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स्वीकृति पर उद्धरण

अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार करके उसकी ग़ुलामी करना ही कायरपन है।

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय

प्रेम के भ्रम में भी प्रेम की आंशिक स्वीकृति होती है। शायद प्रेम की समग्रता को स्वीकार करना बहुत दुर्लभ है।

रघुवीर चौधरी

जीवन में हर वह चीज़ जिसे हम वास्तव में स्वीकार करते हैं, उसमें बदलाव आता है। इसलिए दुख को प्रेम बनना चाहिए। यही रहस्य है।

कैथरीन मैंसफ़ील्ड

जीवन की समस्तता और समग्रता के प्रति स्वीकार का पा लेने का नाम ही सम भाव है।

ओशो

क्या जिसे हम क्षितिज कहते हैं, वह वास्तविकता है? या हम ऐसा कह रहे हैं? लेकिन हम अनंत को नहीं देख सकते, इसलिए हम ऐसी काल्पनिक सीमाओं को स्वीकार कर लेते हैं।

रघुवीर चौधरी

एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति का धर्म परिवर्तन करने को मैं उचित नहीं मानता। मेरी कोशिश किसी दूसरे के धार्मिक विश्वास को हिलाने की या उनकी नींव खोदने की नहीं, बल्कि उसे अपने धर्म का एक अच्छा अनुयायी बनाने की होनी चाहिए। इसका तात्पर्य है सभी धर्मों की सच्चाई में विश्वास और इस कारण उन सबके प्रति आदरभाव का होना। इसका यह बी मतलब है कि हममें सच्ची विनयशीलता होनी चाहिए, इस तथ्य की ल्वीकृति होनी चाहिए कि चूँकि सभी धर्मों को हाड़-माँस के अपूर्ण माध्यम से दिव्य-ज्ञान प्राप्त हुआ है, इसलिए सभी धर्मों में कम या ज़्यादा मात्रा में मानवीय अपूर्णताएँ मौजूद हैं।

महात्मा गांधी

कवि के लिए, मौन स्वीकार्य ही नहीं, बल्कि ख़ुश करने वाली प्रतिक्रिया है।

कोलेट

मेरे विचारों का दायरा संभवतः मेरी अपेक्षा से कहीं अधिक सँकरा है।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

रुचि वस्तुओं को स्वीकार्य बना देती है।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

स्वीकारोक्ति को आपके नए जीवन का अंग बनना पड़ेगा।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

चुंबन भी एक कर्मकांड है, किंतु वह सड़ी हुई औपचारिकता नहीं है। पर कर्मकांड वहीं तक स्वीकार्य है, जहाँ तक वह चुंबन की तरह प्रामाणिक है।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

अपने मंदिरों को अछूतों के लिए खोलकर सच्चे देव-मंदिर बनाइए। आपके ब्राह्मण-ब्राह्मणेतर के झगड़ों की दुर्गंध भी कँपकँपी लाने वाली है। जब तक आप इस दुर्गंध को नहीं मिटाएँगे, तब तक कोई काम नहीं होगा।

सरदार वल्लभ भाई पटेल

जिसके चित्त में ‘नहीं’ है, वह समग्र से एक नहीं हो पाता है। सर्व के प्रति ‘हाँ’ अनुभव करना जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है क्योंकि वह ‘स्व’ को मिटाती है और ‘स्वयं’ से मिलाती है।

ओशो

जिसकी रचना को जनता का हृदय स्वीकार करेगा उस कवि की कीर्ति तब तक बराबर बनी रहेगी जब तक स्वीकृति बनी रहेगी।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

हम नहीं जानते कि हमारा वर्तमान जीवन बहुत बेहतर है, या आने वाले बदलावों के साथ जीवन बहुत बेहतर हो जाएगा। आपको जीवन में आने वाले बदलावों को ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार करना चाहिए और जीवन जीना चाहिए।

शम्स तबरेज़

जब एक मनुष्य देखता है कि यह पीड़ा उसके भाग्य में ही लिखी है, तो उसे अपनी पीड़ा को ही एक कार्य के रूप में स्वीकार करना होगा—यही उसका एकमात्र अनूठा कार्य होगा।

विक्टर ई. फ्रैंकल

जो है आत्मविश्वासी वही तो अस्तिवादी है।

मैथिलीशरण गुप्त