एकता पर उद्धरण
उद्देश्य, विचार, भाव
आदि में एकमत होना एकता है। एकता में बल है। आधुनिक राज-समाज में विभिन्न आशयों में इस एकबद्धता की पुष्टि आदर्श साध्य है। इस समूहबद्धता का इतना ही महत्त्व शक्ति-समूहों के प्रतिरोध की संतुलनकारी आवश्यकता में है। कविता इन दोनों ही पक्षों से एकता की अवधारणा पर हमेशा से मुखर रही है।
जो हिंदुस्तान में पैदा हुआ है उसका स्थान हिंदुस्तान में है—चाहे फिर वह किसी धर्म का हो।
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जो अल्पमत में हैं उनकी हमें ज़्यादा दरकार होनी चाहिए, यही तालीम मैं अबतक देता आया हूँ।
सबकी भलाई में हमारी भलाई निहित है।
जो मानव भिन्नत्व में एकत्व को देखता है वही प्राज्ञ माना जा सकता है।
जहाँ पर बहुमतवाले; अल्पमतवालों को मार डालें, वह तो ज़ालिम हुकूमत कहलाएगी। उसे स्वराज्य नहीं कहा जा सकता।
प्रेमानंद में प्रेमी अपनी आत्मा का प्रिय की आत्मा से संयोग करता है।
मैं अपने को सनातनी हिंदू मानता हूँ तो भी ऐसा सनातनी नहीं कि सिवा हिंदू के और किसी को हिंदुस्तान में रहने नहीं दूँ। कोई किसी धर्म का हो लेकिन हिंदुस्तानी है और उसको यहाँ रहने का उतना ही हक़ है, जितना मुझको है।
संसार के सर्वसाधारण के साथ साधारण रूप से हमारा मेल है।
दरअसल धर्म का अर्थ मज़हब या ‘रिलिजन’ से ज़्यादा विस्तृत है। इसकी व्यत्पत्ति जिस धातु-शब्द से हुई है—उसके मानी हैं ‘एक साथ पकड़ना।’
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ऐक्य-बोध का उपदेश जिस गंभीरता से उपनिषदों में दिया गया है, वैसा किसी दूसरे देश के शास्त्रों में नहीं मिलता।
सचमुच जब लोग ख़ुद मार-पीट करके या रिश्तेदारों को पंच बनाकर अपना झगड़ा निबटा लेते थे तब वे बहादुर थे। अदालतें आयीं और वे कायर बन गए।
काश्मीर से लेकर कन्याकुमारी जो लोग पड़े है वे सब हिंदुस्तानी है। उनमें आर्य और अनार्य या आर्यावर्त और द्राविड़स्तान का भेदभाव करना, कोरी अज्ञानता है।
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अब जात-पाँत के, ऊँच-नीच के, संप्रदायों के भेद-भाव भूलकर सब एक हो जाइए। मेल रखिए और निडर बनिए। तुम्हारे मन समान हों। घर में बैठकर काम करने का समय नहीं है। बीती हुई घड़ियाँ ज्योतिषी भी नहीं देखता।
शासक वर्गों को साम्यवादी क्रांति होने पर काँपने दो। सर्वहाराओं पर अपनी बेड़ियों के अतिरिक्त अन्य कुछ है ही नहीं, जिसकी हानि होगी। जीतने के लिए उनके सामने एक संसार है। सभी देशों के श्रमिकों संगठित बनो।
भेद और विरोध ऊपरी हैं। भीतर मनुष्य एक है। इस एक को दृढ़ता के साथ पहचानने का यत्न कीजिए। जो लोग भेद-भाव को पकड़कर ही अपना रास्ता निकालना चाहते हैं, वे ग़लती करते हैं। विरोध रहे तो उन्हें आगे भी बने ही रहना चाहिए, यह कोई काम की बात नहीं हुई। हमें नए सिरे से सब कुछ गढ़ना है, तोड़ना नहीं है। टूटे को जोड़ना है।
