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आँख पर कवितांश

आँखें पाँच ज्ञानेंद्रियों

में से एक हैं। दृश्य में संसार व्याप्त है। इस विपुल व्याप्ति में अपने विविध पर्यायों—लोचन, अक्षि, नैन, अम्बक, नयन, नेत्र, चक्षु, दृग, विलोचन, दृष्टि, अक्षि, दीदा, चख और अपने कृत्यों की अदाओं-अदावतों के साथ आँखें हर युग में कवियों को अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं। नज़र, निगाह और दृष्टि के अभिप्राय में उनकी व्याप्ति और विराट हो उठती है।

विद्यावान् की दो आँखें होती हैं

पर अशिक्षित लोगों के लिए

ये आँखें उनके चेहरे पर

दो घाव मात्र हैं

तिरुवल्लुवर

यदि आँख ही खुले तो अच्छा है

मेरे प्रियतम, जो स्वप्न में आते हैं

मुझसे कभी नहीं बिछुड़ेंगे

तिरुवल्लुवर

हरिणी सदृश उसकी आँखें

बड़ी लाजवंती हैं

उसको आभूषण क्यों पहनावें?

तिरुवल्लुवर

जीवित मनुष्य की

दो आँखें होती हैं

एक अंक

दूसरी अक्षर

तिरुवल्लुवर

इसके पूर्व मुत्यु के बारे में

मैं नहीं जान पाया

अब मैं इसको जान गया—

वह उसकी बड़ी-बड़ी

आक्रामक आँखें ही हैं

तिरुवल्लुवर