अपने में विश्वास और जिसको दुश्मन मानें उसका उद्धार करने में हमारी रक्षा होती है।
तुम्हारे पास क्या है; उससे नहीं, वरन् तुम क्या हो उससे ही तुम्हारी पहचान है।
न तो हमारे अंतःकरण से अधिक भयंकर कोई साक्षी हो सकता है और न कोई दोषारोपण करने वाला इतना शक्तिशाली।
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इंसान ऐसा बना है कि अगर वह अपने बनाने वाले को समझ ले और यह समझ ले कि मैं उसी भगवान का प्रतिबिंब हूँ, तो दुनिया की कोई ताक़त उसके स्वमान को छीन ही नहीं सकती। उसके स्वमान का हनन कोई कर सकता है तो वह ख़ुद ही कर सकता है
…मुझे एहसास हुआ है कि प्रकृति के महान नियमों का उल्लंघन प्राणनाशक पाप है। हमें ज़ल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए, हमें अधीर नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें आत्मविश्वास के साथ शाश्वत लय की आज्ञा का पालन करना चाहिए।
आत्मविश्वास रावण का सा नहीं होना चाहिए जो समझता था कि मेरी बराबरी का कोई है ही नहीं। आत्मविश्वास होना चाहिए विभीषण जैसा, प्रह्लाद जैसा। उनके जी में यह भाव था कि हम निर्बल हैं, मगर ईश्वर हमारे साथ है और इस कारण हमारी शक्ति अनंत है।
यह सर्वविदित है कि जो लोग ख़ुद पर भरोसा नहीं करते हैं, वे कभी दूसरों पर भरोसा नहीं करते हैं।
धारणा करने के लिए संयम चाहिए और मिथ्याचार के लिए असंयम।
चाहे जीवन में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएँ और आपके सामने कोई रास्ता न हो, फिर भी आपको ख़ुद को टूटने से बचाना चाहिए।
जैसे ही आप अपना पहला कदम उठाते हैं, उसके बाद जो होता है उसे होने दें। हमें बहाव के साथ नहीं बहना चाहिए, बल्कि हमें ख़ुद को बहाव के मुताबिक़ बनाना चाहिए।
इतना छोटा होने का अभिनय करना बंद करो, तुम परमानंद में गतिमान ब्रह्मांड हो।
दूसरे लोग जो स्वराज्य दिला दें वह स्वराज्य नहीं है, बल्कि परराज्य है।
सच्चा आत्मस्वातंत्र्य प्राप्त करने के लिए सामूहिकता आवश्यक है। सामूहिकता की विशाल उर्वर भूमि मे ही व्यक्ति के वृक्ष और लताएँ फूलती और फलती हैं।
भीतर इतनी गहराई हो कि कोई तुम्हारी थाह न ले सके। अथाह जिनकी गहराई है, अगोचर उनकी ऊँचाई हो जाती है।
एक सूफ़ी कभी किसी चीज़ के दायरे से बाहर नहीं जाता, बल्कि हमेशा दायरे में ही रहता है।
हे अर्जुन! जिसने समत्व बुद्धि रूप योग द्वारा सब कर्मों का संन्यास कर दिया है, जिसने ज्ञान से सब संशय दूर किए हैं, और जो आत्मबल से युक्त है, उसको कर्म नहीं बाँधते हैं।
जो ख़ुद अपने पैरों पर खड़ा नहीं होना चाहता, उसे दूसरे कहाँ तक खड़ा करते रहेंगे।
आप बिना किसी पुस्तक को पढ़े या बिना साधु—संतों और विद्वानों को सुने अपने मन का अवलोकन कर सकते हैं।
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रक्षा के उपाय को अपने बाहर ढूँढ़ना, दुर्बल आत्मा की मूढ़ता है—ध्रुव सत्य तो यही है : 'धर्मो रक्षति रक्षितः’।'
हे अर्जुन! वेद तीन गुणों के विषयों से युक्त हैं। तू तीनों गुणों के परे (अर्थात् नित्य सत्त्वगुण में स्थित), द्वंद्वों से मुक्त, योग-क्षेम का विचार न करने वाला और आत्मबल से युक्त हो।
स्वराज्य की सच्ची ख़ुमारी उसी को हो सकती है, जो आत्मबल अनुभव करके शरीर बल से नहीं दबेगा और निडर रहेगा तथा सपने में भी तोप बल का उपयोग करने की बात नहीं सोचेगा।
जिसका आत्म-बल पर विश्वास है, उसकी हार नहीं होती, क्योंकि आत्म-बल की पराकाष्ठा का अर्थ है मरने की तैयारी।
सही अर्थों में व्यक्ति वही है जो स्वयं में विभाजित और खंडित नहीं है। किंतु हम खंड-खंड टूटे हुए हैं, अतः हम व्यक्ति नहीं है। जो समाज है, वही हम भी हैं।
आत्मविश्वास सफलता का प्रथम रहस्य है।
