
प्रेम नाम का कोई शाश्वत सूत्र नहीं है जो जीवन भर अपनी उपस्थिति का यक़ीन दिलाता रहे।

मुझे अपने अतीत से प्यार है। मुझे अपने वर्तमान से प्यार है। जो मेरे पास था उसमें मुझे शर्म नहीं थी, और मैं इस बात से दुखी नहीं हूँ कि अब वह मेरे पास नहीं है।

मौन निकटता की भावना लाता है। जैसे ही बात खुलती है, तीसरी उपस्थिति की मानो चेतावनी आती है।

जितना आप प्रकट होते हैं और जहाँ आप प्रकट होते हैं, अपने आप पर उतना ही और केवल वहीं विश्वास करें। जो देखा नहीं जा सकता, फिर भी अस्तित्व में है, सर्वत्र है और शाश्वत है। आख़िरकार हम वही हैं।

प्रत्येक परीकथा वर्तमान सीमाओं को पार करने की क्षमता प्रदान करती है, इसलिए एक अर्थ में परीकथा आपको वह स्वतंत्रता प्रदान करती है, जिसे वास्तविकता अस्वीकार करती है।

मनुष्य की उपस्थिति में रेगिस्तान आभासी हो जाता है।

एकांत : रूप की प्यारी-सी अनुपस्थिति।

आप जहाँ हैं, वहाँ आप नहीं हैं।
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संबंधित विषय : अनुपस्थिति

मैंने एक दिन बाज़ार में एक कुम्हार को देखा जो मिट्टी के टुकड़े को अपने पैरों से रौंद रहा था। वह मिट्टी अपनी जिह्वा से उससे यह शब्द कह रही थी—कभी मैं भी तेरी तरह मनुष्य के रूप में थी और मुझमें भी ये सब बातें वर्तमान थीं।

मैं वर्तमान में एकांतवासी हूँ और कुछ नहीं करती, सिवाय लिखने और पढ़ने और पढ़ने और लिखने के।

डर की उपस्थिति को स्वीकार करना विफलता को जन्म देना है।

हम अबाध रूप से, कालक्रम से नहीं बढ़ते हैं। हम कभी-कभी असमान रूप से एक पहलू में आगे बढ़ते हैं, दूसरे में नहीं। हम थोड़ा-थोड़ा करके बढ़ते हैं। हम तुलनात्मक रूप से आगे बढ़ते हैं। हम एक क्षेत्र में परिपक्व हैं, दूसरे में बचकाने। अतीत, वर्तमान और भविष्य मिलकर हमें पीछे धकेलते हैं, आगे बढ़ाते हैं या हमें वर्तमान में स्थिर कर देते हैं। हम परतों, कोशिकाओं, ज्योति पुंजों से मिलकर बने हैं।

हम कहीं नहीं हैं, अगर हम कहीं नहीं हैं तो हम हर जगह हैं।

बढ़िया काम करने के लिए अनिवार्य है कि हम नॉस्टेल्जिया को पराजित करें—समय में कहीं और रहने की अस्पष्ट इच्छा को परास्त करें और वर्तमान को पकड़ कर रखें, और वर्तमान का पकड़ में आना मुश्किल है। जब हम उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाते हैं, हमारी समस्याएँ हमें कहीं और अतीत में या भविष्य में खींच ले जाती हैं। काम क्षणों को परिपक्व करने का एक तरीक़ा है—उन्हें गुरुता प्रदान करने का एक ढंग। काम के ज़रिए हम वर्तमान को टिकाऊपन की दावत देते हैं। अपने काम के ज़रिए वर्तमान को ग्रहण करो और फिर देखो, तुम्हारा काम हमेशा वर्तमान रहेगा।

आप जिस वर्तमान का निर्माण कर रहे हैं, उसे ध्यान से देखें : वह उस भविष्य की तरह दिखना चाहिए जिसका आप सपना देख रहे हैं।

तूफ़ानों में भी एक किस्म की शांति उपस्थित है।

हम ईश्वर की उपस्थिति को अनदेखा कर सकते हैं, लेकिन कहीं भी उनसे बच नहीं सकते हैं। वह दुनिया में हमेशा विद्यमान हैं। वह हर जगह गुप्त रूप से चलते हैं।

आइए, विस्मरण का सम्मान करें, विस्मरण की विलक्षणताएँ—जो हमें चिंतन की अनुमति देती हैं, हर दूसरी चीज़ से अलग, वर्तमान की अद्वितीयता।

अगर हम अपनी वर्तमान स्थिति में सफल नहीं हो सकते तो किसी अन्य स्थिति में भी नहीं हो सकेंगे। अगर हम कमल की तरह कीचड़ में भी पवित्र और दृढ़ नहीं रह सकते तो हम कहीं भी रहें, नैतिक दृष्टि से कमज़ोर ही साबित होंगे।


स्मृति अतीत-विषयक होती है। मति भविष्य-विषयक होती है। बुद्धि वर्तमान विषयक होती है। प्रज्ञा त्रिकाल-विषयक होती है। नवनवोन्मेषशालिनी प्रज्ञा को प्रतिभा कहते हैं।

इतिहास का प्रयोजन वर्तमान समय और उसके अनुसार कर्तव्य को महत्त्व देना है।

अतीत सुखों के लिए सोच क्यों, अनागत भविष्य के लिए भय क्यों, और वर्तमान को मैं अपने अनुकूल बना ही लूँगा, फिर चिंता किस बात की?

वर्तमान हमें अंधा बनाए रहता है, अतीत बीच-बीच में हमारी आँखें खोलता रहता है।

हम भूत और भविष्य को देखते हैं और जो नहीं है उसकी कामना करते हैं। हमारा निष्कपट हास्य भी किसी वेदना से युक्त होता है।

या एक अन्य क़ानून जो प्रदर्शित नहीं किया गया है और जिसे हमने अभी तक सोचा भी नहीं है, जो यह कहता है कि आप एक ही स्थान में दो बार अस्तित्व में नहीं हो सकते?


भविष्य के प्रति असली उदारता वर्तमान को पूरी तरह से समर्पित करने में है।

वर्तमान हमें अँधा बनाए रहता है, अतीत बीच-बीच में हमारी आँखें खोलता रहता है।