Font by Mehr Nastaliq Web

मुक्त पर उद्धरण

सूरदास के काव्य में कृष्ण से राधा और दूसरी गोपियों का प्रेम, सामंती नैतिकता के बंधनों से मुक्त प्रेम है।

मैनेजर पांडेय

भक्त कवियों की दृष्टि में मानुष-सत्य के ऊपर कुछ भी नहीं है—न कुल, जाति, धर्म, संप्रदाय, स्त्री-पुरुष का भेद, किसी शास्त्र का भय और लोक का भ्रम।

मैनेजर पांडेय

मुक्ति का अर्थ किसी विद्यमान वस्तु का विनाश करना नहीं है, बल्कि केवल अविद्यमान और सत्य मार्ग के अवरोधक कोहरे का निवारण करना है। जब अविद्या का यह अवरोध हट जाता है, तभी पलकें ऊपर उठ जाती हैं—पलकों का हटना आँखों की क्षति नहीं कहा जा सकता।

रवींद्रनाथ टैगोर

एक सुसंस्कृत दिमाग़ को अपने दरवाज़े और खिड़कियाँ खुली रखनी चाहिए।

जवाहरलाल नेहरू

भक्तिकाव्य के बाहर भी अधिकांशतः प्रेम की वही कविता महत्त्वपूर्ण है, जो सम-विषम की रूढ़ि से मुक्त है।

मैनेजर पांडेय

कबीर शास्त्रीय ज्ञान के बोझ से मुक्त है।

मैनेजर पांडेय

स्वर्ग-नरक तथा आकाश के परे, राज करने वाले शासकों से संबद्ध अनेक कथाओं अथवा अंधविश्वासों के द्वारा मनुष्य को भुलावे में डालकर, उसे आत्मसमर्पण के लक्ष्य की ओर अग्रसर किया जाता है। इन सब अंधविश्वासों से दूर रहकर, तत्वज्ञानी वासना के त्याग द्वारा जान-बूझकर इस लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता है।

स्वामी विवेकानन्द

उत्पीड़ितों के लिए निहायत ज़रूरी है कि वे अपनी मुक्ति की सभी अवस्थाओं में, स्वयं को पूर्णतर मनुष्य बनने के सत्तामूलक तथा ऐतिहासिक कार्य में संलग्न मनुष्यों के रूप में देखें।

पॉलो फ़्रेरा

उत्पीड़ित लोग स्वयं पर भरोसा करना तभी शुरू करते हैं, जब वे उत्पीड़क को खोज लेते हैं और अपनी मुक्ति के लिए संगठित संघर्ष करने लगते हैं।

पॉलो फ़्रेरा

घर-गृहस्थी के प्रति धार्मिक कट्टरता जैसा जुड़ाव, दरअसल बाहरी दुनिया के प्रति शत्रुता का ही दूसरा नाम है—और अनजाने में ही इससे बाहरी दुनिया के नुक़सान के साथ-साथ, घर-गृहस्थी का और उन उद्देश्यों का—जिनके लिए हम जी रहे होते हैं—नुक़सान होने लगता है।

जॉन स्टुअर्ट मिल

मैं मुक्त हूँ, सदा मुक्त रहूँगा। मेरी अभिलाषा है कि सभी कोई मुक्त हो जाएँ—वायु के समान मुक्त।

स्वामी विवेकानन्द

‘कर्तव्य’ में मैं विश्वासी नहीं हूँ, कर्तव्य तो संसारियों के लिए एक अभिशाप है—संन्यासियों का कोई कर्तव्य नहीं है।

स्वामी विवेकानन्द

कर्तव्य तो एक व्यर्थ की बकवास है। मैं मुक्त हूँ—मेरे सारे बंधन कट चुके हैं। यह शरीर कहीं भी रहे या रहे, इसकी मुझे क्या परवाह।

स्वामी विवेकानन्द

हम अपनी सारी शक्तियों को किसी एक विषय की ओर लगा देने के फलस्वरूप उसमें आसक्त हो जाते हैं; तथा उसकी और भी एक दिशा है, जो नेतिवाचक होने पर भी उसके सदृश ही कठिन है—उस ओर हम बहुत कम ध्यान देते हैं—वह यह है कि क्षण भर में किसी विषय से अनासक्त होने की, उससे अपने को पृथक् कर लेने की शक्ति। आसक्ति और अनासक्ति, जब दोनों शक्तियों का पूर्ण विकास होता है, तभी मनुष्य महान् एवं सुखी हो सकता है।

स्वामी विवेकानन्द

सब पर समान स्नेह रखना अत्यंत कठिन है, किंतु उसके बिना मुक्ति नहीं मिल सकती।

स्वामी विवेकानन्द

हम जिससे मुक्त होकर बाहर निकलकर नहीं आएँगे, उसे हम नहीं प्राप्त कर पाएँगे।

रवींद्रनाथ टैगोर

जो बंधन के कारण हैं, वे बंधन के मार्ग हैं। उनका नाश करने वाली आत्मा की शुद्ध अवस्था मोक्षमार्ग है कि जिससे भवभ्रमण का अंत होता है।

