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उदारता पर उद्धरण

एक सुसंस्कृत दिमाग़ को अपने दरवाज़े और खिड़कियाँ खुली रखनी चाहिए।

जवाहरलाल नेहरू

हर राष्ट्र के लिए और हर व्यक्ति के लिए जिसको बढ़ना है, काम-काज और सोच-विचार के उन सँकरे घेरों को—जिनमें ज़्यादातर लोग बहुत अरसे से रहते आए हैं—छोड़ना होगा और समन्वय पर ख़ास ध्यान देना होगा।

जवाहरलाल नेहरू

महापुरुषों में ही इस तरह उदारता की अधिकता होती है जो अन्य लोगों में नहीं होतीं और जिससे वे त्रिभुवन को अपने वश में कर लेते हैं।

बाणभट्ट

हम पर अपने अल्पसंख्यक समुदायों के साथ-साथ, उन सभी समुदायों को लेकर ख़ास ज़िम्मेदारी है, जो आर्थिक या शिक्षा के स्तर पर पिछड़े हुए हैं और जो भारत की कुल जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा है।

जवाहरलाल नेहरू

एक व्यक्ति जो दूसरों के विचार या राय को नहीं समझ सकता है, तो इसका मतलब यह हुआ कि उसका दिमाग़ और संस्कृति सीमित है।

जवाहरलाल नेहरू

क्षमा और उदारता वही सच्ची है, जहाँ स्वार्थ की भी बलि हो।

जयशंकर प्रसाद

हिंदुस्तान को अपनी मज़हबी कट्टरता कम करना चाहिए और विज्ञान की तरफ़ ध्यान देना चाहिए, और उसे अपने विचारों और सामाजिक स्वभावों की अलहदगी से छुटकारा पाना चाहिए।

जवाहरलाल नेहरू

प्रचार के लिए हमें अपने लेखन या भाषण से किसी पर भी ज़ाती तौर से हमला नहीं करना चाहिए, बल्कि कार्यक्रमों और नीतियों पर अपनी बात रखनी चाहिए।

जवाहरलाल नेहरू

सर्वत्र उदारता से काम नहीं करना चहिए।

भास

उदार जन का सेवक भी उदार ही होता है।

भास