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जे. कृष्णमूर्ति

1895 - 1986 | आँध्र प्रदेश

समादृत भारतीय दार्शनिक, अध्यात्मिक मार्गदर्शक और लेखक। 'फ्रीडम फ्रॉम दि नोन', 'कमेन्टरीज़ ऑन लिविंग' आदि कृतियों के लिए उल्लेखनीय।

समादृत भारतीय दार्शनिक, अध्यात्मिक मार्गदर्शक और लेखक। 'फ्रीडम फ्रॉम दि नोन', 'कमेन्टरीज़ ऑन लिविंग' आदि कृतियों के लिए उल्लेखनीय।

जे. कृष्णमूर्ति की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 109

ध्यान के लिए वस्तुतः सर्वोच्च ढंग की संवेदनशीलता चाहिए तथा प्रचण्ड मौन की एक गुणवत्ता चाहिए—ऐसा मौन जो प्रेरित, अनुशासित या साधा हुआ नहीं हो।

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मन—जिसमें मस्तिष्क और हृदय समाविष्ट हैं—को पूर्ण संगति में होना चाहिए।

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हिंसा से मुक्त हो जाने का अर्थ है उस प्रत्येक चीज़ से मुक्त हो जाना, जिसे एक मनुष्य को साँप रखा है, जैसे—विश्वास, धार्मिक मत, कर्मकाँड तथा इस तरह की मूढ़ताएँ : मेरा देश, मेरा ईश्वर, तुम्हारा ईश्वर, मेरा मत, तुम्हारा मत, मेरा आदर्श, तुम्हारा आदर्श।

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बुद्धत्व का आगमन दूसरे द्वारा नहीं होता, इसका आगमन स्वयं आपके अवलोकन एवं स्वयं की समझ से ही होता है।

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बस आप जानिए कि असावधान हैं; इस तथ्य के प्रति चुनावरहित रूप से सजग रहिए कि आप असावधान हैं, और हैं तो क्या हुआ? यानी इसके लिए चिंता मत कीजिए एवं असावधानी की इस अवस्था में, असावधानी के इन क्षणों में, यदि आप कुछ कर बैठें–तो उस क्रिया के प्रति सजग रहिए।

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