श्रीमद् राजचंद्र

मुक्ति एक प्रसव है और यह प्रसव पीड़ादायक है।

पॉलो फ़्रेरा

हमारे जीवन की एकमात्र साधना यही है कि हमारी आत्मा का जो स्वभाव है, उसी को हम बाधा मुक्त बना लें।

रवींद्रनाथ टैगोर

मुक्ति केवल उसके लिए है, जो दूसरों के लिए सर्वस्व त्याग देता है; परंतु वे लोग जो 'मेरी मुक्ति-मेरी मुक्ति' की अहर्निश रट लगाए रहते हैं, वे अपना वर्तमान और भावी वास्तविक कल्याण, नष्ट कर इधर-उधर भटकते रह जाते हैं।

स्वामी विवेकानन्द

अगर मैं कहूँ; मनुष्य मुक्ति चाहता है, तो यह मिथ्या बात होगी। मनुष्य मुक्ति की अपेक्षा बहुत सारी चीज़ें चाहता है। मनुष्य अधीन होना चाहता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

मनुष्य का इतिहास साक्षी है कि विराग मनुष्य की आत्मा में बहुत गहरा बसा हुआ है।

रवींद्रनाथ टैगोर

आत्मिक साधना का एक अंग है, जड़ विश्व के अत्याचार से आत्मा को मुक्त करना।

रवींद्रनाथ टैगोर

मुक्त दु:ख अभिनव प्रज्ञा देता है। उसे पुराने अनुभव के भारी संपुट में बंद करने से उसकी शक्ति कम हो जाती है।

दुर्गा भागवत

जीवन का जाल कभी-कभी बहुत जटिल हो जाता है; संसार का प्रवाह कभी-कभी प्रलय की भँवर में हमें खींचता रहता है, तब मनुष्य व्याकुल होकर कह उठता है—मुक्ति दो, मुक्तिदाता, मुझे मुक्ति दो!

रवींद्रनाथ टैगोर

सतिगुरु जीव को मुक्ति प्रदान करता है और परमात्मा के ध्यान में लगाता है। इस प्रकार हरिपद को जानकर जीव प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं।

गुरु नानक

हम वह नहीं हैं जो हम बनना चाहते हैं, लेकिन कुछ पाने की हमारी इच्छा हमें आगे बढ़ने की क्षमता देती है।

शम्स तबरेज़ी

त्याग के द्वारा हम मुक्त होते हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर

अहं अपनी मृत्यु के द्वारा आत्मा के अमरत्व को व्यक्त करता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

संकीर्णतावाद किसी भी क्षेत्र का हो, मानवमुक्ति में बाधक होता है।

पॉलो फ़्रेरा

जहाँ एक ओर हर व्यक्ति; इस दुनिया में अपना पूरा जीवन लगा कर कुछ बनना चाहता है और फिर उसके मरने के बाद जो कुछ बचता है, वहीं दूसरी ओर एक सच्चा सूफ़ी इस दुनिया से कुछ नहीं चाहता—इस जीवन से हमें शून्य महत्वाकांक्षाएँ रखनी चाहिए।

शम्स तबरेज़ी

जिन समाजों में नारी अपनी मुक्ति के लिए छटपटा रही थी, उनमें द्रौपदी को अपने लिए प्रेरणा और मुक्ति का प्रतीक माना गया।

राधावल्लभ त्रिपाठी

विज्ञान की साधना जिस प्रकार हमारे प्राकृतिक ज्ञान को बँधनों से मुक्त कर देती है, वैसे ही मंगल की साधना हमारे प्रेम, हमारे आनंद के बँधनों से मुक्त कर देती है।

रवींद्रनाथ टैगोर

जब दरवाज़ा इतना खुला है, तो तुम जेल में क्यों रहते हो?

रूमी

आत्मा की अपनी शुद्धता मोक्ष है। जिससे वह शुद्धता प्रकट होती है, वह मोक्षमार्ग है।

श्रीमद् राजचंद्र

बाहर भटकते हुए जीव को गुरु द्वारा ही हृदय-महल में वापस लाया जा सकता है, और मिलाने वाला प्रभु स्वयं ही मिला देता है।

गुरु नानक

शाप हमें यातना देता है, हमें मांजता है और इस योग्य बनाता है कि हम शुद्ध होकर शाप से उबरें। इसीलिए शाप पवित्र है और शिरोधार्य है।

राजेंद्र माथुर

अब और इंतज़ार करें। समुद्र में गोता लगाएँ, ख़ुद को छोड़ दें और समुद्र को अपना होने दें।

रूमी

मुक्ति व्यापक तथा व्यापकतर क्रियाशीलता का दूसरा नाम है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

क़ाज़ी, ब्राह्मण एवं योगी ये तीनों ही जीवों हेतु विनाश का बंधन हैं।

गुरु नानक

छुट्टा हो जाने पर भी बहुत सुख मिलता हो, ऐसा कहना कठिन है।

नामवर सिंह

अगर हम कर्त्ता होना चाहते हैं तो हमें मुक्त होना होगा।

रवींद्रनाथ टैगोर

उत्पीड़ितों का महान मानवतावादी और ऐतिहासिक कार्यभार है : स्वयं को और साथ ही अपने उत्पीड़कों को भी मुक्त करना।

पॉलो फ़्रेरा