खेल के महत्व को भूल जाते हैं।
अगर हम रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी एक घटना को ठीक से नहीं बता पाते तो हम पूरे ब्रह्मांड से जुड़े बड़े सवालों के बारे में इतनी आसानी से कैसे सोच सकते हैं?
व्यस्तता को दूर रखें और इसके बजाए उन गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करें, जो वास्तविक उत्पादकता की ओर ले जाती हैं।
व्यस्त गतिविधियाँ दलदल की तरह होती हैं, वे आपको खींच सकती हैं और निगल सकती हैं।
ख़ुशी को रोजमर्रा की आदत बनाने के दो सरल तरीक़े हैं–अपने नकारात्मक या उदास विचारों को पकड़ें और उन्हें सकारात्मक विचारों से बदल डालें।