ज्ञान पर दोहे

ज्ञान का महत्त्व सभी

युगों और संस्कृतियों में एकसमान रहा है। यहाँ प्रस्तुत है—ज्ञान, बोध, समझ और जानने के विभिन्न पर्यायों को प्रसंग में लातीं कविताओं का एक चयन।

दादू देव दयाल की, गुरू दिखाई बाट।

ताला कूँची लाइ करि, खोले सबै कपाट॥

दादू दयाल

मथि करि दीपक कीजिये, सब घट भया प्रकास।

दादू दीया हाथ करि, गया निरंजन पास॥

दादू दयाल

नानक गुरु संतोखु रुखु धरमु फुलु फल गिआनु।

रसि रसिआ हरिआ सदा पकै करमि सदा पकै कमि धिआनि॥

गुरु नानक

सतगुरु जी री खोहड़ी, लागी म्हारे अंग।

पीपा जुड़ग्या पी लगन, टूटी भरम तरंग॥

संत पीपा

सरवर भरिया दह दिसा, पंखी प्यासा जाइ।

दादू गुर परसाद बिन, क्यों जल पीवै आइ॥

दादू दयाल

पीपा हरि सो गुरु बिना, होत सबद विवेक।

ज्ञान रहित अज्ञान सुत, कठिन कुमन की टेक॥

संत पीपा

सुन्दर याकै अज्ञता, याही करै बिचार।

याही बूड़े धार मैं, याही उतरै पार॥

सुंदरदास

ज्ञान भगति मन मूल गहि, सहज प्रेम ल्यौ लाइ।

दादू सब आरंभ तजि, जिनि काहू सँग जाइ॥

दादू दयाल

सतगुरु ऊंभा देहरी, हाथां लिये मसाल।

पीपा अलख लखन चहे, हिवड़े दिवड़ो बाल॥

संत पीपा

जब हीं कर दीपक दिया, तब सब सूझन लाग।

यूँ दादू गुर ज्ञान थैं,राम कहत जन जाग॥

दादू दयाल

जब मन बहकै उड़ि चलै, तब आनै ब्रह्म ग्यान॥

ग्यान खड़ग के देखते, डरपै मन के प्रान॥

संत शिवनारायण

सुनत सबद नीसान कूँ, मन में उठत उमंग।

ज्ञान गुरज हथियार गहि, करत जुद्ध अरि संग॥

दयाबाई

तबही लौं मन कहत है, जब लग है अज्ञान।

सुन्दर भागै तिमर सब, उदै होइ जब भांन॥

सुंदरदास

आतम माहिं ऊपजै, दादू पंगुल ज्ञान।

किरतिम जाइ उलंघि करि, जहाँ निरंजन थान॥

दादू दयाल

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