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कार्यालय पर उद्धरण

मैं सीढ़ियों पर परिहास की पात्र थी और मेरा कार्यालय एक रूमाल था।

हेर्टा म्युलर

हिंदी ही नहीं, कोई भी भाषा जब दफ़्तरों में घुसती है तो उसका एक बँधा-बँधाया शब्द-जाल विकसित होता है—वह टकलाली स्वरूप ग्रहण कर लेती है।

श्रीलाल शुक्ल

कार्यालय एवं प्रेम के मामलों को छोड़कर अन्य सभी बातों में मित्रता स्थिर रहती है। अतः प्रेम में सभी हृदय अपनी भाषा को प्रयोग करते हैं। हर नेत्र स्वयं बात करे और किसी माध्यम पर विश्वास करे।

विलियम शेक्सपियर