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आकाश पर उद्धरण

आकाश का अर्थ है आसमान,

नभ, शून्य, व्योम। यह ऊँचाई, विशालता, अनंत विस्तार का प्रतीक है। भारतीय धार्मिक मान्यता में यह सृष्टि के पाँच मूल तत्वों में से एक है। पृथ्वी की इहलौकिक सत्ता में आकाश पारलौकिक सत्ता के प्रतीक रूप में उपस्थित है। आकाश आदिम काल से ही मानवीय जिज्ञासा का विषय रहा है और काव्य-चेतना में अपने विविध रूपों और बिंबों में अवतरित होता रहा है।

आकाश हम छू रहे हैं, ज़मीन खो रहे हैं।

ज्ञानरंजन

आकाश में उड़ते पक्षियों की गति को जाना जा सकता है परंतु गुप्त रूप से कार्य करते हुए अर्थ-सबंधी कार्यो पर नियुक्त अधिकारियों की गति को जानना संभव नहीं है।

चाणक्य

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