लोकतंत्र पर उद्धरण
लोकतंत्र जनता द्वारा,
जनता के लिए, जनता का शासन है। लोकतंत्र के गुण-दोष आधुनिक समय के प्रमुख विमर्श-विषय रहे हैं और इस संवाद में कविता ने भी योगदान किया है। प्रस्तुत चयन ऐसी ही कविताओं का है।

जन्तंत्र में इस बात की आवश्यकता है कि जो क्रांति हो, वह केवल जनता के लिए न हो, 'जनता की क्रांति', 'जनता के द्वारा' हो। आज क्रांति भी जनतांत्रिक होनी चाहिए, अन्यथा दुनिया में जनतंत्र की कुशल नहीं है। क्रांति की प्रक्रिया ही जनतांत्रिक होनी चाहिए।

निस्संदेह सशक्त सरकार और राजभक्त जनता से उत्कृष्ट राज्य का निर्माण होता है। परंतु बहरी सरकार और गूँगे लोगों से लोकतंत्र का निर्माण नहीं होता।

जनतंत्र सदैव ही संकेत से बुलाने वाली मंजिल है, कोई सुरक्षित बंदरगाह नहीं। कारण यह है कि स्वतंत्रता एक सतत प्रयास है, कभी भी अंतिम उपलब्धि नहीं।

'प्रत्येक को वोट' जैसे राजनीतिक प्रजातंत्र का निष्कर्ष है वैसे ही 'प्रत्येक का काम' यह आर्थिक प्रजातंत्र का मापदंड है।
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लोकतंत्र लोक-कर्त्तव्य के निर्वाह का एक साधन मात्र है। साधन की प्रभाव क्षमता लोकजीवन में राष्ट्र के प्रति एकात्मकता, अपने उत्तरदायित्व का भान तथा अनुशासन पर निर्भर है।

समाज की गति के संचालन का कार्य जो शक्ति करती है, वह मुख्यतः प्रतिबंधक नियमों पर बल देती है।

जनतंत्र में एक मतदाता का अज्ञान सबकी सुरक्षा को संकट में डाल देता है।

जनतंत्र का उद्भव मनुष्यों के इस विचार से हुआ कि यदि वे किसी अंश में समान हैं तो वे पूर्ण रूप से समान हैं।


बाहरी नियंत्रणों के तनाव में लोकतंत्र टूट जाएगा।

कतिपय भ्रष्ट व्यक्तियों के द्वारा नियुक्ति के स्थान पर जनतंत्र में अनेक अयोग्यों द्वारा चुनाव होता है।

शिकार करना दिमाग़ी खेल है, सिर्फ़ ताक़त नहीं।