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यौवन पर उद्धरण

यौवन या जवानी बाल्यावस्था

के बाद की अवस्था है, जिसे जीवनकाल का आरंभिक उत्कर्ष माना जाता है। इसे बल, साहस, उमंग, निर्भीकता के प्रतीक रूप में देखा जाता है। प्रस्तुत चयन में यौवन पर बल रखती काव्य-अभिव्यक्तियों को शामिल किया गया है।

यौवन—जब वह आरंभ होता है, उस समय सभी कुछ रहस्यमय जान पड़ता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

अभी में अल्पायु बाला थी। दम भर में ही पूर्ण-यौवना बनी। अभी मैं चलती-फिरती थी और अभी जलकर राख बन गई।

लल्लेश्वरी

बिजली की तरह क्षणिक क्या है? धन, यौवन और आयु।

आदि शंकराचार्य
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हमारी नीरस शिक्षा में जीवन का बहुमूल्य समय व्यर्थ हो जाता है। हम बाल्यवस्था से कैशोर्य में और कैशोर्य से यौवन में प्रवेश करते हैं—शुष्क ज्ञान का बोझ लेकर।

रवींद्रनाथ टैगोर