मलयज की डायरी
1 जनवरी, 1961
तुम दुनिया हो। जिसके कोई चेहरा नहीं होता, धुँधली, चटख और मद्धिम पृष्ठभूमि के बीच से झाँकता हुआ, अपने ‘होने’ के अहसास से चमकता हुआ चेहरा...
तुम में वह व्यक्तित्व का विशिष्ट बोध नहीं है, जो तुम्हें इस घर की आत्मा से जोड़े...तुम इस घर को