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आत्म-तत्व पर उद्धरण

दिल में जो ज्योति होनी चाहिए उसको प्रकट करने की कोशिश हमें करनी है। हमारे दिल में राम विराजमान हैं और वहाँ भी युद्ध चलता है राम और रावण के बीच में। अगर हृदय में, उसके बाहर नहीं, राम पर रावण की जीत होती है तो उसका मतलब है कि हृदय में ज्योति नहीं है, अँधेरा है। अगर राम की रावण पर जय होती है और रावण बेकार हो जाता है या परास्त हो जाता है, तब हमारे भीतर तो ज्योति है ही, बाहर भी दिया-बत्ती जलाने का हमको हक़ हो जाता है।

महात्मा गांधी

तुम्हारे पास क्या है; उससे नहीं, वरन् तुम क्या हो उससे ही तुम्हारी पहचान है।

ओशो

शांति को चाहो। लेकिन ध्यान रहे कि उसे तुम अपने ही भीतर नहीं पाते हो, तो कहीं भी नहीं पा सकोगे। शांति कोई बाह्य वस्तु नहीं है।

ओशो

श्री अरविंद का वचन है: ‘सम होना या'नी अनंत हो जाना।’ असम होना ही क्षुद्र होना है और सम होते ही विराट को पाने का अधिकार मिल जाता है।

ओशो

बाहर का दीया चट जलता है तो पट बुझता भी है। भीतर का दीया देर से जलता है तो आसानी से बुझता भी नहीं। उसका उजाला देर तक रहता है और दूर तक फैलता है।

अमृतलाल वेगड़

मैं दुनिया में सिर्फ एक ही तानाशाह को स्वीकार करता हूँ और वह है मेरी अंतरात्मा की आवाज़।

महात्मा गांधी

ब्राह्म-व्यवहार में जो परिवर्तन होता है, उसका प्रभाव बाहर तक ही सीमित नहीं रहता—अंतःप्रकृति में भी वह काम करता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

कवि के लिए सतत आत्म-संस्कार आवश्यक है, जिससे बाह्य का आभ्यंतीकरण सही-सही हो।

गजानन माधव मुक्तिबोध

आत्मा की शिक्षा एक बिलकुल भिन्न विभाग है।

महात्मा गांधी

इतना छोटा होने का अभिनय करना बंद करो, तुम परमानंद में गतिमान ब्रह्मांड हो।

रूमी

अपने अंतरतम की गहराइयों में इस प्रश्न को गूँजने दो: 'मैं कौन हूँ?' जब प्राणों की पूरी शक्ति से कोई पूछता है, तो उसे अवश्य ही उत्तर उपलब्ध होता है।

ओशो

जो प्रकाश स्वरूप है; अगर उसका प्रकाश हो तो वही तो उसकी बाधा है—प्रकाश ही उसकी मुक्ति है।

रवींद्रनाथ टैगोर

ध्यान के लिए वस्तुतः सर्वोच्च ढंग की संवेदनशीलता चाहिए तथा प्रचण्ड मौन की एक गुणवत्ता चाहिए—ऐसा मौन जो प्रेरित, अनुशासित या साधा हुआ नहीं हो।

जे. कृष्णमूर्ति

"मैं कौन हूँ?" जो स्वयं इन प्रश्न को नहीं पूछता है, ज्ञान के द्वार उसके लिए बंद ही रह जाते हैं।

ओशो

एक बार अपने भीतर निहार का देखो, प्रतिदिन तुम किस जगह पर स्थित हो।

रवींद्रनाथ टैगोर

सत्य की आकांक्षा है तो स्वयं को छोड़ दो।

ओशो

भीतर इतनी गहराई हो कि कोई तुम्हारी थाह ले सके। अथाह जिनकी गहराई है, अगोचर उनकी ऊँचाई हो जाती है।

ओशो

मनोरचना की शैली-विशेष जिस प्रकार कवि के काव्य-व्यक्तित्व को एक रूप देती है, उसी प्रकार कवि के जीवन और चरित्र का विकास, उसके आग्रहशील अनुरोधपूर्ण काव्यमनस और उसके तत्वों को निर्धारित करता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

व्यक्ति अपनी ही खोज में समाज को ढूँढ़ता है, समाज के विकास की परीक्षा करता है, और इस प्रकार उसकी परीक्षा करते हुए अपनी परीक्षा करता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

बुद्धि स्वयं अनुभूत विशिष्टों का सामान्यीकरण करती हुई; हमें जो ज्ञान प्रस्तुत करती है, उस ज्ञान में निबद्ध ‘स्व’ से ऊपर उठने, अपने से तटस्थ रहने, जो है उसे अनुमान के आधार पर और भी विस्तृत करने की प्रवृत्ति होती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

पाप और पुण्य मात्र कृत्य ही नहीं हैं। वस्तुतः तो वे हमारे अंतःकरण के सोये होने या जागे होने की सूचनाएँ हैं।

ओशो

अपने अंतरात्मा में परमात्मा का बोध, पूर्णता की पराकाष्ठा में ही होता है—सीढ़ी-दर-सीढ़ी नहीं होता।

