भारत की सभ्यता अद्भुत इस माने में रही है कि इतना स्थिर समाज, इतनी सदियों तक चीन के अलावा और कहीं क़ायम नहीं रहा। लेकिन इस सामाजिक स्थिरता के साथ-साथ; जितनी राज्य-गत अराजकता और अस्थिरता भारत में रही है, उतनी पृथ्वी पर और कहीं नहीं रही।
हम जो बातें पढ़ते हैं वे सभ्यता की हिमायत करने वालों की लिखी बातें होती हैं। उनमें बहुत होशियार और भले आदमी हैं। उनके लेखों से हम चौंधिया जाते हैं। यों एक के बाद दूसरा आदमी उसमें फँसता जाता है।
धर्म स्त्री पर टिका है, सभ्यता स्त्री पर निर्भर है और फ़ैशन की जड़ भी वही है। बात क्यों बढ़ाओ, एक शब्द में कहो—दुनिया स्त्री पर टिकी है।
समग्रता में भाषा, रूपक की सतत प्रक्रिया है। अर्थ-मीमांसा का इतिहास, संस्कृति के इतिहास का एक पहलू है। भाषा एक ही समय में एक जीवित वस्तु, जीवन और सभ्यताओं के जीवाश्मों का संग्रहालय है।
हर जाति की सभ्यता की आंतरिक प्रार्थना यही होती है कि उसमें श्रेष्ठ महापुरुषों का आविर्भाव हो।
जो समाज सभ्य नहीं होता है; उस समाज में स्वभाव से बलिष्ठ व्यक्ति भी दुर्बल हो जाता है, कारण उस समाज के व्यक्ति अपने आपको यथेष्ठ मात्रा में प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
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प्रत्येक देश और समाज के मुहावरे उसकी सभ्यता, संस्कृति और ऐतिहासिक-भौगोलिक, स्थिति की उपज हैं। पर अँग्रेज़ी की नक़ल में भी हमें इसका भी ध्यान नहीं रहता।
मनुष्य के भीतर जो कुछ वास्तविक है, उसे छिपाने के लिए जब वह सभ्यता और शिष्टाचार का चोला पहनता है, तब उसे संभालने के लिए व्यस्त होकर कभी-कभी अपनी आँखों में ही उसको तुच्छ बनना पड़ता है।
मनु का नाम आते ही हमें अपनी सभ्यता के उस धुँधले प्रभात का स्मरण हो जाता है; जिसमें सूर्य की उषाकालीन किरणों के प्रकाश में मानव और देव, दोनों साथ-साथ विचरते हुए दिखाई देते हैं।
गंगा तो विशेष कर भारत की नदी है, जनता की प्रिय है, जिससे लिपटी हुई हैं भारत की जातीय स्मृतियाँ, उसकी आशाएँ और उसके भय, उसके विजयगान, उसकी विजय और पराजय! गंगा तो भारत की प्राचीन सभ्यता का प्रतीक रही है, निशानी रही है, सदा बलवती, सदा बहती, फिर वही गंगा की गंगा।
मनुष्य के लिए कविता इतनी प्रयोजनीय वस्तु है कि संसार की सभ्य-असभ्य सभी जातियों में, किसी-न-किसी रूप में, पाई जाती है। चाहे इतिहास न हो, विज्ञान न हो, दर्शन न हो, पर कविता का प्रचार अवश्य रहेगा।
तुम लोग इज़्ज़तों में और पर्दों में रहकर जाने किन-किन व्यर्थताओं को अपने साथ लपेट लेते हो और उनमें गौरव मानते हो। यह सब तुम लोगों की झूठी सभ्यता है, ढकोसला है। फिर कहते हो, हम सच को पाना चाहते हैं। तुम्हारा सच कपड़ों में है, लिबास में है और सच्चाई से डरने में है।
भारत में आर्य जाति के लोग पहले अरण्य-निवासी थे, फिर ग्रामवासी हुए और उसके बाद नगरवासी।
एक सभ्य समाज में मूल अधिकारों पर अमल करने के लिए, बंदूकों से रक्षा की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
कलाओं की जो उपादेयता मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन में है, वही समाज के लिए भी है। यदि कवि, गायक तथा दूसरे कलाकार न हुए होते, तो सभ्य मानव-समाज की मानसिक वृत्तियाँ इतनी तीव्र और सुसंस्कृत न हुई होतीं।
ज्यों-ज्यों हमारी वृत्तियों पर सभ्यता के नए-नए आवरण चढ़ते जाएँगे त्यों-त्यों एक ओर तो कविता की आवश्यकता बढ़ती जाएगी, दूसरी ओर कवि-कर्म कठिन होता जाएगा।
हिन्दुस्तान की सभ्यता का झुकाव नीति को मजबूत करने की ओर है, पश्चिम की सभ्यता का झुकाव अनीति को मजबूत करने की ओर है, इसलिए मैंने उसे हानिकारक कहा है।
