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मर्यादा पर उद्धरण

समाज ने स्त्रीमर्यादा का जो मूल्य निश्चित कर दिया है, केवल वही उसकी गुरुता का मापदंड नहीं। स्त्री की आत्मा में उसकी मर्यादा की जो सीमा अंकित रहती है, वह समाज के मूल्य से बहुत अधिक गुरु और निश्चित है, इसी से संसार भर का समर्थन पाकर जीवन का सौदा करने वाली नारी के हृदय में भी सतीत्व जीवित रह सकता है और समाज भर के निषेध से घिर कर धर्म का व्यवसाय करने वाली सती की साँसें भी तिल-तिल करके असती के निर्माण में लगी रह सकती हैं।

महादेवी वर्मा

तुम्हारे हाथ स्वार्थमयी पृथ्वी की कलुष-कालिमा पोंछ देते हैं। प्रेम के दीप जलाकर, कर्तव्य की तपस्या से तुम संसार-पथ में गरिमा का वितरण करती हो।

नलिनीबाला देवी

घर की दीवारों में स्त्री को मर्यादित रखना किस काम का? वास्तविक मर्यादा तो उसका सतीत्व ही है।

तिरुवल्लुवर

परिवार मर्यादाओं से बनता है। परस्पर कर्त्तव्य होते हैं, अनुशासन होता है और उस नियत परंपरा में कुछ जनों की इकाई एक हित के आसपास जुटकर व्यूह में चलती है। उस इकाई के प्रति हर सदस्य अपना आत्मदान करता है, इज़्ज़त ख़ानदान की होती है। हर एक उससे लाभ लेता है और अपना त्याग देता है।

जैनेंद्र कुमार

सती की स्थिति (मर्यादा) मृणालतंतु के समान है जो थोड़ी भी चपलता से टूट जाती है।

श्रीहर्ष