रंग पर कविताएँ

सृष्टि को राग और रंगों

का खेल कहा गया है। रंग हमारे आस-पास की दुनिया को मोहक और सार्थक बनाते हैं। प्रकृति रंगों से भरी है और इनका मानव जीवन पर सीधा असर पड़ता है; जबकि रंगहीनता को उदासी, मृत्यु, नश्वरता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यहाँ प्रस्तुत है—रंग और रंगों को विषय बनाने वाली कविताओं के विविध रंग।

पीली साड़ियाँ

गीत चतुर्वेदी

मछलीघर

हेमंत देवलेकर

दीवारें

निखिल आनंद गिरि

नीला रंग

अंकुर मिश्र

कामा

सौरभ अनंत

गले मिलते रंग

विनोद दास

पतंग

सौरभ अनंत

रंगरेज़

आलोकधन्वा

रंगों की पहचान

विमल कुमार

हरा रंग

महेश वर्मा

प्रक्रिया

नरेंद्र जैन

रंगपंचमी

हेमंत देवलेकर

रंगरसिया

सुशोभित

नीला रंग

सौरभ अनंत

लाल झंडा

मदन कश्यप

पीले फूल कनेर के

श्रीनरेश मेहता

शेड

नवीन रांगियाल

चैत की चौपही

दिनेश कुमार शुक्ल

नींद में तुम्हारे संग

वियोगिनी ठाकुर

अँधेरे का अर्थ

वाज़दा ख़ान

रख लेना था

ज्योति पांडेय

हो-हल्ला

हेमंत देवलेकर

निर्मल रूप

दिनेश कुमार शुक्ल

अनुपस्थित स्पर्श

अतुल तिवारी

हरा रंग

हरि मृदुल

पानी का रंग

मोहन राणा

ज़रा-ज़रा-सा

सुनीता जैन

गिरगिट

उद्भ्रांत

उदास लड़के : ब्लू इंक

घुँघरू परमार

मुलाक़ात

कमल जीत चौधरी

अज्ञात

गंगाप्रसाद विमल

रंग

वीरू सोनकर

रहस्य-7

सोमेश शुक्ल

सारे रंगों की तरह

संजीव गुप्त

रंग सारे!

प्रमोद बेड़िया

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