विश्वास पर उद्धरण
विश्वास या भरोसे में
आश्वस्ति, आसरे और आशा का भाव निहित होता है। ये मानवीय-जीवन के संघर्षों से संबद्ध मूल भाव है और इसलिए सब कुछ की पूँजी भी है। इस चयन में इसी भरोसे के बचने-टूटने के वितान रचती कविताओं का संकलन किया गया है।

प्रेम नाम का कोई शाश्वत सूत्र नहीं है जो जीवन भर अपनी उपस्थिति का यक़ीन दिलाता रहे।

प्रतिभाशाली लोगों की प्रशंसा की जाती है, धनवानों से ईर्ष्या की जाती है, शक्तिशाली लोगों से डर लगता है; लेकिन केवल चरित्र वाले लोगों पर ही भरोसा किया जाता है।

मैं समझता हूँ कि बेकार राज्य-प्रबंधन बेकार परिवार-प्रबंधन को प्रोत्साहित करता है। हमेशा हड़ताल पर जाने को तत्पर मज़दूर अपने बच्चों को भी व्यवस्था के प्रति आदर-भाव नहीं सिखा सकता।

प्यार—देखभाल, प्रतिबद्धता, ज्ञान, ज़िम्मेदारी, सम्मान और विश्वास का मेल है।

इस पर भरोसा मत करो कि कोई भी दोस्त दोषों के बिना है, और किसी स्त्री से प्यार करो, परी से नहीं।

मैं जीवन के बाद के जीवन की कल्पना नहीं कर पाता : जैसे ईसाई या अन्य धर्मों के लोग विश्वास रखते हैं और मानते हैं जैसे कि सगे-संबंधियों और दोस्तों के साथ हुई बातचीत जिसे मौत आकर बाधित कर देती है, और जो आगे भी जारी रहती है।

सपने कैसे मरते हैं, इस सच्चाई का पता लगाने के लिए, आपको सपने देखने वालों के शब्दों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

लोगों को चाहिए शैतान जिस पर वे विश्वास कर सकें—एक सच्चा, भयानक दुश्मन। एक शैतान जिसके वे ख़िलाफ़ हो सकें। नहीं तो, सब कुछ हम-बनाम-हम है।

ब्राह्मण, गौ, कुटुंबी, बालक, स्त्री, अन्नदाता और शरणागत- ये अवध्य होते हैं।

जीवन के पवित्र रूप में विश्वास करो।

सिर्फ़ विश्वास करने से काम नहीं चलता। आश्वस्त भी होना चाहिए—अनुभव से।

भगवान में विश्वास करने से इनकार करने में बहुत गर्व शामिल है।

विश्व तुम्हारा बाहुबल नहीं, बल्कि नीरव आश्वासन और सुकुमार हृदय की शक्ति का निर्झर विश्वास ही चाहता है।

मैं जब पढ़ती हूँ, तब मैं इतनी ख़ुशी और आज़ादी महसूस करती हूँ कि मुझे विश्वास हो जाता है कि अगर मेरे पास हर समय किताबें हों तो मैं अपने जीवन के प्रत्येक कष्ट को सह सकती हूँ।

समाज धर्म के कारण से संगठित रहते हैं चाहे लोग उसका (धर्म का प्रदर्शन करें या उसे अपने हृदय में रखें। जब धर्म समाप्त हो जाता है तब पारस्परिक विश्वास भी नष्ट हो जाता है, लोगों का आचरण भ्रष्ट हो जाता है और उसका फल राष्ट्र को भुगतना पड़ता है। धर्म सुलाने वाला नहीं है अपितु शक्ति का आधार-स्तंभ है।

यह सर्वविदित है कि जो लोग ख़ुद पर भरोसा नहीं करते हैं, वे कभी दूसरों पर भरोसा नहीं करते हैं।
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डर के साथ झूठ और औचित्य भी आते हैं, जो चाहे कितने भी विश्वसनीय क्यों न हों; हमारे आत्म-सम्मान को कम कर देते हैं।
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आज मैं प्रेम की संभावना में विश्वास करता हूँ; इसीलिए मैं इसकी ख़ामियों, इसकी विकृतियों का पता लगाने का प्रयास करता हूँ।

मेरा विश्वास करो, नीरस व्यक्ति उपनिवेशवादियों से अधिक भयानक हैं।

आपको विश्वास करने की आवश्यकता है कि आप फिर से सो सकते हैं।

भय का अनुभव केवल उन्हें ही होगा जिनको विश्वास नहीं है।

नींद कब से विश्वास का विषय बन गई?

जब हम अतीत के बारे में सोचते हैं, तब हम सुंदर चीज़ों को चुनते हैं। हम विश्वास करना चाहते हैं कि सब कुछ ऐसा ही था।

आप जो कहते हैं, मैं उस पर विश्वास नहीं कर सकता; क्योंकि मैं देखता हूँ कि आप क्या करते हैं।

मैं नर्क की तुलना में पुनर्जन्म में विश्वास करती हूँ। अगर लौटने का विकल्प हो, तब पुनर्जन्म का विचार और भी अधिक सहनीय हो जाता है।

यह मेरा विश्वास है कि आम तौर पर सच झूठ से बेहतर होता है।

ईश्वर नहीं, बल्कि उसमें विश्वास मायने रखता है।

जब आप विश्वास और ताक़त के पदों पर पहुँचते हैं, तो सोचने से पहले सपना देखें।

‘कला के लिए कला’ खोखला वाक्यांश है। सत्य के लिए कला, शुभ और सुंदर के लिए कला—मुझे इसी विश्वास की तलाश है।

यदि कोई ईश्वर पर पूरा भरोसा कर सकता है तो दूसरों के मन (की सत्ता) पर क्यों नहीं?

