बच्चे पर उद्धरण
हिंदी के कई कवियों ने
बच्चों के वर्तमान को संसार के भविष्य के लिए समझने की कोशिश की है। प्रस्तुत चयन में ऐसे ही कवियों की कविताएँ संकलित हैं। इन कविताओं में बाल-मन और स्वप्न उपस्थित है।

याद रखो : प्यार एकदम बकवास है। सच्चा प्यार सिर्फ़ माँ और बच्चे के बीच होता है।

मैं समझता हूँ कि बेकार राज्य-प्रबंधन बेकार परिवार-प्रबंधन को प्रोत्साहित करता है। हमेशा हड़ताल पर जाने को तत्पर मज़दूर अपने बच्चों को भी व्यवस्था के प्रति आदर-भाव नहीं सिखा सकता।

नौ महीने की गर्भावस्था से गुज़रकर एक माँ महसूस करती है कि इतने दर्द और बेचैनी से पैदा हुआ वह बच्चा उसका है।
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खेल बच्चों का काम है और यह कोई मामूली काम नहीं है।

समस्या हमेशा बच्चों की माँ या मंत्री की पत्नी होने में और—कभी भी—जो हो वह नहीं होने में होती है।

बच्चों की जिस कहानी का आनंद केवल बच्चे ही उठा सकते हैं, वह बच्चों की अच्छी कहानी बिल्कुल भी नहीं है।

बच्चे को पालने का सबसे बेहतर तरीक़ा उसे छोड़ देना है!

उस प्यार से बढ़कर कोई प्यार नहीं है जिसे भेड़िया भेड़ के उस बच्चे के लिए महसूस करता है, जिसे वह खाता नहीं है।

आप बच्चों के लिए क्या करते हैं, यह मायने रखता है; और वे इसे कभी भूल नहीं सकते हैं।

ज़्यादातर समय, वे बच्चे स्वस्थ और मज़बूत होते हैं, प्रकृति अपनी देखभाल ख़ुद करती है।

एक गृहिणी के काम का कोई महत्व नहीं होता है : उस काम को बस फिर से करना होता है। बच्चों को पालना कोई वास्तविक पेशा नहीं है, क्योंकि बच्चे एक ही तरीक़े से बड़े होते हैं, उनका पालन-पोषण किया जाए या नहीं।

बच्चे कभी भी अपने बड़ों की बातों को बहुत अच्छी तरह से नहीं सुनते हैं, लेकिन वे उनकी नक़ल ज़रूर करते हैं।

हर शिशु इस संदेश के साथ जन्मता है कि इश्वर अभी तक मनुष्यों के कारण शर्मसार नहीं है।

बालक समय आए बिना न जन्म लेता है, न मरता है और न असमय में बोलता ही है। बिना समय के जवानी नहीं आती और बिना समय के बोया हुआ बीज भी नहीं उगता है।

जिस प्रकार बच्चे अँधेरे में जाने से भयभीत होते हैं, उसी प्रकार मनुष्य मृत्यु से भयभीत होते हैं।

हमारे भीतर जो प्राण-शक्ति है, उसी का नाम अमृत है। बच्चे के भीतर यह प्राण शक्ति या जीवन की धारा इतनी बलवती होती है कि उसके मनःक्षेत्र में मृत्यु का भाव कभी आता ही नहीं। यह असंभव है कि बच्चे को हम मृत्यु का ज्ञान करा सकें।

वेग के साथ घूमती हुई, चक्र का भ्रम उत्पन्न करने वाली काल-गति देखी नहीं जाती। कल जो शिशु था, आज वही पूर्ण युवा है और कल प्रात: वही जरा-जीर्ण शरीर वाला हो जाएगा।

बालकों व मूर्खों की तो गिनती क्या, महान लोगों की भी चित्तवृत्ति सदा एकाग्र नहीं रहती।

बच्चे की ज़िंदगी एक लंबी ज़िंदगी है। उसमें एक किताब आकर चली नहीं जानी चाहिए।

जो माता पिता बिना अनुमति के अपने बालकों के पत्र पढ़ने की अच्छा रखते हैं, वे माता-पिता नहीं बल्कि ज़ालिम हैं।

पीड़ा हठीले बच्चे की तरह है। समझा-बुझा कर किसी तरह थोड़ी देर के लिए वह वश में कर ली जा सकती है।


आख़िर ईश्वर है क्या? एक शाश्वत बालक जो शाश्वत उपवन में शाश्वत क्रीड़ा में लगा हुआ है।

बालक स्थूल विविधता से विशेष परिचित नहीं होता, इसी से वह केवल जीवन को पहचानता है।

बच्चों का हृदय कोमल थाला है, चाहे इसमें कटीली झाड़ी लगा दो, चाहे फूलों के पौधे।

बच्चे झट से सत्य के आस-पास पहुँच जाते हैं।


छोटे-छोटे बालक नक्षत्रों से बातचीत करते हैं, पुष्पों से मित्रता करते हैं, सरोवरों की अंतरात्मा से संभाषण करते हैं, वृक्षों को अपना मित्र बनाते हैं क्या ही अच्छा हो यदि मैं एक बार फिर वैसा ही बालक बन जाऊँ!


तुम इन्हें अपना प्रेम भले ही दो, लेकिन अपने विचार मत दो क्योंकि उनके अपने विचार हैं। तुम उनके शरीरों को भले ही घर में रखो, लेकिन उनकी आत्माओं को नहीं, क्योंकि उनकी आत्माएँ भावी के भवन में रहती है, जहाँ तुम नहीं पहुँच सकते—स्वप्न में भी नहीं।

किसी भी दिन मुझे परिपक्व कलाकारों के काम से ज़्यादा बच्चों के चित्रों में दिलचस्पी होती है।

एक नियम बना लें कि किसी बच्चे को वह किताब कभी न दें जिसे आप ख़ुद नहीं पढ़ेंगे।

जब आप बच्चे होते हैं, तो आप हर साल एक अलग व्यक्ति बन जाते हैं।

तेरह-चौदह वर्ष के अनाथ बच्चों का चेहरा और मन का भाव लगभग बिना मालिक के राह के कुत्ते जैसा हो जाता है।


हम कई ग़लतियों और दोषों के लिए दोषी हैं, लेकिन हमारा सबसे बड़ा अपराध बच्चों को छोड़ देना है, उन्हें जीवन का स्रोत देने से इनकार करना है। कई चीज़ें जो हमें चाहिए, वे प्रतीक्षा कर सकती हैं, लेकिन बच्चे प्रतीक्षा नहीं कर सकते। अब उनका समय है, उनकी हड्डियाँ बन रही हैं, उनका रक्त बन रहा है और उनकी इंद्रियाँ विकसित हो रही हैं। हम उन्हें "कल" नहीं कह सकते, उनका नाम "आज" है।

एक बच्चा जो खेलता नहीं है, वह बच्चा नहीं है; लेकिन वह आदमी जो खेल से दूर है, उसने हमेशा के लिए उस बच्चे को खो दिया है जो उसमें रहता था और जिसे वह बहुत याद करेगा।

जिनके स्वादिष्ट भोजन की ओर बालक लालायित दृष्टि से देखते रहें और विधिवत खा न पाएँ, तो उन्हें इससे बड़ा पाप क्या होगा?
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