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प्रशंसा पर उद्धरण

अपने मुँह से अपनी तारीफ़ करना हमेशा ख़तरनाक-चीज़ होती है। राष्ट्र के लिए भी वह उतनी ख़तरनाक है, क्योंकि वह उसे आत्मसंतुष्ट और निष्क्रिय बना देती है, और दुनिया उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाती है।

जवाहरलाल नेहरू

अज्ञान प्रशंसा की जननी है।

जॉर्ज चैपमैन

अनुचित प्रशंसा प्रच्छन्न अपकीर्ति ही है।

अलेक्ज़ेंडर पोप

मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है।

भास

प्राचीनता और भी अधिक प्राचीनता की प्रशंसा से परिपूर्ण मिलती है।

वाल्तेयर

व्यक्ति और उसकी प्रशंसा कितने दिन रहेगी?

राहुल सांकृत्यायन

मैं उसकी प्रशंसा करूँगा जो मेरी प्रशंसा करेगा।

विलियम शेक्सपियर

जो हर किसी की प्रशंसा करता है, वह किसी की प्रशंसा नहीं करता।

सैमुअल जॉनसन