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प्रतिरोध पर कविताएँ

आधुनिक कविता ने प्रतिरोध

को बुनियादी कर्तव्य की तरह बरता है। यह प्रतिरोध उस प्रत्येक प्रवृत्ति और स्थिति के विरुद्ध मुखर रहा है, जो मानव-जीवन और गरिमा की आदर्श स्थितियों और मूल्यों पर आघात करती हो। यहाँ प्रस्तुत है—प्रतिरोध विषयक कविताओं का एक व्यापक और विशिष्ट चयन।

हवा

विनोद भारद्वाज

हाथ और साथ का फ़र्क़

जावेद आलम ख़ान

कौन जात हो भाई

बच्चा लाल 'उन्मेष'

कोई और

देवी प्रसाद मिश्र

शीघ्रपतन

प्रकृति करगेती

अस्मिता

ज़ुबैर सैफ़ी

देश

तरुण भारतीय

जेएनयू में वसंत

आमिर हमज़ा

क्रूरता

दूधनाथ सिंह

मुखौटे

आशीष त्रिपाठी

समय

आशीष त्रिपाठी

एक दिन

सारुल बागला

निष्कर्ष

शुभांकर

वह जहाँ है

अखिलेश सिंह

मेरा गला घोंट दो माँ

निखिल आनंद गिरि

अमीरी रेखा

कुमार अम्बुज

निवेश

प्रदीप सैनी

मौत

अतुल

अँधेरे में

गजानन माधव मुक्तिबोध

पीठ

अमित तिवारी

सम्राट : तीन स्वर

तरुण भारतीय

वापसी

कुमार विकल

जहाँ

मानसी मिश्र

नदियों के किनारे

गोविंद निषाद

उनकी सनातन करुणा

नामदेव ढसाल

मक़सद

पीयूष तिवारी

निषादों की गली

गोविंद निषाद

ख़तरा

कुमार अम्बुज

जो मौन हैं

नवनीत पांडे

हम अब कुछ देर

विनोद कुमार शुक्ल

गोरू-चरवाह

रमाशंकर सिंह