वेदों में जीवन के संपूर्ण आनंद, उमंग और उल्लास की सबसे बेहतरीन कविताएँ हैं, पर मृत्यु के बारे में भी सबसे ज़्यादा और सबसे मार्मिक कविताएँ या सूक्त भी इन्हीं वेदों में हैं—अत्यंत घनीभूत विषाद की संकुल छायाओं में गुँथी कविताएँ।
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आत्मसंस्कृति ही शिल्प है। इस शिल्प के द्वारा मनुष्य सारे संसार को छंदोंमय बना लेते हैं।
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साहित्य भी मृत्यु की विभीषिका के भीतर से जीवन रचता है।
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हमारे साहित्य के इतिहास की वह एक स्वर्णिम घड़ी रही होगी, जिसमें निराला ने छंदों के बंधनों को तोड़ कर जूही की कली की मुस्कान, उसके खिलने और चटक उठने को कविता में बिखेर दिया।
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निर्मल जी अंतिम अरण्य में जो संसार रचते हैं, वह मृत्यु को परे ठेलने में लगे पात्रों का संसार है।
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