![मन एक डिस्ग्राफ़िया ग्रस्त बच्चे की हैंडराइटिंग है मन एक डिस्ग्राफ़िया ग्रस्त बच्चे की हैंडराइटिंग है](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/maan-ek-dysgraphia-grast-bachche-ki-handwriting-hain_Thumb.jpg)
मन एक डिस्ग्राफ़िया ग्रस्त बच्चे की हैंडराइटिंग है
चीज़ों को बुरी तरह टालने की बीमारी पनप गई है। एक पल को कुछ सोचती हूँ, अगले ही पल एक अदृश्य रबर से उसे जल्दबाज़ी से मिटाते हुए बीच में ही छोड़कर दूसरी कोई बात सोचने लगती हूँ। इन दिनों काम है कि लकड़ियों के
अंकिता शाम्भवी
![कविता की बुनियादी ताक़त का संग्रह कविता की बुनियादी ताक़त का संग्रह](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/kavita-ki-buniyadi-taqat-ka-sangrah_Thumb.jpg)
कविता की बुनियादी ताक़त का संग्रह
'नया रास्ता' (रश्मि प्रकाशन, लखनऊ) हरे प्रकाश उपाध्याय का ‘खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएँ’ (2009) के बारह वर्ष बाद प्रकाशित दूसरा कविता-संग्रह है। यह आगमन एक ऐसे दौर में हुआ है, जब बहुत से पुराने रास्त
मोहन कुमार डहेरिया
![हिंदी का पहला मुसलमान कवि हिंदी का पहला मुसलमान कवि](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/hindi-ka-pahla-musalman-kavi_Thumb.jpg)
हिंदी का पहला मुसलमान कवि
हिंदी साहित्य को 11वीं-12वीं सदी का एक मुसलमान कवि मिला, जिसे नाम दिया गया—महाकवि अब्दुल रहमान। अब्दुल रहमान को 'हिंदी का पहला मुसलमान कवि' मानते हैं। हिंदीवालों के हिसाब से अब्दुल रहमान के बाद हिंदी
दयाशंकर शुक्ल सागर
![जीवन का पैसेंजर सफ़र जीवन का पैसेंजर सफ़र](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/jeevan-ka-passenger-safar_Thumb.jpg)
जीवन का पैसेंजर सफ़र
यह नब्बे के दशक की बात है। 1994-95 के आस-पास की। हम राजस्थान विश्वविद्यालय में पढ़ा करते थे। साहित्य में रुचि रखने वाले हम कुछ दोस्तों का एक समूह जैसा बन गया था। इस समूह को हमने ‘वितान’ नाम दिया था।
प्रभात
![संतृप्त मनोवेगों का संसार संतृप्त मनोवेगों का संसार](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/santript-manovegon-ka-sansar_Thumb.jpg)
संतृप्त मनोवेगों का संसार
‘आश्चर्यवत्’ सौ से भी कम पृष्ठों का निर्भार संग्रह है, लेकिन माथे पर थाप दी गई आचार्य वागीश शुक्ल की दस पृष्ठों की भूमिका से कुछ उलार-सा लगता है। इस तरह इसे आप ‘आचार्यवत्’ भी कह सकते हैं। आचार्य ने कल
आशीष मिश्र
![दो दीमकें लो, एक पंख दो दो दीमकें लो, एक पंख दो](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/do-deemkein-lo-ek-pankh-do_Thumb.jpg)
दो दीमकें लो, एक पंख दो
मैं आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, इस कार्यक्रम के आयोजकों और नियामकों का जिन्होंने मुझे आपके रूबरू होने का, कुछ बातें कर पाने का मौक़ा दिया। मेरे लिए यह मौक़ा असाधारण तो नहीं, लेकिन कुछ दुर्लभ ज़रूर है। लि
योगेंद्र आहूजा
![दिल्ली एक हृदयविदारक नगर है दिल्ली एक हृदयविदारक नगर है](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/delhi-ek-hridayvidarak-nagar-hain_Thumb.jpg)
दिल्ली एक हृदयविदारक नगर है
