ज्ञान पर ब्लॉग

ज्ञान का महत्त्व सभी

युगों और संस्कृतियों में एकसमान रहा है। यहाँ प्रस्तुत है—ज्ञान, बोध, समझ और जानने के विभिन्न पर्यायों को प्रसंग में लातीं कविताओं का एक चयन।

मैंने हिंदी को क्यों चुना

मैंने हिंदी को क्यों चुना

पत्रकारिता में स्नातक की डिग्री प्राप्त हुए मुझे लगभग दो साल पूरे हो चुके हैं। मेरे साथ के सभी सहपाठियों ने कहीं न कहीं दाख़िला ले लिया है और वे अक्सर पूछते हैं कि मैंने कहीं पर दाख़िला क्यों नहीं लिय

रुकैया
पढ़ने-लिखने के वे ज़माने

पढ़ने-लिखने के वे ज़माने

जहाँ से मुझे अपना बचपन याद आता है, लगभग चार-पाँच साल से, तब से एक बात बहुत शिद्दत से याद आती है कि मुझे पढ़ने का बहुत शौक़ हुआ करता था। कुछ समय तक जब गाँव की पाठशाला में पढ़ता था, पिताजी जब भी गाँव आते त

विपिन कुमार शर्मा
कुछ नए-पुराने पूर्वग्रह

कुछ नए-पुराने पूर्वग्रह

कुछ नए-पुराने पूर्वग्रह जो जाने-अनजाने हमारी भाषा में चले आते हैं : • 'मैंने जिसकी पूँछ उठाई, उसे मादा पाया है'—धूमिल ने आज अगर यह कविता-पंक्ति लिखी होती तो सोशल मीडिया पर उचित ही उनकी धज्जियाँ उड़

प्रियदर्शन
सिनॉप्सिस कैसे बनाएँ

सिनॉप्सिस कैसे बनाएँ

शोध-कार्य-क्षेत्र में सक्रिय जनों को प्राय: ‘सिनॉप्सिस कैसे बनाएँ’ इस समस्या से साक्षात्कार करना पड़ता है। यहाँ प्रस्तुत हैं इसके समाधान के रूप में कुछ बिंदु, कुछ सुझाव : • आप 2400-2500 शब्दों का एक

रमाशंकर सिंह
एक लेखक को किन चीज़ों से बचना चाहिए?

एक लेखक को किन चीज़ों से बचना चाहिए?

एक लेखक को इन चीज़ों से बचना चाहिए : • सूक्तियों से—सूक्तियाँ बहुत चमकीली होती हैं, लेकिन वे अक्सर अर्द्धसत्यों से बनती हैं; उनके पीछे इच्छा ज़्यादा होती है, अनुभव कम। • सामान्यीकरणों से—सामान्य

प्रियदर्शन

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