मैं गाँव गया था

शरद बिलाैरे

शहर

अंजुम शर्मा

नई खेती

रमाशंकर यादव विद्रोही

मकड़जाल

संदीप तिवारी

पटवारी

अमर दलपुरा

साहब लोग रेनकोट ढूँढ़ रहे हैं

जितेंद्र श्रीवास्तव

गोरू-चरवाह

रमाशंकर सिंह

धूलि-मंदिर

रवीन्द्रनाथ टैगोर

फ़सल

आ. रा. देशपांडे अनिल

ऐ बंधु!

सारुल बागला

फ़सल

नागार्जुन

असली-नक़ली

कृष्ण कल्पित

किसान और आत्महत्या

हरीशचंद्र पांडे

कैसे

रवि भूषण पाठक

त्रिशुल

मोहन सिंह

खेत

संदीप निर्भय

बीज

देवी प्रसाद मिश्र

अंत

सविता सिंह

असंपूर्ण

मणीन्द्र राय

बिजूका

राधावल्लभ त्रिपाठी

हाथा मारना

अष्टभुजा शुक्‍ल

ओ मज़दूर किसान, उठो

बालकृष्ण शर्मा नवीन

चंदनवा चैती गाता है

केदारनाथ अग्रवाल

जा रहा हूँ

निलय उपाध्याय

सड़क पर किसान

जसिंता केरकेट्टा

कलम के कंधे पर इतिहास

खेमकरण ‘सोमन’

गेहूँ की सोच

प्रभाकर माचवे

हम कीचड़ के कवि थे

ज्योति रीता

कटुई का गीत

केदारनाथ अग्रवाल

उठ किसान ओ

त्रिलोचन

इस बार बारिश

बसंत त्रिपाठी

ब्रा में हाथ

अरुण शीतांश

अनाज के दाने का वज़न जानते हैं हम

संतोष कुमार चतुर्वेदी

ज़मीनें देख रही थीं

खेमकरण ‘सोमन’

एक सितम है

पंकज चतुर्वेदी

गोर्रा नदी

जितेंद्र श्रीवास्तव

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