घाव पर कविताएँ

घाव शरीर पर बने या लगे

ज़ख़्म और मन पर लगे ठेस दोनों को ही प्रकट करता है। पीड़ा काव्य के केंद्रीय घटकों में से एक है।

स्‍त्री और आग

नवीन रांगियाल

आख़िरी बार

वियोगिनी ठाकुर

नंगी गालियाँ

नाज़िश अंसारी

इतिहासांत

कैलाश वाजपेयी

बहरहाल

नाज़िश अंसारी

सरिये

नवीन रांगियाल

घाव को घाव ही कहा

वियोगिनी ठाकुर

मन न मिला तो कैसा नाता

कृष्ण मुरारी पहारिया

आघात

नरेश सक्सेना

गर्हित गाथा

कैलाश वाजपेयी

बोलो ज़ख़्म

वसु गंधर्व

पीड़ा लौटती है

वियोगिनी ठाकुर

अपनी यातना में

सविता सिंह

किस तरफ़ देखूँ

अनुपम सिंह

निष्कृत

मोना गुलाटी

मुंबई रात भर जागती है

गुलज़ार हुसैन

डर

माधुरी

एक और ज़ख़्म

नरेंद्र जैन

लड़की

मलयज

हक़ीक़त

अनिमेष मुखर्जी

क्रमागत-2

रमेशचंद्र शाह

यह कोई वीरगाथा नहीं

सवाई सिंह शेखावत

घाव

हरि मृदुल

पुनरागमन

शरद रंजन शरद

टूटा हुआ उल्का पिंड

जगदीश चतुर्वेदी

घाव

प्रयाग शुक्ल

बदले हुए अर्थ

ऋतु कुमार ऋतु

आघात

सविता सिंह

मैं विकल्प हूँ

मालती शर्मा

ज़ख़्म

विनोद भारद्वाज

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