गाली पर उद्धरण
गालियों को लोक-व्यवहार
का अंग कहा गया है। कहा तो यह भी जाता है कि जब भाषा लाचार होकर चुक जाती है, तब गाली ही अभिव्यक्ति का माध्यम बनती है। यहाँ इस चयन में अभिव्यक्ति के लिए गाली को केंद्र बनाने वाली रचनाएँ संकलित हैं।

दूसरों से गाली सुनकर भी स्वयं उन्हें गाली न दे। गाली सहन करने वाले का रोका हुआ क्रोध ही गाली देने वाले को जला डालता है और उसके पुण्य भी ले लेता है।

मूर्ख मनुष्य विद्वानों को गाली और निंदा से कष्ट पहुँचाते हैं। गाली देने वाला पाप का भागी होता है और क्षमा करने वाला पाप से मुक्त हो जाता है।

मेरी डाक में आने वाले खतों में कुछ खत तो गालियों से ही भरे होते हैं। उन गालियों का तो मेरे ऊपर कोई असर नहीं होता, क्योंकि मैं इन गालियों को ही स्तुति समझता हूँ, परंतु वे लोग गालियाँ इसलिए नहीं देते कि मैं उनको स्तुति समझता हूँ बल्कि इसलिए कि मैं जैसा उनकी निगाह में होना चाहिए वैसा नहीं हूँ। एक वक़्त वह था जब वे मेरी स्तुति भी करते था। इसलिए गालियाँ देना या स्तुति करना तो दुनिया का एक खेल हूँ।

बोलने में मर्यादा मत छोड़ना। गालियाँ देना तो कायरों का काम है।