
जन्म का अंत है, जीवन का नहीं। और मृत्यु का प्रारंभ है, जीवन का नहीं। जीवन तो उन दोनों से पार है। जो उसे नहीं जानते हैं, वे जीवित होकर भी जीवित नहीं हैं। और जो उसे जान लेते हैं, वे मर कर भी नहीं मरते।

जन्म का अंत है, जीवन का नहीं। और मृत्यु का प्रारंभ है, जीवन का नहीं। जीवन तो उन दोनों से पार है जो उसे नहीं जानते है, वे जीवित होकर भी जीवित नहीं है। और जो उसे जान लेते हैं वे मर कर भी नहीं मरते।

स्वयं को खोकर कुछ करो, तो उससे ही स्वयं को पाने का मार्ग मिल जाता है।

साधु के पास उसे कुछ देने नहीं, वरन् उससे कुछ लेने जाना चाहिए। जिनके पास भीतर कुछ है, वे ही बाहर का सब कुछ छोड़ने में समर्थ होते है।

उन्नति का मूल आत्मसमर्पण है, उन्नति का अर्थ है आत्मज्ञान।