
अपने मुँह से अपनी तारीफ़ करना हमेशा ख़तरनाक-चीज़ होती है। राष्ट्र के लिए भी वह उतनी ख़तरनाक है, क्योंकि वह उसे आत्मसंतुष्ट और निष्क्रिय बना देती है, और दुनिया उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाती है।

अज्ञान प्रशंसा की जननी है।

अनुचित प्रशंसा प्रच्छन्न अपकीर्ति ही है।



व्यक्ति और उसकी प्रशंसा कितने दिन रहेगी?

मैं उसकी प्रशंसा करूँगा जो मेरी प्रशंसा करेगा।

जो हर किसी की प्रशंसा करता है, वह किसी की प्रशंसा नहीं करता।