'ईसप' की एक कहानी है जिसमें एक काणा हिरन है। जिस दिशा में उसकी फूटी आँख है, वहीं से बाण उस पर लगता है। वर्तमान मानव-सभ्यता का 'काणा' पक्ष है उसकी विषयलोलुपता।
सभ्यता या समाज अनेक श्रेणियों में सूत्रबद्ध मानव का समुदाय है, जिसके भीतर एक ढाँचा है।
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भारतीय समाज-व्यवस्था मूलतः असमतावादी थी और शोषण पर आश्रित थी। वर्ण और जाति का आधार शुचिता की भावना थी; किंतु समाज के स्तरभेद के ऐतिहासिक विकास में, शुद्ध-अशुद्ध के विचार के साथ—आर्थिक और राजनीतिक शक्ति के समीकरण भी जुड़े थे।
संस्कृति, परंपरा और सभ्यता बड़ी, शक्तिशाली अवधारणाएँ हैं। उनकी जड़ों में मिथक भी होते हैं और ऐतिहासिक अनुभवों की जातीय स्मृतियों भी।
प्रत्येक जाति और देश का अपना निहितार्थ होता है, अपनी विशेष समस्या होती है। उस अर्थ को पूरा करना पड़ता है, निरंतर प्रयास द्वारा।
सभ्यता का अर्थ है एकत्र होने का अनुशीलन। जहाँ इस ऐक्य-तत्त्व की उपलब्धि क्षीण होती है, वहीं यह दुर्बलता तरह-तरह की व्याधियों का रूप धारण करके देश पर चारों ओर से आक्रमण करती है।
कहानी का स्थान महज़ साहित्य की दृष्टि से केंद्रीय नहीं है, मनुष्य की सभ्यता में भी केंद्रीय है। सभ्यता की चर्चा करनी हो तो हमें एक कहानी के रूप में करनी होगी।
अपनी आदिम अवस्था में मनुष्य की इच्छा-शक्ति के साथ लोकहित का संबंध चाहे न रहा हो, पर समाज की सभ्यता की वृद्धि होने पर तो उसकी इच्छाएँ लोक-मंगल की ओर अवश्य उन्मुख हुईं।
जिस पदार्थ के दर्शन में मन प्रसन्न नहीं होता, वह सुंदर नहीं कहा जा सकता। यही कारण है कि भिन्न-भिन्न देशों के लोग; अपनी-अपनी सभ्यता की कसौटी के अनुसार ही सुंदरता का आदर्श स्थिर करते हैं, क्योंकि सबका मन एक-सा संस्कृत नहीं होता।
सभ्यता एक प्रकार का साँचा है, जो प्रत्येक जाति अपने सर्वश्रेष्ठ आदर्श के अनुसार निर्माण करती है, जिसमें उसके सभी स्त्री व पुरुषों के जीवन की रूपरेखा तैयार होती है।
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जो सभ्यता अचल है, वह आख़िरकार आफ़तों को दूर कर देती है।
किसी भी सभ्यता के मातहत सभी लोग संपूर्णता तक नहीं पहुँच पाए हैं।
सभ्यताओं के इतिहास में भारतीय सभ्यता की एक विशेष पहचान और अस्मिता है। संसार में सभ्यता के कई प्राचीन केंद्र रहे हैं, किंतु उनमें से अधिकांश को हम केवल उनके भग्नावशेषों द्वारा ही जानते हैं। भारतीय सभ्यता में एक अविशृंखल निरंतरता है।
अगर हम असभ्यता बरतते हैं तो अपना ही गला काट लेते हैं।
आप किस प्रकार के तकनीकी ज्ञान से उत्पादन और वितरण में लगे हैं—इसके आधार पर समाज या सभ्यता का निर्माण होता है।
एक सभ्यता कई राज्यों में बँटी हुई हो सकती है, और वे राज्य इस हद तक एक-दूसरे से लड़ते रह सकते हैं कि सभ्यता के ख़त्म होने का ख़तरा पैदा हो जाए। यूनानी सभ्यता के साथ ऐसा ही हुआ।
सभ्यता के हिमायती साफ कहते हैं कि उनका काम लोगों को धर्म सिखाने का नहीं है।
सभ्यता चूहे की तरह फेंककर काटती है।
सभ्यता वह आचरण है जिससे आदमी अपना फर्ज अदा करता है। फर्ज अदा करने के मानी है नीति का पालन करना। नीति के पालन का मतलब है अपने मन और इन्द्रियों को बस में रखना।
आर्य सभ्यता को जो युगांत तक फैला हुआ इतिहास है, इक्ष्वाकुवंशी राजा उसके मेरुदंड कहे जा सकते हैं।
मैं अब ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग नहीं करूँगा, मैं अब ‘सभ्यता’ शब्द का प्रयोग करना चाहता हूँ।
सभ्यता के साथ व्यक्ति के जो भी इक़रार-नामा हैं, उनका आधार अतीत है।
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