
आत्म-संयम अर्थात् आत्मानुशासन ही कलात्मक सौंदर्य को सुंदर एवं व्यवस्था को सुव्यवस्थित और आनंददायक बनाता है।
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जो मनुष्य निश्चय करके कार्य प्रारंभ करता है, कार्य के मध्य में रुकता नहीं, समय को नष्ट नहीं करता और स्वयं को वश में रखता है, उसी को पंडित कहा जाता है।

जिस पर अपना वश न हो ऐसे कारण से पहुँचने वाले भावी अनिष्ट के निश्चय से जो दुःख होता है, वह भय कहलाता है।