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अभिव्यक्ति पर उद्धरण

कविता एक सामूहिक उद्वेग और सामूहिक आवश्यकता की सहज अभिव्यक्ति है और यह व्यवस्था संपूर्ण रूप से वैयक्तिक है।

विजयदान देथा

साहित्य या कला-रचना में मनुष्य की जिस चेष्टा की अभिव्यक्ति होती है, उसे कुछ लोग मनुष्य की खेल करने की प्रवृत्ति जैसा मानते हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर

आज़ादी का अर्थ हर चीज़ पर सवाल उठाने का अधिकार है।

आई वेईवेई

कला और विज्ञान ही में मनुष्य अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति पाता है।

विजयदान देथा

नास्तिकता प्रायः धर्म की प्राणशक्ति की अभिव्यक्ति रही है, धर्म में वास्तविकता की खोज रही है।

सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

चाहे कविता किसी भाषा में हो, चाहे किसी वाद के अंतर्गत, चाहे उसमें पार्थिव विश्व की अभिव्यक्ति हो, चाहे अपार्थिव की और चाहे दोनों के अविच्छिन्न संबंध की, उसके अमूल्य होने का रहस्य यही है कि वह मनुष्य के हृदय से प्रवाहित हुई है।

महादेवी वर्मा

साहित्य उस जगह का नाम है जहाँ जाकर आप अनकही की अभिव्यक्ति के लिए शब्द ढूँढ़ सकते हैं।

कृष्ण कुमार

उसके चेहरे पर कुछ-कुछ वैसा ही करुणाजनक भाव गया था जो हिंदी सिनेमा में ग़ज़ल गाने के पहले हिरोइन के चेहरे पर जाता है।

श्रीलाल शुक्ल

प्रेम के एक छोर पर व्यक्तिगत अस्तित्व है, दूसरे पर अभिव्यक्तिगत या केवल भावनात्मक।

रवींद्रनाथ टैगोर

रस की इस उन्मत्तता से हमारा चित्त जब मथने लगता है; तब हम उसी को सिद्धि मानने लगते हैं, किंतु नशे को कभी भी सिद्धि नहीं कहा जा सकता है, असतीत्व को प्रेम तो नहीं कहा जा सकता है, ज्वर में विकार की दुर्वार उत्तेजना को, स्वास्थ्य के बल की अभिव्यक्ति नहीं कहा जा सकता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

सूक्ष्म अभिव्यक्ति के लिए लोकभाषाओं से बल प्राप्त करना ही होगा।

कुबेरनाथ राय

बहुत से पुराने शब्द हैं जो अत्यंत अभिव्यक्ति-प्रवण है। परंतु प्रयोग होने से लोग भूल गए हैं।

कुबेरनाथ राय

अनुभूति की असाधारणता व्यक्त करने के लिए साधारण भाषा सहज नहीं होती।

रवींद्रनाथ टैगोर

सामान्य मनुष्य के साथ कलाकार का सिर्फ़ मन की अनुभूति को व्यक्त करने की क्षमता और अक्षमता को लेकर अंतर होता है, दुःख पाने पर सामन्य मनुष्य बेजार होकर रोना—धोना शुरू कर देता है, कलाकार रोता नहीं है, किंतु उसके मन का रुदन कला के माध्यम से एक अपरूप सुंदर छंद में व्यक्त होता है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

जनतंत्र वह हैं जिसमें रास्तें चलने वाला जो बोले वह भी सुना जाए।

महात्मा गांधी

सबको ऑक्सीजन चाहिए, सिर्फ़ जीते रहने या स्वस्थ बने रहने के लिए नहीं, सोचने और फ़ैसले लेने के लिए भी।

कृष्ण कुमार

एलियट कला को व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति नहीं मानते हैं, किन्तु रवीन्द्रनाथ और इक़बाल, दोनों का विचार है कि कला व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है।

रामधारी सिंह दिनकर

हृदय का जगत अपने को व्यक्त करने के लिए व्याकुल रहता है, इसी से चिरकाल से मनुष्य में साहित्य का आवेग मिलता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

