इलाचंद्र जोशी की संपूर्ण रचनाएँ
कहानी 1
निबंध 1
उद्धरण 8

मरणजयी जीवन के यथार्थ रूप को न पाने के कारण ही आज मानवता दिशा भ्रमित है। अपने जीवन काल की सीमित अवधि को ही चरम अवधि मान लेने की भ्रांति न आज चारों ओर संघर्ष, विरोध, विद्रोह और विक्षोभ फैला रखा है। प्रत्येक दिन की मृत्यु प्रत्येक संध्या में होती है और प्रत्येक काली रात की मृत्यु नए अरुणोदय में होती रहती है। यह अटूट कम ही तो महाजीवन है।