‘कविता का जीवन’ असद ज़ैदी का दूसरा कविता-संग्रह है। पहला सात वर्ष हुए ‘बहनें और अन्य कविताएँ’ के नाम से प्रकाशित हुआ था। इसमें 48 कविताएँ थीं। ‘कविता का जीवन’ किंचित छोटा, परंतु अधिक संगठित संग्रह है।
रघुवीर सहाय
![उनकी ऊँचाई, मेरी जिज्ञासाओं और शंकाओं से ऊपर है उनकी ऊँचाई, मेरी जिज्ञासाओं और शंकाओं से ऊपर है](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/unki-unchchai-meri-gigyasaon-aur-shankaon-se-upar-hain_Thumb.jpg)
उनकी ऊँचाई, मेरी जिज्ञासाओं और शंकाओं से ऊपर है
संकेत-सूत्र कविताएँ इधर लगभग नहीं ही लिखीं। अनुभूति-क्षणों के आकलन और अभिव्यक्ति की प्रक्रिया शायद कुछ और राहों की ओर मुड़ पड़ी हो, शायद अधिक व्यापक और प्रभविष्णु धरातलों को खोज रही हो। खोज की सफलत
राजेंद्र यादव
![पुरानी उदासियों का पुकारू नाम पुरानी उदासियों का पुकारू नाम](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/purani-udasiyon-ka-pukaru-name_Thumb.jpg)
पुरानी उदासियों का पुकारू नाम
एक साहित्यिक मित्र ने अनौपचारिक बातचीत में पूछा कि आप महेश वर्मा के बारे में क्या सोचते हैं? मेरे लिए महेश वर्मा के काव्य-प्रभाव को साफ़-साफ़ बता पाना कठिन था, लेकिन जो चुप लगा जाए वह समीक्षक क्या! मैंन
आशीष मिश्र
![‘हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी’ ‘हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी’](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/har-aadmi-me-hote-hain-das-bees-aadmi_Thumb.jpg)
‘हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी’
यह स्कूल के दौरान की बात है। हमारे घर में ‘राजस्थान पत्रिका’ अख़बार आया करता था। तब तक मैंने शे’र-ओ-शायरी के नाम पर सस्ती और ग्रीटिंग कार्ड में लिखी जाने वाली शाइरी ही पढ़ी थी। उन्हीं दिनों ‘राजस्थान प
देवेश पथ सारिया
![अ-भाव का भाव—‘अर्थात्’ अ-भाव का भाव—‘अर्थात्’](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/a-bhav-ka-bhav-arthat_Thumb.jpg)
अ-भाव का भाव—‘अर्थात्’
मैंने अमिताभ चौधरी को नहीं देखा है। लेकिन उनकी कविताओं से ऐसा चित्र उभरता है कि कोई जनसंकुल बस्ती से दूर निर्जन अँधेरे बीहड़ में दिशाहीन चला जा रहा है। इस अछोर अँधेरे से आतीं बेचैन प्रतिध्वनियों का हॉर
आशीष मिश्र
![लोक के जीवन का मर्म लोक के जीवन का मर्म](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/lok-ke-jeewan-ka-marm_Thumb.jpg)
लोक के जीवन का मर्म
यह सड़क जो आगे जा रही है—इसी पर कुछ आगे, बाएँ हाथ एक ठरकरारी पड़ेगी, उसी पर नीचे उतर जाना है। सड़क आगे, शहर तक जाती है, उससे भी आगे महानगर तक जाएगी, जहाँ आसमान में धँसी बड़ी-बड़ी इमारतें, भागते अकबकाए हुए-
आशीष मिश्र
![आदिवासी अंचल की खोज आदिवासी अंचल की खोज](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/aadivasi-anchal-ki-khoj_Thumb.jpg)
आदिवासी अंचल की खोज
आज यह सोचकर विस्मय होता है कि कभी मार्क्सवादी आलोचना ने नई कविता पर यह आक्षेप किया था कि ये कविताएँ ऐंद्रिक अनुभवों के आवेग में सामाजिक अनुभवों की उपेक्षा करती हैं। आज आधी सदी बाद जब काव्यानुभव में इं
आशीष मिश्र
![नई कविता नई पीढ़ी ही नहीं बनाती नई कविता नई पीढ़ी ही नहीं बनाती](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/nai-kavita-nai-pidhi-hi-nhi-banati_Thumb.jpg)
