असंयम को अमंगल जानकर छोड़ने में जिनके मन में विद्रोह जागता है, उनसे वह कहना चाहता है कि उसे असुंदर जानकर अपनी इच्छा से छोड़ दो।
-
संबंधित विषय : आत्म-अनुशासनऔर 2 अन्य
अधीर न बनो, उतावली न करो। धैर्यपूर्ण, एकनिष्ठ तथा शांतिपूर्ण कर्म के द्वारा ही सफलता मिलती है।
अनंत धैर्य, अनंत पवित्रता तथा अनंत अध्यवसाय—सत्कार्य में सफलता के रहस्य हैं।
चिड़िया अपनी उड़ान के दरमियान उड़ते-उड़ते एक जगह पहुँचती है, जहाँ से अत्यंत शांत भाव से वह नीचे की ओर देखती है। क्या तुम वहाँ पहुँच चुके हो? जो लोग वहाँ नहीं पहुँचे हैं, उन्हें दूसरे को शिक्षा देने का अधिकार नहीं। हाथ पैर ढीले करके धारा के साथ बह जाओ और तुम अपने गंतव्य पर पहुँच जाओगे।
आगे बढ़ो और याद रखो—धीरज, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म।
एक का स्वार्थ दूसरे पर निर्भर है, इसका विशेष रूप से ज्ञान होने पर सब लोग ईर्ष्या को त्याग देंगे। आपस में मिल-जुलकर किसी कार्य को संपादित करने की भावना, हमारे जातीय चरित्र में सुलभ नहीं है। अतः इस प्रकार की भावना को जाग्रत करने के लिए, तुम्हें अत्यधिक परिश्रम करना पड़ेगा तथा उसके लिए हमें धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा भी करनी होगी।
गढ़ने में संयम की ज़रूरत होती है, नष्ट करने में असंयम की।
धैर्य का मतलब सिर्फ़ सहन करना नहीं है, बल्कि व्यक्ति को परिस्थिति के परिणाम के बारे में सोचना होगा। कांटा देखने के बाद गुलाब देखना, रात देखने के बाद सुबह देखना—ये सब होता है।
हे धैर्यशील! रमणीय भोगों में भी तुम्हारी बुद्धि आसक्त्त नहीं होती। ये रमणियों से संबद्ध भोग (ऐंद्रिक आनंद) मुनियों का भी मन हर लेते हैं, अर्थात् उन्हें भी साधना—पथ से विमुख कर देते हैं, लेकिन तुम उनमें भी नहीं रमते।
जब काम बहुत है और समय कम है, तो मनुष्य क्या करे? धैर्य रखे, और जो ज़्यादा उपयोगी माने उसे पूरा करे और बाक़ी ईश्वर पर छोड़ दे। दूसरे रोज़ ज़िंदा होगा तो जो रह गया है उसे पूरा करेगा।
जब धीर व्यक्ति कर्त्तव्य पूर्ण कर विश्राम में मन लगाता है तभी विधाता उसको अन्य महान कार्य भार अर्पित कर देता है।
जब हमारे दिल में शक पैदा हो जाता है तो अच्छा तरीक़ा यही है कि हम धैर्य रखकर बैठे रहें, बजाए इसके कि कोई पत्थर फेंककर मामले को और बिगाड़ें।
अधिक जल्दबाज़ी करने से और भी अधिक विलंब हो जाता है!
तू धैर्य और स्वाभिमान का अवलंबन कर। अपने पुरुषार्थ को जान और सतेनि कारण डूबे हुए इस वंश का तू स्वयं ही उद्धार कर।
अर्थहीन अकारण विप्लव की चेष्टा में रक्तपात होता है, और कोई फल प्राप्त नहीं होता। विप्लव की सृष्टि मनुष्य के मन में होती है, केवल रक्तपात में नहीं। इसी से धैर्य रखकर उसकी प्रतीक्षा करनी होती है।
ईश्वर से प्रेम करने वालों में कभी धैर्य की कमी नहीं होती, और वे पूर्णिमा का इंतजार करते हैं।
छोटी-छोटी बातों पर धैर्य रखने से, ब्रह्मांड की तरह एक बड़ा काम भी पूर्ण हो जाता है।
कोई व्यक्ति सुनने में जब तक महारत हासिल न कर ले, उसे बोलने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।
यह सत्य है कि अंत में वही जीतता है, जो चोटों को धैर्य से स्वीकार करता है।
धैर्य रखें और काम करते रहें। जब सही मौसम आएगा, तो पेड़ फूलेंगे और फिर फल देंगे।
अधीरता का मतलब परिस्थिति के परिणाम को अनदेखा करना है।
सौंदर्य-सृष्टि करना ही असंयत कल्पना-वृत्ति का काम नहीं है।