जेल में रहते-रहते आत्मनिष्ठ सत्य एक हो जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो भाव और स्मृति सत्य में परिणत हो गए हैं। मेरा भी ऐसा ही हाल है। भाव ही इस समय मेरे लिए सत्य है। इसका कारण भी स्पष्ट है—एकत्व-बोध में ही शांति है।
शांति से ही हिन्दू-मुस्लिम एकता क़ायम हो सकेगी। मैं जानता हूँ कि यह बड़ा कठिन काम है।
अगर यहाँ हिंदू, मुसलमान, ईसाई, पारसी और सिख—सबको रहना है तो हिंदी और उर्दू के संगम से जो भाषा बनी है—उसी को राष्ट्र भाषा के रूप में अपनाना होगा।
किसी देश में उस समय तक एकता और प्रेम नहीं हो सकता, जब तक उस देश के निवासी एक-दूसरे के दोषों पर ज़ोर देते रहते हैं।
वे सब, जिन्हें समाज घृणा की दृष्टि से देखता है, अपनी शक्तियों को एकत्र करें तो इन महाप्रभुओं और उच्च वंशाभिमानियों का अभिमान चूर कर सकते हैं।
हम पर अपने अल्पसंख्यक समुदायों के साथ-साथ, उन सभी समुदायों को लेकर ख़ास ज़िम्मेदारी है, जो आर्थिक या शिक्षा के स्तर पर पिछड़े हुए हैं और जो भारत की कुल जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा है।
अगर हम रामराज्य या ईश्वर का राज्य हिंदुस्तान में स्थापित करना चाहते हैं, तो मैं कहूँगा कि हमारा प्रथम कार्य यह है कि हम अपने दोषों को पहाड़-जैसे देखें और मुसलमानों के दोषों को कुछ नहीं।
हमारी आत्मा में अखंड ऐक्य का आदर्श है। हम जो कुछ जानते हैं—किसी-न-किसी ऐक्य सूत्र से जानते हैं।
सच्चा हिंदू धर्म वही है जिसमें सब धर्मों का समावेश हो।
सच्चा आत्मस्वातंत्र्य प्राप्त करने के लिए सामूहिकता आवश्यक है। सामूहिकता की विशाल उर्वर भूमि मे ही व्यक्ति के वृक्ष और लताएँ फूलती और फलती हैं।
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मेरे नज़दीक हिंदू हो, मुसलमान हो सब एक दर्जा रखते हैं।
हे धृतराष्ट्र! जलती हुई लकड़ियाँ अलग-अलग होने पर धुआँ फेंकती हैं और एक साथ होने पर प्रज्वलित हो उठती हैं। इसी प्रकार जाति-बंधु भी आपस में फूट होने पर दुख उठाते हैं और एकता होने पर सुखी रहते हैं।
दुनिया के किसी भी हिस्से में एक राष्ट्र का अर्थ एक धर्म नहीं किया गया है, हिन्दुस्तान में तो ऐसा था ही नहीं।
यह कहने में मुझे कोई नामुनासिब बात नहीं मालूम होती कि हिंदू-धर्म की महत्ता को किसी भी तरह कम किए बग़ैर, मैं मुसलमान, ईसाई, पारसी और यहूदी-धर्म में जो महत्ता है, उसके प्रति हिंदू-धर्म के बराबर ही श्रद्धा ज़ाहिर कर सकता हूँ।
जमहूरियत में अगर लोगों को मध्य हकूमत की रस्सी में बाँधा जाए तो टूट पड़ेंगे। वे एतबार करने से ही बढ़ सकते हैं।
इंसान दूसरों पर निर्भर रहक़र ही अपने आपको इंसान बनाता है।
जनसाधारण का मंगल बहुत-सी बातों के समन्वय से ही होता है।
