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शिकायत पर उद्धरण

अगर इनसान पैसे और शोहरत का मोह छोड़ दे तो वह ख़तरनाक हो जाता है, कोई उसे बरदाश्त नहीं कर पाता, सब उससे दूर भागते हैं, या उसे पैसा और शोहरत देकर फिर मोह के जाल में फाँस लेना चाहते हैं।

कृष्ण बलदेव वैद

पुरुष जब बिस्तर में बेकार हो जाए, बेरोज़गार हो जाए, बीमार हो जाए तो पत्नी को सारे सच्चे-झूठे झगड़े याद आने लगते हैं। तब वह आततायी बन जाती है। उसके सर्पीले दाँत बाहर निकल आते हैं।

स्वदेश दीपक

किसी का मूल्यांकन करते वक़्त हमें अपने दृष्टिकोण का भी मूल्यांकन करना चाहिए।

गोरख पांडेय

आकाश हम छू रहे हैं, ज़मीन खो रहे हैं।

ज्ञानरंजन

यह कड़वी हक़ीक़त कि हम हिंदी के लेखक एक-दूसरे को शौक़, प्यार और उदारता से नहीं पढ़ते। अक्सर तो पढ़ते ही नहीं। पढ़ भी लें तो बता नहीं देते कि पढ़ लिया है।

कृष्ण बलदेव वैद

बदसूरती आम हिंदुस्तानी आँख को दिखाई ही नहीं देती।

कृष्ण बलदेव वैद

ख़राब किया जा रहा मनुष्य आज जगह-जगह दिखाई देता है।

मंगलेश डबराल

इस लज्जित और पराजित युग में कहीं से ले आओ वह दिमाग़ जो ख़ुशामद आदतन नहीं करता।

रघुवीर सहाय

दोहरी ज़िंदगी की सुविधाओं से मुझे प्रेम नहीं है।

राजकमल चौधरी

मैं पैसे और शोहरत के मोह से मुक्त होने की कोशिश में हूँ, इसीलिए बहुत से लोग मुझसे दूर भागते रहते हैं।

कृष्ण बलदेव वैद

सूची कोई भी बनाए, कभी भी बनाए, सूचियाँ हमेशा ख़ारिज की जाती रहेंगी; वे विश्वसनीयता पैदा नहीं कर सकती—क्योंकि हर संपादक, आलोचक के जेब में एक सूची है।

ज्ञानरंजन

अगर हमारे पास मुठभेड़ के अपने विषय नहीं होंगे और हम विरोधियों, शत्रुओं से ही संघर्ष के विषय लेते रहेंगे तो यह एक झगड़ालू और निस्तेज जीवन होगा।

ज्ञानरंजन

शिकायतों का कोई फ़ायदा नहीं है, क्योंकि हम जो महसूस करते हैं, हम जो जीते हैं, या जो हम हैं, उसमें किसी भी बाहरी निर्णय का कोई योगदान नहीं है।

ज्याँ-पाॅल सार्त्र

प्रलाप का अर्थ है प्रलाप।

स्वदेश दीपक