आँख पर कवित्त

आँखें पाँच ज्ञानेंद्रियों

में से एक हैं। दृश्य में संसार व्याप्त है। इस विपुल व्याप्ति में अपने विविध पर्यायों—लोचन, अक्षि, नैन, अम्बक, नयन, नेत्र, चक्षु, दृग, विलोचन, दृष्टि, अक्षि, दीदा, चख और अपने कृत्यों की अदाओं-अदावतों के साथ आँखें हर युग में कवियों को अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं। नज़र, निगाह और दृष्टि के अभिप्राय में उनकी व्याप्ति और विराट हो उठती है।

पलक वर्णन (नखशिख)

अब्दुर्रहमान 'प्रेमी'

श्याम वर्ण वर्णन (नखशिख)

अब्दुर्रहमान 'प्रेमी'

घूँघट-युक्त नैन वर्णन (नखशिख)

अब्दुर्रहमान 'प्रेमी'

बरौनी वर्णन (नखशिख)

अब्दुर्रहमान 'प्रेमी'

नैन वर्णन (नखशिख)

अब्दुर्रहमान 'प्रेमी'

अंजन वर्णन (नखशिख)

अब्दुर्रहमान 'प्रेमी'

भ्रकुटि वर्णन (नखशिख)

अब्दुर्रहमान 'प्रेमी'

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