
हे निशाचर! जो लोक-विरोधी कठोर कर्म करने वाला है, उसे सब लोग सामने आए हुए दुष्ट सर्प की भाँति मारते हैं।

क्रांति आम जनता और व्यक्ति से शक्ति के संचय तथा संधान की माँग करती है।

गोस्वामी जी पूरे लोकदर्शी थे। लोक-धर्म पर आघात करने वाली जिन बातों का प्रचार उनके समय में दिखाई पड़ा, उनकी सूक्ष्म दृष्टि उन पर पूर्ण रूप में पड़ी।

मूर्खता, दुर्बलता, पक्षपात, ग़लत धारणा, ठीक धारणा, हठधर्मिता और समाचारपत्रों के अंशों के मिले-जुले रूप का नाम जनमत है।

वैर का आधार व्यक्तिगत होता है, घृणा का सार्वजनिक।

देश का भविष्य नेताओं और मंत्रियों की मुट्ठी में नहीं है, देश की जनता के ही हाथ में है।

दुनिया का नया देवता 'जनता' है। दुनिया की सारी चीज़ें सभी के लिए हैं। सभी कुछ हर एक के लिए है। जीवन का सर्वस्व एकता में है। सारा जीवन हर एक के लिए है और हर एक सारे जीवन के लिए है।

जनता की वाणी ईश्वर की वाणी है।

जनमत विधायिका की अपेक्षा अधिक सशक्त होता है। और लगभग उतना ही शक्तिशाली है जितने दस धर्मनियम।

राजाओं और दंडाधिकारियों की शक्ति उसके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है, जो जनता से व्युत्पन्न, रूपांतरित तथा अपने सार्वजनिक हित में उससे लेकर विश्वासपूर्वक उन्हें सौंप दी गई है, उस जनता से जिसमें शक्ति मूलतः सन्निहित है और लोगों के प्राकृतिक जन्मसिद्ध अधिकार का उलंघन किए बिना उनसे नहीं ली जा सकती।

जनता के लिए सबसे अधिक शोर मचाने वालों को उसके कल्याण के लिए सबसे उत्सुक मान लेना सर्वसामान्य प्रचलित त्रुटि है।

जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता की सरकार।

सभी तथाकथित शक्तिशाली प्रतिक्रियावादी काग़ज़ी शेरों से अधिक नहीं हैं, क्योंकि वे अपनी जनता से कटे हुए हैं।


साम्यवादी लोग बीजों के समान हैं और जनता भूमि के समान है। जहाँ भी हम जाएँ, हमें जनता से घुलना-मिलना चाहिए, उनमें जड़ पकड़नी चाहिए और उनमें फलना फूलना चाहिए।

जब जनता एक हो जाती है, तब उसके सामने ज़ालिम से ज़ालिम हुकूमत भी नहीं टिक सकती।