रोग पर उद्धरण

रोग-पीड़ा-मृत्यु मानव

के स्थायी विषाद के कारण रहे हैं और काव्य में अभिव्यक्ति पाते रहे हैं। इस चयन में रोग के विषय पर अभिव्यक्त कविताओं का संकलन किया गया है।

शरीर के महत्त्व को, अपने देश के महत्त्व को समझने के लिए बीमार होना बेहद ज़रूरी बात है।

राजकमल चौधरी

बुख़ार की दुनिया भी बहुत अजीब है। वह यथार्थ से शुरू होती है और सीधे स्वप्न में चली जाती है।

मंगलेश डबराल

कोई कवि सहज और स्वस्थ रहे तो समझ लीजिए, कुछ क़सर है।

त्रिलोचन
  • संबंधित विषय : कवि

आसक्तियाँ और रोग—ये दोनों वस्तुएँ आदमी को पराक्रमी और स्वाधीन करती हैं।

राजकमल चौधरी

सोचते रहो। उदास रहो और बीमार बने रहो।

राजकमल चौधरी

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