नई कविता नई पीढ़ी ही नहीं बनाती
समय की समझदारी का चेहरा तत्कालीन पीढ़ियों के कई सारे लोग मिल कर बनाते हैं। समकालीन कविता के महत्त्वपूर्ण कवि-लेखक राजेश जोशी से उनकी रचनाओं के आस-पास या यूँ कहें उनके रचना-समय के आस-पास पिछले दिनों एक
कुमार मंगलम
![दुनिया के बंद दरवाज़ों को शब्दों से खोलता साहित्यकार दुनिया के बंद दरवाज़ों को शब्दों से खोलता साहित्यकार](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/duniya-ke-band-darwazo-ko-shabdo-se-kholta-sahityakar_Thumb.jpg)
दुनिया के बंद दरवाज़ों को शब्दों से खोलता साहित्यकार
हर बार जब आरा पहुँचता था, तो रामनिहाल गुंजन जी से ज़रूर मिलता था। इस बार 10 अप्रैल को पहुँचने के बाद उन्हें फ़ोन किया, तो उन्होंने बताया कि घर में कुछ काम लगा रखा है। मुझे लगा कि छत पर कोई कमरा बनवा रहे
सुधीर सुमन
![‘प्रेम में मरना सबसे अच्छी मृत्यु है’ ‘प्रेम में मरना सबसे अच्छी मृत्यु है’](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/prem-me-marna-sabse-achchhi-mrityu-h_Thumb.jpg)
‘प्रेम में मरना सबसे अच्छी मृत्यु है’
इस सृष्टि में किसी के प्रेम में होना मनुष्य की सबसे बड़ी नेमत है। उसके सपनों के जीवित बचे रहने की एक उम्मीद भरी संभावना। मोमिन का एक मशहूर शे’र है : तुम मेरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नहीं होत
दया शंकर शरण
![हिंसा ही नहीं है हिंदी हिंसा ही नहीं है हिंदी](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/hinsa-hi-nhi-hain-hindi_Thumb.jpg)
हिंसा ही नहीं है हिंदी
हिंदी एक विचारधारा है और यह विचारधारा पुनरुत्थानवादी और सांप्रदायिक है जो किसी प्रतिगामी हिंदी राष्ट्रवाद से अभिज्ञापित की जा सकती है। भाषा एक विचारधारा हो सकती है, यह एक नया विचार है। इस तरह से दे
देवी प्रसाद मिश्र
![पंक्ति प्रकाशन की चार पुस्तकों का अंधकार पंक्ति प्रकाशन की चार पुस्तकों का अंधकार](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/pankti-prakashan-kii-char-pustkon-ka-andhkar_Thumb.jpg)
पंक्ति प्रकाशन की चार पुस्तकों का अंधकार
‘कवियों में बची रहे थोड़ी लज्जा’ मंगलेश डबराल की इस पंक्ति के साथ यह भी कहना इन दिनों ज़रूरी है कि प्रकाशकों में भी बचा रहे थोड़ा धैर्य―बनी रहे थोड़ी शर्म। कविता और लेखक के होने के बहुतायत में प्र
पंकज प्रखर
![आज की कविता के सरोकार तथा मूल्यबोध आज की कविता के सरोकार तथा मूल्यबोध](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/aaj-ki-kavita-ke-sarokar-tatha-mulyabodh_Thumb.jpg)
आज की कविता के सरोकार तथा मूल्यबोध
मैं गद्य का आदमी हूँ, कविता में मेरी गति और मति नहीं है; यह मैं मानता हूँ और कहता भी हूँ फिर भी यह इच्छा हो रही है कि आज की कविता के सरोकार तथा मूल्यबोध के बारे में कुछ स्याही ख़र्च करूँ। इस अनाधिकार च
हरी चरन प्रकाश
!['रफ़्तगाँ में जहाँ के हम भी हैं' 'रफ़्तगाँ में जहाँ के हम भी हैं'](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/raftga-me-jahan-ke-ham-bhi-hain_Thumb.jpg)
'रफ़्तगाँ में जहाँ के हम भी हैं'