सहित शब्द से साहित्य शब्द की उत्पत्ति हुई है। अतः धातुगत अर्थ लेने पर साहित्य शब्द में एक मिलन का भाव दिखाई पड़ता है।
राष्ट्रीय समाकलन का सरलतम उपाय है, अंतरावलंबन के ऐसे रूपों का विकास—जिसमें अलग-अलग समूहों का काम एक-दूसरे के बिना न चल सके।
हम दुनिया में एक राष्ट्र के रूप में एकता प्राप्त किए बिना जीवित नहीं रह सकते हैं।
गुरु गोविंद सिंह ने जब तलवार की बात सिखाई तबकी बात आज नहीं चल सकती। हाँ, उनकी सीख आज भी काम की है कि एक सिख सवा लाख के बराबर है लेकिन वह ऐसा तब होगा, जब वह अपने भाई के लिए और सारे हिंदुस्तान के लिए मरेगा।
मैं तो यह ज़रा भी पसंद नहीं करता कि सारे मुल्क के हिंदुस्तान जैसे दो टुकड़े किए जाएँ।
मनुष्य-मनुष्य में आत्मीय संबंध स्थापित करना, यही भारत का मुख्य प्रयास चिरकाल से रहा है। दूर के नातेदारों से भी संबंध रखना चाहिए, संतानों के वयस्क होने पर भी उनसे शिथिल नहीं होने चाहिए, गाँव के लोगों के साथ वर्ण या अवस्था का विचार किए बग़ैर, आत्मीयता की रक्षा करनी चाहिए—यही हमारी परंपरा रही है।
मैं तो उस दिन आज़ादी मिली समझूँगा जब कि हिंदू और मुसलमानों के दिलों की सफ़ाई हो जाएगी।
शत्रु लोग गणराज्य के लोगों में भेदबुद्धि पैदा करके तथा उनमें से कुछ लोगों को धन देकर भी समूचे संघ में फूट डाल देते हैं अतः संघबद्ध होना ही गणराज्य के नागरिकों का महान आश्रय है।
मैं इस हिंदू-धर्म का सदस्य होने में अभिमान महसूस करता हूँ, जिसमें सभी धर्म शामिल हैं और जो बड़ा सहनशील है।
सब मज़हबों के नज़रियों और उपदेशों में इतनी समानता है कि यह देखकर हैरत होती है कि लोग छोटी-छोटी, और ग़ैर-ज़रूरी बातों के बारे में झगड़ा करने की बेवकूफ़ी क्यों करते हैं।
हे एकता के देवता! मैं तुम्हारा मंदिर कहाँ पाऊँ? वह हृदय कहाँ है जिसके अंदर एकता का प्रकाश है?
सभ्यता का अर्थ है एकत्र होने का अनुशीलन। जहाँ इस ऐक्य-तत्त्व की उपलब्धि क्षीण होती है, वहीं यह दुर्बलता तरह-तरह की व्याधियों का रूप धारण करके देश पर चारों ओर से आक्रमण करती है।
समाज में सदा ही शक्तिमान लोग नहीं होते लेकिन देश की शक्ति अलग-अलग स्थानों पर जमा ऐसे लोगों की प्रतिक्षा करती है।
लोग अगर ख़ुद अपने झगड़े निबटा लें, तो तीसरा आदमी उन पर अपनी सत्ता नहीं जमा सकता।
मेरे ख़्याल में तो सब धर्म एक ही हैं। वृक्षकी शाखाएँ अलग-अलग होती हैं परंतु मूल पेड़ एक ही होता है। सब मज़हबों में एक ही ईश्वर है।
प्रेम और सेवा के बल पर दूसरों को अपना बनाया जा सकता है।
अमेरिका और भारत में एक सादृश्य है—एक शरीर तथा अनेक जातियों को एक कर देने का सादृश्य।
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प्रेम जोड़ने और मिलाने की शक्ति है, इसलिए सामाजिक संबंधों का वह आधार है।