 
            कायर में कभी नैतिक बल हो ही नहीं सकता।
 
            यह याद रखना चाहिए कि व्यभिचारी पुरुष हमेशा कायर होता है। वह पवित्र स्त्री का तेज़ सह नहीं सकता। उसके गरजने से वह काँपने लगता है।
 
             
            आरोप ग़लत हो या सही, पर गुमनाम शिकायत करना एक कायरतापूर्ण कार्य है।
 
            बोलने में मर्यादा मत छोड़ना। गालियाँ देना तो कायरों का काम है।
 
            जिसकी भुजाओं में दम न हो, उसके मस्तिष्क में तो कुछ होना ही चाहिए।
 
            मेरी अहिंसा का सिद्धांत एक अत्यधिक सक्रिय शक्ति है। इसमें कायरता तो दूर, दुर्बलता तक के लिए स्थान नहीं है। एक हिंसक व्यक्ति के लिए यह आशा की जा सकती है कि वह किसी दिन अहिंसक बन सकता है, किंतु कायर व्यक्ति के लिए ऐसी आशा कभी नहीं की जा सकती। इसीलिए मैंने इन पृष्ठों में अनेक बार कहा है कि यदि हमें अपनी, अपनी स्त्रियों की और अपने पूजास्थानों की रक्षा सहनशीलता की शक्ति द्वारा अर्थात् अहिंसा द्वारा करना नहीं आता, तो अगर हम मर्द हैं तो, हमें इन सबकी रक्षा लड़ाई द्वारा कर पाने में समर्थ होना चाहिए।
 
             
             
            अहिंसा कायरता के आवरण में पलने वाला क्लैब्य नहीं है। वह प्राण-विसर्जन की तैयारी में सतत जागरूक पौरुष है।
 
            कायर होना एक बात है, कायर होने को स्वीकार करना दूसरी।
 
            कायर को सबसे बड़ा डर यहीं होता है कि कहीं कोई उसे कायर न कह दें। जो जितना बड़ा कायर होता है, उतना ही व्यापक होता है उसका अपराध-बोध। उतनी ही भयंकर होती है उसकी वेदना और शर्मनाक उसकी कायरता।
 
             
            कायर मनुष्य कभी सदाचारी और नीतिमान हो ही नहीं सकता।
 
            कायर! तू इस प्रकार बिजली के मारे हुए मुर्दे की भाँति यहाँ क्यों निच्चेष्ट होकर पड़ा है? तू खड़ा हो, शत्रुओं से पराजित होकर यहाँ पड़ा मत रह।
 
            भय जब स्वभावगत हो जाता है, तब कायरता या भीरुता कहलाता है।
 
            दुःख से डरना कायरता है।
 
            पशु-बल जिसके पास जितना अधिक होता है वह उतना ही अधिक कायर बन जाता है।
 
            कायर लोग अपनी मृत्यु से पूर्व बहुत बार मरते हैं किंतु वीर केवल एक बार ही मृत्यु का स्वाद लेते हैं।
 
            वीरता जब भागती है, तब उसके पैरों से राजनीतिक छल-छद्म की धूल उड़ती है।
 
             
            जीते जी मर जाने को यह मतलब नहीं कि आप कोई हरकत ही न करें या किसी भी हरकत पर हैरान या परेशान न हों।
 
            कायर पिता संतान को अच्छे नहीं लगते।
