

किसी के मरने पर लोग पूछेंगे—"वह कौन-सी संपत्ति छोड़ गया है?" परंतु देवता पूछेंगे—"तुम अपने पीछे कौन से अच्छे कर्म छोड़ आए हो?"

सबसे पहले भारतीय बन जाओ। अपने पूर्व-पुरुषों की पैतृक संपत्ति को फिर से प्राप्त करो। आर्य-विचार, आर्य अनुशासन, आर्य चरित्र और आर्य जीवन को पुनः प्राप्त करो। वेदांत, गीता और योग को फिर से प्राप्त करो। उन्हें केवल बुद्धि या भावना से ही नहीं, अपितु जीवन द्वारा पुनः जीवित कर दो।

ईश्वरीय कृपा किसी एक ही राष्ट्र या जाति की संपत्ति नहीं है।

छोटी प्रकृति के लोग संपत्ति के कण को भी पाकर तराज़ू के समान ऊपर को उठ जाते हैं।


कामनावान् व्यक्ति में काम रूपी संपत्ति को विपत्ति ही समझना चाहिए, क्योंकि कामना पूर्ण होने पर मद होता है। मद से मनुष्य अकार्य करता है, कार्य नहीं, जिससे घायल होकर वह दुर्गति को प्राप्त होता है।

वास्तव में किसी संग्रह को हासिल करने का सबसे ठीक तरीका उसे उत्तराधिकार में पाना है। क्योंकि संपत्ति के प्रति किसी संग्राहक की प्रवृत्ति ‘पूंजी के प्रति मालिक की जिम्मेदारी की भावना’ से पनपती है अतः सर्वश्रेष्ठ अर्थ में, यह किसी उत्तराधिकारी की प्रवृत्ति ही है कि किसी संग्रह का अत्यंत विशिष्ट लक्षण प्रायः उसकी हस्तांतरणीयता होता है।
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निजी संपत्ति और सार्वजनिक संपत्ति के बीच की खाई के दो किनारों को मिलाने वाला एक सेतु होता है, जिसे दर्शन-शास्त्र में एकरूपत, या एक-दूसरे में रूपांतर, अथवा अंतर-व्याप्ति कहते हैं।