अभिव्यक्ति मानव हृदय का स्वाभाविक गुण है।

प्रेमचंद

दुनिया नहीं बदलेगी अगर आप ज़िम्मेदारी का बोझ अपने कंधों पर नहीं लेंगे।

आई वेईवेई

अगर आपको इसलिए मार दिया जाता है; क्योंकि आप एक लेखक हैं, तो आप जानते हैं कि यह सम्मान की अधिकतम अभिव्यक्ति है।

मारियो वार्गास ल्योसा
  • संबंधित विषय : सच

स्वयं के भाव-स्वभाव से घनिष्ठ परिचय के अभाव में, व्यक्तिगत अभिव्यक्ति-शैली का विकास नहीं हो सकता।

गजानन माधव मुक्तिबोध

अब हम पुराने तरीके से लिखने की अपनी योग्यता को खो चुके हैं। अब हमें नयापन पसंद है। हम मानव जीवन को अभिव्यक्त करने के लिए नई विधाएँ और नई संभावनाओं को खोज रहे हैं।

लास्ज़लो क्रास्ज़्नाहोरकाई

उल्लास की अभिव्यक्ति के लिए शब्द क्षमता घट रही थी और उसका स्थान पटाख़े ले रहे थे।

कृष्ण कुमार

क्रोध का एक हल्का रूप है चिड़चिड़ाहट, जिसकी व्यंजना प्रायः शब्दों ही तक रहती है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

छाया भारतीय दृष्टि से अनुकृति और अभिव्यक्ति की भंगिमा पर अधिक निर्भर करती है। ध्वन्यात्मकता, लाक्षणिकता, सौंदर्यमय प्रतीक-विधान और उपचारवक्रता के साथ स्वानुभूति की विवृति छायावाद की विशेषताएँ हैं। अपने भीतर से मोती के पानी की तरह आंतर स्पर्श करके भाव-समर्पण करने वाली अभिव्यक्ति छाया कांतिमयी होती है।

जयशंकर प्रसाद

भरत मुनि ने जब 'नाट्यशास्त्र' लिखा तो 'नाट्यशास्त्र' को उन्होंने पंचम् वेद कहा; अर्थात् चार वेदों की परम्परा में एक नये वेद की आवश्यकता है। उस नए वेद की घोषणा के साथ इस देश का जन-समुदाय एक नए परिवर्तन की, एक नई क्रांति की सूचना देता है।

नामवर सिंह

सृष्टि मात्र का मतलब ही है अभिव्यक्ति।

रवींद्रनाथ टैगोर

एक छोटा-सा कर्म लाखों विचारों के बराबर है।

आई वेईवेई

मेरा पसंदीदा शब्द : ‘करो’।

आई वेईवेई

चीन के बुद्धिजीवियों और प्रोफ़ेसरों और उनका बचाव करने वाले राजनीतिक माफ़िया के बीच एक महीन-सी रेखा है जो उन्हें अलग करती है।

आई वेईवेई

कहिए आपको जो कहने की ज़रूरत है—बिल्कुल सीधे और सादे शब्दों में, और फिर उसकी ज़िम्मेदारी लीजिए

आई वेईवेई

बोलने की आज़ादी में यह समाहित है कि दुनिया परिभाषित नहीं है। यह तभी अर्थपूर्ण होती है जब लोगों को यह अनुमति हो कि वे दुनिया को अपने तरीके से देख सकें।

आई वेईवेई

अभिव्यक्ति की कुशल शक्ति ही तो कला।

मैथिलीशरण गुप्त
  • संबंधित विषय : कला

धर्म की चरम अभिव्यक्ति आचरणों की पवित्रता में देखी जाती है।

रामधारी सिंह दिनकर

सचमुच मनुष्य के वास्तविक रूप की अकुण्ठ अभिव्यक्ति, सबके लिए सह्य नहीं होती। मगर मन में जो गुदगुदी अनायास पैदा होती है, उसे अस्वीकार करना सबके लिए कठिन होता है।

कृष्ण बिहारी मिश्र

जिनके स्वादिष्ट भोजन की ओर बालक लालायित दृष्टि से देखते रहें और विधिवत खा पाएँ, तो उन्हें इससे बड़ा पाप क्या होगा?

वेदव्यास