रवींद्रनाथ टैगोर

एक बार तू इस क्षणिक जगत् से ऊपर चला जा, और अपने अन्दर एक दूसरे ही जग का निर्माण कर।

शम्स तबरेज़

जिस कवि में आत्म-निरीक्षण तीव्र होगा, वह कंडीशड साहित्यिक रिफ्लेक्सेज से उतना ही जूझ सकेगा।

गजानन माधव मुक्तिबोध

बुद्धत्व का आगमन दूसरे द्वारा नहीं होता, इसका आगमन स्वयं आपके अवलोकन एवं स्वयं की समझ से ही होता है।

जे. कृष्णमूर्ति

जब हम ख़ुद से सच्चा प्यार करेंगे, तभी हम भविष्य के लिए बेहतर रिश्तों की बुनियाद रख सकेंगे।

साइमन गिलहम

स्वराज्य की सच्ची ख़ुमारी उसी को हो सकती है, जो आत्मबल अनुभव करके शरीर बल से नहीं दबेगा और निडर रहेगा तथा सपने में भी तोप बल का उपयोग करने की बात नहीं सोचेगा।

महात्मा गांधी

कोई ही इस आत्मा को आश्चर्यवत् देखता है और वैसे ही दूसरा कोई ही आश्चर्यवत् (इसके तत्त्व को) कहता है और दूसरा (कोई ही) इस आत्मा को आश्चर्यवत् सुनता है। और कोई सुनकर भी इस आत्मा को नहीं जानता।

वेदव्यास

असीम की ओर ज्ञानदृष्टि मोड़ने पर ही हम सत्य को देखते हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर

क्या आपने स्वयं की तुलना किसी व्यक्ति या वस्तु से किए बिना कभी जीने की कोशिश की है? तब आप क्या रह जाते हैं? तब आप जो हैं, वही हैं जो है।

जे. कृष्णमूर्ति

पवित्रता ही साधना की सामग्री है।

रवींद्रनाथ टैगोर

आपके पास ऐसा मन होना चाहिए जो पूर्णतः: अकेले होने में समर्थ हो, तथा जो दूसरे व्यक्तियों के अनुभवों और प्रचार से बोझिल हो।

जे. कृष्णमूर्ति

जा हे ख्वाजा, अपने आपको अच्छी तरह पहचान ले।

शम्स तबरेज़

आत्म-मूल्य को बढ़ाने के लिए आपको अपने जीवन में लगातार मूल्य जोड़ते रहना होगा।

अशदीन डॉक्टर

मनुष्य स्वयं अपना आविष्कार नहीं कर पाता है, अपने को दूसरे के सामने प्रकाशित नहीं कर पाता है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

अंतस् के संगीत पूर्ण हो उठने का नाम हो शांति है।

ओशो

कभी-कभी जिसे हम कठिन समय के रूप में मानते हैं, वह वास्तव में हमारी छिपी हुई ताकतों को खोजने का अवसर होता है।

अशदीन डॉक्टर

हम ईश्वर की दुनिया में पड़े हैं, पर उसे जानते नहीं।

महात्मा गांधी

हमें निर्जन बन में जाने की आवश्यकता नहीं है। अपने अंतर में हमें ईश्वर का मधुर नाद सुनना है और जब हममें से हरेक वह मधुर नाद सुनने लगेगा तब हिंदुस्तान का भला होगा।

महात्मा गांधी

सच्ची रोशनी भीतर से पैदा होती है।

महात्मा गांधी

हर चीज़ पर सवाल उठाना चाहिए और उन विश्वास प्रणालियों को नष्ट करना चाहिए जो आपके लिए काम नहीं करती हैं।

अशदीन डॉक्टर

मैं यह बाल नहीं हूँ, मैं यह त्वचा नहीं हूँ—मैं वह आत्मा हूँ, जो मेरे भीतर रहती है।

रूमी

जो कुछ भी बाहर से मिलता है, वह छीन भी लिया जाएगा। उसे अपना समझना भूल है।

ओशो

अगर मैं ख़ुद से प्यार करता हूँ, तो मैं तुमसे प्यार करता हूँ। अगर मैं तुमसे प्यार करता हूँ, तो मैं ख़ुद से प्यार करता हूँ।

रूमी

हम शून्य से घूमते हुए, धूल की तरह तारे बिखेरते हुए आते हैं और तुम? तुम अपने भीतर की उस लंबी यात्रा की शुरुआत कब करोगे?

रूमी

भीतर का दीया क्या इतनी आसानी से जलता है? एक बार से जलता है? इसमें पाँच साल क्या, सारा जीवन लग सकता है। नया जन्म भी लेना पड़ सकता है।

अमृतलाल वेगड़

तुम्हारे भीतर की दौलत—तुम्हारा सार, तुम्हारा साम्राज्य है।

रूमी

जो आपको बनाता या बिगाड़ता है, वह है कि आप किस चीज़ से बने हैं।

अशदीन डॉक्टर

बाहर का वेग भीतर के छंद को कभी-कभी बहुत पीछे छोड़ जाता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

मैं महसूस करता हूँ कि मैं शून्य हूँ और इसका मतलब है मैं अपने आप को निश्चय ही प्यार करता हूँ।

महमूद दरवेश