
कार्य-सिद्धि के उपायों में लगे रहने वाले भी असावधानी से अपने कार्यों को नष्ट कर देते हैं।

एक ही सुवर्ण कणिका आदि भेद से जिस प्रकार भिन्न-भासित होता है तथा एक ही जल, समुद्र, नदी, तालाब आदि के नाम से जिस प्रकार भिन्न प्रतीत होता है उसी प्रकार जो एक ही शिव तत्त्व पशु-पक्षी देव-दानव और मानव के भेद से भिन्न प्रतीत होता है, उस परम तेजोमय को नमस्कार है।

नितांत बेबस अथवा निरुपाय के लिए ही प्रकृति का सहायक हाथ पहुँचता है।