आदिम युग से ही कृति के साथ कर्ता भी हमेशा ही कौतूहल का विषय बना रहा है। जो हमसे भिन्नतर है, वह ऐसा क्यों है, इसकी जिज्ञासा आगे भी बनी ही रहेगी। इन्हीं जिज्ञासाओं में एक जिज्ञासा का लगभग शमन करते हुए क
प्रज्वल चतुर्वेदी
![गणितीय दर्शन और स्पेस-टाइम फ़ैब्रिक पर रची अज्ञात के भीतर हाथ फेरती कविताएँ गणितीय दर्शन और स्पेस-टाइम फ़ैब्रिक पर रची अज्ञात के भीतर हाथ फेरती कविताएँ](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/ganiteey-darshan-aur-spes-taim-faibrik-par-rachee-agyaat-ke-bheetar-haath-pheratee-kavitaen_Thumb.jpg)
गणितीय दर्शन और स्पेस-टाइम फ़ैब्रिक पर रची अज्ञात के भीतर हाथ फेरती कविताएँ
...कहाँ से निकलती हैं कविताएँ? उनका उद्गम स्थल कहाँ-कहाँ पाया जा सकता है? आदर्श भूषण के यहाँ कविताएँ टीसों के भंगार से, विस्मृतियों की ओंघाई गति से, एक नन्हीं फुदगुदी की देख से, पूँजीवाद की दुर्गंध से
प्रतिभा किरण
![पूर्णता की तलाश की कविता पूर्णता की तलाश की कविता](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/purnata-ki-talash-ki-kavita_Thumb.jpg)
पूर्णता की तलाश की कविता
स्वप्नान्नं जागरितांत चोभौ येनानुपश्यति। महान्तं विभुमात्मानं मत्वा धीरो न शोचति।। — बृहदारण्यक उपनिषद् (धीर पुरुष उस 'महान्' विभु-व्यापी 'परमात्मा' को जानकर जिसके द्वारा व्यक्ति स्वप्न तथा ज
कुमार मंगलम
![कुँवर नारायण की कविता और मुक्तिबोध की आलोचना-दृष्टि कुँवर नारायण की कविता और मुक्तिबोध की आलोचना-दृष्टि](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/kunwar-narayan-ki-kavita-aur-muktibodh-ki-aalochna-drishti_Thumb.jpg)
कुँवर नारायण की कविता और मुक्तिबोध की आलोचना-दृष्टि
मौजूदा समय के संकटों और चिंताओं के बीच जब हमें मुक्तिबोध याद आते हैं, तो न केवल उनकी कविताएँ और कहानियाँ हमें याद आती हैं, बल्कि उनका समीक्षक रूप भी शिद्दत से हमें याद आता है। मुक्तिबोध ने अपने आलोचना
सुशील सुमन
![कुँवर नारायण की कविता और नाटकीयता कुँवर नारायण की कविता और नाटकीयता](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/kunwar-narayan-ki-kavita-aur-natkiyta_Thumb.jpg)
कुँवर नारायण की कविता और नाटकीयता
नाटक केवल शब्दों नहीं, अभिनेता की भंगिमाओं, कार्यव्यापार और दृश्यबंध की सरंचना के सहारे हमारे मानस में बिंबों को उत्तेजित कर हमारी कल्पना की सीमा को विस्तृत कर देते हैं और रस का आस्वाद कराते हैं। जिस
अमितेश कुमार
![दुस्साहस का काव्यफल दुस्साहस का काव्यफल](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/dussahas-ka-kavyafal_Thumb.jpg)
दुस्साहस का काव्यफल
व्यक्ति जगद्ज्ञान के बिना आत्मज्ञान भी नहीं पा सकता। अगर उसका जगद्ज्ञान खंडित और असंगत है तो उसका अंतर्संसार द्विधाग्रस्त और आत्मपहचान खंडित होगा। आधुनिक युग की क्रियाशील ताक़तें मनुष्य के जगद्ज्ञान को
आशीष मिश्र
![मुक्तिबोध का दुर्भाग्य मुक्तिबोध का दुर्भाग्य](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/muktibodh-ka-durbhagya_Thumb.jpg)
मुक्तिबोध का दुर्भाग्य
आज 11 सितंबर है—मुक्तिबोध के निधन की तारीख़। इस अर्थ में यह एक त्रासद दिवस है। यह दिन याद दिलाता है कि आधुनिक हिंदी कविता की सबसे प्रखर मेधा की मृत्यु कितनी आसामयिक और दुखद परिस्थिति में हुई। जैसा कि ह
