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जिज्ञासा पर उद्धरण

जिज्ञासा-संबंधी वृहत

और विविध प्रसंगों के पाठ रचती कविताओं से एक चयन।

अपने अंतरतम की गहराइयों में इस प्रश्न को गूँजने दो: 'मैं कौन हूँ?' जब प्राणों की पूरी शक्ति से कोई पूछता है, तो उसे अवश्य ही उत्तर उपलब्ध होता है।

ओशो

हम अपने बारे में इतना कम और इतना अधिक जानते हैं कि प्रेम ही बचता है प्रार्थना की राख में।

नवीन सागर

"मैं कौन हूँ?" जो स्वयं इन प्रश्न को नहीं पूछता है, ज्ञान के द्वार उसके लिए बंद ही रह जाते हैं।

ओशो

यदि तुम क्रांति का सिद्धांत और विधियों के जिज्ञासु हो तो तुम्हें क्रांति में भाग लेना चाहिए। समस्त प्रामाणिक ज्ञान प्रत्यक्ष अनुभव से उद्भूत होता है।

माओ ज़ेडॉन्ग

वेदांत ‘ब्रह्म-जिज्ञासा’ है तो काव्य ‘पुरूष-जिज्ञासा।’

कुबेरनाथ राय

जानने की कोशिश मत करो। कोशिश करोगे तो पागल हो जाओगे।

राजकमल चौधरी

फूलों को तोड़कर गुलदान में सजाने वाले शायद ही कभी किसी बीज का अंकुरण देख पाते होंगे।

सिद्धेश्वर सिंह
  • संबंधित विषय : फूल

कहानी क्या कविता का शेषार्थ है?

धूमिल

आपकी जिज्ञासा की उत्कटता ही, अभिमुखता की उत्कटता हो, अवसर बन जाती है। अवसर की कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है कि कोई उसे लाकर आपको देगा।

विमला ठाकर

अपने अनुभव से हासिल किया ज्ञान है कि डाॅक्टर और माशूक़ कभी नहीं बदलने चाहिए। आप फ़ालतू सवालों से बच जाते हैं।

स्वदेश दीपक

जिज्ञासा करने वाला हमेशा ख़ुश रहता है।

एलिस मुनरो
  • संबंधित विषय : सुख

लक्षक मन ही लक्षणीयता को परखकर उभारता है।

त्रिलोचन

घटना एक ही होती है, पर उसकी व्याख्याएँ प्रत्येक की अपनी होती हैं।

श्रीनरेश मेहता

मनुष्य का भूत और वर्तमान ही उसे समझने के लिए पर्याप्त नहीं है। भावी आदर्श पर बिंबित उसका चेहरा इन सबसे अधिक यथार्थ और इसीलिए अधिक सुंदर तथा उत्साहजनक है।

सुमित्रानंदन पंत

साधु के पास उसे कुछ देने नहीं, वरन् उससे कुछ लेने जाना चाहिए। जिनके पास भीतर कुछ है, वे ही बाहर का सब कुछ छोड़ने में समर्थ होते है।

ओशो

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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