यदि आप तर्कशास्त्र में चालबाज़ी करते हैं तो आप अपने सिवाय किसे धोखा देते हैं?

बेहतरीन के लिए मेरी ललक इतनी ज़्यादा है कि सिर्फ़ अद्भुत ही मुझे शक्तिशाली लगता है। कोई भी चीज़, जिसे मैं अद्भुत में नहीं बदल सकती हूँ, मैं उसे छोड़ देती हूँ। असलियत मुझे प्रभावित नहीं करती है। मैं केवल उन्माद में, भावातिरेक में विश्वास करती हूँ, और जब सामान्य जीवन मुझे रोकता है, तो मैं, इस तरफ़ या दूसरी तरफ़ पलायन कर जाती हूँ। और दीवारें नहीं चाहिए।

यह महत्वपूर्ण है कि लोगों पर बहुत अधिक भरोसा न किया जाए।

क्या शैतान में विश्वास का यह अर्थ होता है कि हमारी प्रेरणाओं के सभी उद्गम-स्थल शुभ नहीं होते?

मैं कविता में विश्वास करती हूँ।

अपने आपको धोखा न देने जैसा कोई मुश्किल काम नहीं होता।

कुछ लोग अपने विश्वास का उपयोग बस स्वभावजन्य तर्क के शब्दांश के रूप में करते हैं; इसके बिना वे सही और ग़लत की धर्मनिरपेक्ष नियमावली के अनुसार अपनी धार्मिक और नैतिक विफलताओं का ईमानदारी से सामना करने के लिए मजबूर हो जाएँगे।

धर्म विश्वास की अपेक्षा व्यवहार अधिक है।

शैतान को तुम्हें यह विश्वास मत दिलाने दो कि तुम उससे कुछ राज़ रख सकते हो।

मैं अपनी किताबों में उस तरह के जादू में विश्वास नहीं करती, लेकिन मुझे विश्वास है कि जब आप अच्छी किताब पढ़ते हैं तो कोई जादुई घटना घट सकती है।

यदि मैं किसी घटना का सामना करने की पूर्व तैयारी कर लूँ तो विश्वास कीजिए कि वह घटना कभी नहीं घटेगी।

जो भी तुम सोचते हो, विश्वास करते या जानते हो; तुम बहुत सारे दूसरे लोग हो, पर जिस घड़ी तुम महसूस करते हो, तुम और कोई नहीं बस तुम रह जाते हो।

स्त्रियों का स्नेह-विश्वास भंग कर देना, कोमल तंतु को तोड़ने से भी सहज है, परंतु सहज होकर उसका परिणाम भी सोच लो।

जो वास्तव है उसे दबाना, जो अवास्तव है उसका आचरण करना- यही तो अभिनय है।

इतिहास विश्वास की नहीं, विश्लेषण की वस्तु है। इतिहास मनुष्य का अपनी परंपरा में आत्म-विश्लेषण है।

आस्था तर्क से परे की चीज़ है। जब चारों ओर अँधेरा ही दिखाई पड़ता है और मनुष्य की बुद्धि काम करना बंद कर देती है उस समय आस्था की ज्योति प्रखर रूप से चमकती है और हमारी मदद को आती है।

स्वयं अपने विचार पर विश्वास करना, जो तुम्हारे अपने व्यक्तिगत हृदय में तुम्हारे लिए सत्य है, उस पर विश्वास करना कि वह सबके लिए सत्य है—यही प्रतिभा है।

मेरा ईश्वर तो मेरा सत्य और प्रेम है। नीति और सदाचार ईश्वर है। निर्भयता ईश्वर है। ईश्वर जीवन और प्रकाश का मूल है। फिर भी वह इन सबसे परे है। ईश्वर अंतरात्मा ही है। वह तो नास्तिकों की नास्तिकता भी है।

पुराने दोस्त पी लेने के बाद और पराए हो जाते हैं। पी लेने के बाद दोस्तों की ज़बान खुल जाती है, दिल नहीं।

आपको अपने सिवा किसी पर भी विश्वास नहीं करना है। आपको भीतर की आवाज़ सुनने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन यदि आप उसके लिए भीतर की आवाज़ शब्द प्रयुक्त न करना चाहें तो आप 'विवेक का आदेश' शब्द प्रयुक्त कर सकते हैं। और यदि आप ईश्वर को प्रदर्शित नहीं करते हैं तो मुझे इसमें ज़रा भी संदेह नहीं है कि आप किसी और चीज़ को प्रदर्शित करेंगे जो अंत में ईश्वर सिद्ध होगी, क्योंकि सौभाग्य से इस संसार में ईश्वर के सिवा कुछ और है ही नहीं।
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