भाग्य का मतलब यह नहीं है कि हमारे जीवन में जो कुछ भी होने वाला है, वह पहले से लिखा हुआ है। इसलिए सब कुछ संयोग पर छोड़ देना और दुनिया के तौर-तरीकों में भाग न लेना मूर्खता है।
आत्म-विश्वास का अर्थ है अपने काम में अटूट श्रद्धा।
मैं यही कहूँगा कि जो बहादुर होते हैं, उनको किसी की मदद की ज़ररूत नहीं होती।
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जो मायने रखता है, वह यह है कि आप अपनी आत्मा के निर्देशानुसार कितनी जल्दी करते हैं।
अंततः सबसे अच्छी क़िस्मत वह होती है, जिसे आप ख़ुद बनाते हैं।
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प्राकृतिक अनुकूलताएँ भी हों, उनमें स्वावलंबी रहना—दोष नहीं बल्कि उचित है।
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जिसका आत्मबल पर विश्वास है, उसकी हार नहीं होती क्योंकि आत्मबल की पराकाष्ठा का अर्थ है मरने की तैयारी।
जो आदमी अपने-आपको मदद देने के लिए ख़ुद तैयार रहता है, उसी को ईश्वर मदद देता है।
अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखें : कम प्रतिक्रिया करना सीखें और इसके बजाय जवाब देना सीखें।
अगर कोई चीज़ आपको ख़ुशी देती है; तो दूसरे उसे किस रूप में लेते हैं, इससे कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता।
अगर आप अपने ईमान को मज़बूत करना चाहते हैं, तो आपको सबसे पहले ख़ुद को अंदर से मज़बूत करना होगा।
नूह की तरह एक बहुत बड़ी; मूर्खतापूर्ण योजना शुरू करो, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि लोग तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं।
जब तुम ख़ुशी, मक़्सद और जुनून से भरी ज़िंदगी जीने के लिए उठने का फ़ैसला करोगे तो हर कोई तुम्हारे साथ नहीं उठेगा। यह तुम्हारी ग़लती नहीं है, और इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं कि तुम्हें ख़ुद को छोटा करना होगा ताकि वे सहज महसूस कर सकें।
पूरी दुनिया एक व्यक्ति में बसती है और वह आप हैं। आप अपने आस-पास जो कुछ भी देखते हैं; यहाँ तक कि जो आपको पसंद नहीं है, जिसे आप अनदेखा करते हैं, जिससे आप नफरत करते हैं—ये सभी अलग-अलग स्तरों पर आपके भीतर रहते हैं। इसलिए हमें बाहर देखने के बजाय अपने भीतर शैतान को तलाशना चाहिए।
जो है आत्मविश्वासी वही तो अस्तिवादी है।
शैतान एक ऐसी शक्ति है जो हम पर बाहर से हमला नहीं करती, बल्कि हमारी अंतरात्मा की आवाज़ के जरिए हमें भटकाती है। अगर हम ख़ुद को सही तरीके से पहचान लें, तो हम शैतान का सामना कर सकते हैं और उसे हरा भी सकते हैं।
समय-समय पर झुँड से अलग होना महत्वपूर्ण है।
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चुनौतियाँ आई और गईं, पर मैंने सफलता और विफलता के हर क्षण का भरपूर आनंद लिया। न मुझे थकान महसूस हुई और न मैंने ख़ुद को खोया हुआ या उद्देश्यहीन माना; यही, मेरी नज़र में सबसे बड़ी जमापूँजी है!
तुम सच्ची दोस्ती, असली जुड़ाव, अडिग प्रेम के हकदार हो और जब तुम उसे चुनते हो तो दुनिया बदल जाती है।
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ख़ुद नाचना-गाना प्रथम दर्जे का आनंद है, टीवी पर दूसरों को नाचते-गाते देखना दूसरे दर्जे का आनंद है।
जब आपके भीतर सोने की ख़ान है, तो आप इस दुनिया से इतने मोहित क्यों हैं?
बोल्ड होना आवश्यक आदत है। इसे अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बनाने के लिए इस अभ्यास को करें।
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जितना ज़्यादा तुम ख़ुद को उस भूमिका में फ़िट करने की कोशिश करते हो, उतना ही तुम उन रिश्तों और उस समुदाय से दूर होते हो, जो सच में तुम्हारे लिए बने हैं।
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बीच में होना, बस झुँड का हिस्सा होना–प्रेरणादायक नहीं होता है।
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