जनता अच्छी तरह जानती है कि नेता भावनाओं के व्यापारी होते हैं, फिर भी उनकी बातों में आ जाती है।
जो पंच कहता है वह परमेश्वर की आवाज़ होती है, ऐसा कहते हैं। जो जगत है वह पंच के समान है। इसलिए जो जगत कहता है, वही सही तरीक़े से ईश्वर का न्याय है।
जनता शिक्षित हो या अशिक्षित—स्मृति सबकी बराबर होती है।
जनता के दोष छिपाकर उसका बचाव करना अथवा दोष दूर किए बिना अधिकार प्राप्त करना—मुझे हमेशा अरूचिकर लगा है।
हे निशाचर! जो लोक-विरोधी कठोर कर्म करने वाला है, उसे सब लोग सामने आए हुए दुष्ट सर्प की भाँति मारते हैं।
जय बोलने के मामले में हिंदुस्तानी का भला कोई मुक़ाबला कर सकता है।
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क्रांति आम जनता और व्यक्ति से शक्ति के संचय तथा संधान की माँग करती है।
इतिहास के पाठ को ठीक से जाँचकर समझना कठिन होता है। सभी देशों के इतिहास में देखा जाता है कि जब कोई बड़ी घटना सामने आती है; तो उसके पहले लोगों पर किसी प्रबल आघात का प्रभाव पड़ चुका होता है, और लोगों के मन आंदोलित हो चुके होते हैं।
राजा प्रजा का सबसे आला दर्जे का सेवक होता है।
आज़ाद हिंदुस्तान में सारे देश पर जनता का अधिकार है।
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चाहिए यह कि लीडर तो जनता की नस-नस की बात जानता हो, पर लीडर के बारे में कुछ भी न जानता हो।
यदि लाखों साधु जनता के सेवक बन जाएँ तो देश के रचनात्मक निर्माण के लिए इतनी बड़ी फौज सहज ही तैयार हो सकती है।
गोस्वामी जी पूरे लोकदर्शी थे। लोक-धर्म पर आघात करने वाली जिन बातों का प्रचार उनके समय में दिखाई पड़ा, उनकी सूक्ष्म दृष्टि उन पर पूर्ण रूप में पड़ी।
जितना समय और पैसा पार्लियामेन्ट खर्च करती है, उतना समय और पैसा अगर अच्छे लोगों को मिले तो प्रजा का उद्धार हो जाए।
दुर्भिक्ष में जब दल के दल आदमी मर रहे हों तब कोई उसे प्रहसन का विषय नहीं समझता, लेकिन हम सहज ही कल्पना कर सकते हैं कि यह एक मसख़रे-शैतान के लिए बड़े कौतुक का दृश्य है।
समाज में सदा ही शक्तिमान लोग नहीं होते लेकिन देश की शक्ति अलग-अलग स्थानों पर जमा ऐसे लोगों की प्रतिक्षा करती है।
‘जनता शांति चाहती है’, ‘हमारी सभ्यता की नींव विश्वबंधुत्व और प्रेम पर पड़नी चाहिए’ आदि-आदि किताबी बातें सुनकर कमीना-से-कमीना देश भी सिर हिलाकर ‘हाँ’ करने से बाज़ नहीं आता और उस राजनीतिज्ञ का यह भ्रम और भी फूल जाता है कि उसने कितनी सच्ची बात कही है।
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तुम्हें खाने-पीने पहनने-ओढ़ने का कष्ट तभी तक है जब तक कि जनता हो और अगर तुम इन कष्टों से छुटकारा चाहते हो तो जनतापन छोड़कर बड़प्पन हथियाने की कोई तरकीब निकालो।
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जमहूरियत में अगर लोगों को मध्य हकूमत की रस्सी में बाँधा जाए तो टूट पड़ेंगे। वे एतबार करने से ही बढ़ सकते हैं।
जनसाधारण का मंगल बहुत-सी बातों के समन्वय से ही होता है।
मूर्खता, दुर्बलता, पक्षपात, ग़लत धारणा, ठीक धारणा, हठधर्मिता और समाचारपत्रों के अंशों के मिले-जुले रूप का नाम जनमत है।
वैर का आधार व्यक्तिगत होता है, घृणा का सार्वजनिक।
जो राजा अपना कर्तव्य-पालन नहीं करता और प्रजा अपना धर्म-पालन करती रहे तो पीछे वह प्रजा, राजा की जगह ले लेती है।
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अंधी प्रजा, ज्ञान से विहीन है और मृतक की भाँति चुपचाप अन्याय सहती है।
दुनिया वैसी ही बनेगी जैसी कि उसके सयाने आदमी सोचते हैं।
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दुनिया का नया देवता 'जनता' है। दुनिया की सारी चीज़ें सभी के लिए हैं। सभी कुछ हर एक के लिए है। जीवन का सर्वस्व एकता में है। सारा जीवन हर एक के लिए है और हर एक सारे जीवन के लिए है।
देश का भविष्य नेताओं और मंत्रियों की मुट्ठी में नहीं है, देश की जनता के ही हाथ में है।
जनता के पीठ-बल के बिना, सत्ताधीश कुछ नहीं कर सकते।
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जनता को अर्थात् ग़रीबों की सेवा करने की मेरी प्रबल इच्छा ने, ग़रीबों के साथ मेरा संबंध हमेशा ही अनायास जोड़ दिया।
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जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता की सरकार।
जनमत विधायिका की अपेक्षा अधिक सशक्त होता है। और लगभग उतना ही शक्तिशाली है जितने दस धर्मनियम।
मनु के अनुसार स्त्री उत्तम संतति और प्रजाविशुद्धि का हेतु है।
जनता की वाणी ईश्वर की वाणी है।
राजाओं और दंडाधिकारियों की शक्ति उसके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है, जो जनता से व्युत्पन्न, रूपांतरित तथा अपने सार्वजनिक हित में उससे लेकर विश्वासपूर्वक उन्हें सौंप दी गई है, उस जनता से जिसमें शक्ति मूलतः सन्निहित है और लोगों के प्राकृतिक जन्मसिद्ध अधिकार का उलंघन किए बिना उनसे नहीं ली जा सकती।
जनता के लिए सबसे अधिक शोर मचाने वालों को उसके कल्याण के लिए सबसे उत्सुक मान लेना सर्वसामान्य प्रचलित त्रुटि है।
साम्यवादी लोग बीजों के समान हैं और जनता भूमि के समान है। जहाँ भी हम जाएँ, हमें जनता से घुलना-मिलना चाहिए, उनमें जड़ पकड़नी चाहिए और उनमें फलना फूलना चाहिए।
जब जनता एक हो जाती है, तब उसके सामने ज़ालिम से ज़ालिम हुकूमत भी नहीं टिक सकती।
सभी तथाकथित शक्तिशाली प्रतिक्रियावादी काग़ज़ी शेरों से अधिक नहीं हैं, क्योंकि वे अपनी जनता से कटे हुए हैं।
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