जब तक स्त्रीवादी विचारों को केवल कुछ शिक्षित लोग ही समझेंगे, तब तक कोई जन-आधारित स्त्रीवादी आंदोलन नहीं होगा।
            
            स्त्रीवाद स्मृति है।
            स्त्री के अस्तित्व के संकट को लेकर बुनियादी प्रश्न, उन्नीसवीं शताब्दी के आख़िरी दशकों और बीसवीं के आरंभिक दो दशकों में रमाबाई ने उठाए।