सुशील सुमन
!['लिखना ख़ुद को बचाए रखने की क़वायद भी है' 'लिखना ख़ुद को बचाए रखने की क़वायद भी है'](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/likhna-khud-ko-bachaye-rakhne-ki-qavayad-bhi-hai_Thumb.jpg)
'लिखना ख़ुद को बचाए रखने की क़वायद भी है'
संतोष दीक्षित सुपरिचित कथाकार हैं। ‘बग़लगीर’ उनका नया उपन्यास है। इससे पहले ‘घर बदर’ शीर्षक से भी उनका एक उपन्यास चर्चित रहा। संतोष दीक्षित के पास एक महीन ह्यूमर है और एक तीक्ष्ण दृष्टि जो समय को बेधत
अंचित
![नकार को दिसंबर की काव्यात्मक आवाज़ नकार को दिसंबर की काव्यात्मक आवाज़](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/nakaar-ko-december-ki-kavyatmak-aavaz_Thumb.jpg)
नकार को दिसंबर की काव्यात्मक आवाज़
कोई आहट आती है आस-पास, दिसंबर महीने में। नहीं, आहट नहीं, आवाज़ आती है। आवाज़ भी ऐसी जैसे स्वप्न में समय आता है। आवाज़ ऐसी, मानो अपने जैसा कोई जीवन हो, समस्त ब्रमांड के किसी अनजाने-अदेखे ग्रह पर। किसी
प्रांजल धर
![‘कितना संक्षिप्त है प्रेम और भूलने का अरसा कितना लंबा’ ‘कितना संक्षिप्त है प्रेम और भूलने का अरसा कितना लंबा’](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/kitna-sanchipt-hai-prem-aur-bhoolne-ka-arsa-kitna-lamba_Thumb.jpg)
‘कितना संक्षिप्त है प्रेम और भूलने का अरसा कितना लंबा’
प्रिय नेरूदा, तुम कविता की दुनिया में एक चमकता सितारा हो, जिसे एक युवा दूर पृथ्वी से हमेशा निहारता रहता है। उसकी इच्छा है कि उसके घर की दीवारें तुम्हारी तस्वीरों से भरी हों। भविष्य की उसकी यात्राओं
गौरव गुप्ता
![कल कुछ कल से अलग होगा कल कुछ कल से अलग होगा](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/kal-kuch-kal-se-alag-hoga_Thumb.jpg)
कल कुछ कल से अलग होगा
…क्या ज़रूरी है कि आलोकधन्वा की कविताओं पर बात करते हुए यह बताया जाए कि वह एक आंदोलन से निकले हुए कवि हैं? क्या ज़रूरी है कि यह बताया जाए कि उनकी कविताएँ एक विशेष वैचारिक समझ की कविताएँ हैं? क्या ज़रूरी
अविनाश मिश्र
![‘भक्त भगवानों से लगातार पूछ रहे हैं कविता क्या है’ ‘भक्त भगवानों से लगातार पूछ रहे हैं कविता क्या है’](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/bhakt-bhagwaano-se-lagataar-puch-rahe-hai-kavita-kya-hai_Thumb.jpg)
‘भक्त भगवानों से लगातार पूछ रहे हैं कविता क्या है’
एक व्योमेश शुक्ल के अब तक दो कविता संग्रह, ‘फिर भी कुछ लोग’ और ‘काजल लगाना भूलना’ शाया हुए हैं—जिनमें तक़रीबन सौ कविताएँ हैं, कुछ ज़्यादा या कम। इन दोनों संग्रहों की कविताओं पर पर्याप्त बातचीत-बहस
अमन त्रिपाठी
![‘अँधेरे में’ कविता में स्वाधीनता आंदोलन का अतीत है ‘अँधेरे में’ कविता में स्वाधीनता आंदोलन का अतीत है](https://www.hindwi.org/images/ResorceImages/blog/muktibodh-kii-kavita-andhere-me-par-batcheet_Thumb.jpg)
‘अँधेरे में’ कविता में स्वाधीनता आंदोलन का अतीत है
मुक्तिबोध और ‘अँधेरे में’ पर मैनेजर पांडेय और अर्चना लार्क की बातचीत : अर्चना लार्क : ‘अँधेरे में’ कविता को अतीत और वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में किस तरह देखा जा सकता है? मैनेजर पांडेय : ‘अँधेरे म