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प्रतिरोध पर कविताएँ

आधुनिक कविता ने प्रतिरोध

को बुनियादी कर्तव्य की तरह बरता है। यह प्रतिरोध उस प्रत्येक प्रवृत्ति और स्थिति के विरुद्ध मुखर रहा है, जो मानव-जीवन और गरिमा की आदर्श स्थितियों और मूल्यों पर आघात करती हो। यहाँ प्रस्तुत है—प्रतिरोध विषयक कविताओं का एक व्यापक और विशिष्ट चयन।

तू ज़िंदा है तो...

शंकर शैलेंद्र

हवन

श्रीकांत वर्मा

कौन जात हो भाई

बच्चा लाल 'उन्मेष'

अँधेरे में

गजानन माधव मुक्तिबोध

औरतें

रमाशंकर यादव विद्रोही

कुकुरमुत्ता

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

शीघ्रपतन

प्रकृति करगेती

चाँद का मुँह टेढ़ा है

गजानन माधव मुक्तिबोध

नई खेती

रमाशंकर यादव विद्रोही

उनका डर

गोरख पांडेय

ग़ुलामी की अंतिम हदों तक लड़ेंगे

रमाशंकर यादव विद्रोही

भेड़िया

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

कोई और

देवी प्रसाद मिश्र

हाथ और साथ का फ़र्क़

जावेद आलम ख़ान

कविताएँ लिखनी चाहिए

देवी प्रसाद मिश्र

क़दम क़दम बढ़ाए जा

वंशीधर शुक्ल

एक दिन

सारुल बागला

पिछड़ा आदमी

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

अगर तुम युवा हो

शशिप्रकाश

हवा

विनोद भारद्वाज

अस्मिता

ज़ुबैर सैफ़ी

मेरा गला घोंट दो माँ

निखिल आनंद गिरि

हम क्रांतिकारी नहीं थे

आर. चेतनक्रांति

अमीरी रेखा

कुमार अम्बुज

तुम्हारी सोहबत के फूल

कविता कादम्बरी

जनता का आदमी

आलोकधन्वा

उत्सव

अरुण कमल

क्रूरता

दूधनाथ सिंह

क्रांति

अमित तिवारी

वह जहाँ है

अखिलेश सिंह

निवेश

प्रदीप सैनी

एक अन्य युग

अविनाश मिश्र

नदियों के किनारे

गोविंद निषाद

कोरोना

अमिताभ

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